मोदी सिर्फ पीएम नहीं, एक भावना हैं
झारखंड उनके लिए मात्र एक राज्य नहीं, उनके जिगर का टुकड़ा है
गरीबी में पले-बढ़े हैं, तभी गरीबों को समझते हैं, उनके दर्द और जरूरतों से कनेक्ट करते हैं
खुद के पास एक साइकिल नहीं, लेकिन देश को विरासत में विकसित भारत देना चाहते हैं
पीएम नरेंद्र मोदी, एक ऐसी शख्सियत, जिनके चेहरे पर एक अलग ही आध्यात्मिक ओज है। उनकी उपस्थिति मात्र से ही लोगों की भावनाएं सागर की लहरों के समान हिलोरें मारने लगती हैं। जब वह बोलते हैं, तो उनकी धाराप्रवाह वाणी से लोग उसमें बहने लगते हैं। प्रतिक्रियाएं अलग-अलग हो सकती हैं, सकारात्मकता और नकारात्मकता का भाव भी संग-संग काम करता होगा, क्योंकि हर व्यक्ति एक दूसरे से दूजा है और अलग-अलग विचारधारा रखता है। लेकिन कोई भी हो, वह मोदी को इग्नोर तो नहीं करता है। वह पीएम हैं, इसलिए नहीं, उनके पास जो अनुभव है, उसके आधार पर तुलना की जा रही है। मोदी के बारे में सिर्फ दो चीजें काम करती हैं। मोदी पसंद है या मोदी पसंद नहीं। बीच वाली कोई बात नहीं होती। जो मोदी को पसंद करते हैं वह मोदी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं और जो पसंद नहीं करते ,वह भी कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। पीएम मोदी का दो दिन का झारखंड दौरा बहुत कुछ दिखा गया। मोदी के समर्थकों के बीच उनके लिए अटूट प्रेम और विश्वास। मोदी को उनके समर्थक अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं। मोदी भी जब मंच से संबोधन करते हैं तो क्या आम, क्या खास, वे सभी को अपना बना लेते हैं। झारखंड में जो दीवानगी मोदी के लिए इन दो दिनों में दिखी वह विरले ही किसी नेता को मिलती होगी। झारखंड में गर्मी बेहिसाब है। चाइबासा, पलामू और सिसई में जिस हिसाब से गर्मी थी, बिना गमछा के अगर कुछ देर कोई शख्स खड़ा हो जाये, तो वह चक्कर खा कर गिर जाये, वैसी गर्मी में भी मोदी के प्रति जो दीवानगी जनता और उनके समर्थकों के बीच देखी गयी, उसकी तुलना करना शब्दों के बस की बात नहीं। वह एक भावना हैं, जैसे मोदी खुद एक भावना हैं। उनके एक-एक वाक्य पर लोग ऐसे रियेक्ट करते, जैसे वह शब्दों के साथ-साथ तैर रहे हों। यह भावना इसलिए सही लगती है ,चूंकि जो कुछ इन दो दिनों में मैंने देखा और महसूस किया, वह अद्भुत था। मोदी के काम को लेकर लोगों की राय अलग-अलग हो सकती है, लेकिन उनके व्यक्तित्व को लेकर मतभेद नहीं हो सकता। मोदी को सिर्फ देखने और सुनने जिस हिसाब से भीड़ की भीड़ आ रही थी मानो मेला लगा हो। बुजुर्ग डंडों के सहारे कई किलोमीटर की यात्रा कर के उन्हें सुनने आ रहे थे। सवाल पूछने पर सिर्फ कहते, मोदी आया है, मेरा राम मंदिर बनवा दिया। मोदी आया है मेरे राम को घर मिल गया। एक बुजुर्ग ने कहा कि देश को मोदी ही चला सकता है। उस बुजुर्ग की आंखें धूप से लाल थीं, लेकिन मोदी को देखने वह भी धीरे-धीरे गमछा ओढ़े जा रहा था। माताएं अपने दुधमुंहे बच्चों को लेकर तेज धूप में पैदल चल रही थीं ,सिर्फ मोदी को देखने। मैंने महिला से कहा भी कि बच्चा का सिर धूप से जल रहा है, महिला ने तुरंत अपने आंचल का छांव अपने बच्चे को दिया और चल पड़ी मोदी की सभा की ओर। यहां भाजपा कार्यकर्ताओं का भी रोल बड़ा अहम था। सबको पानी का पाउच बांटना, गमछा देना, कड़ी धूप में वे भी जनता के साथ कदमताल मिला रहे थे। ऐसे ही कोई पार्टी इतनी बड़ी नहीं बनती। ऐसे ही कोई मोदी नहीं बनता। पेश है मोदी का झारखंड के प्रति प्रेम, उनका लोगों के बीच कनेक्ट करने का तरीका और दोनों ओर (पीएम मोदी और जनता) के बीच भावनाओं का आदान-प्रदान, जिसे मुश्किल से शब्दों में बयां कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड के प्रति प्रेम और समर्पण
पीएम मोदी का दो दिन का झारखंड दौरा बहुत कुछ कह गया। झारखंडियों के प्रति उनके अटूट प्रेम की झलक तो मिली ही, आदिवासियों के प्रति उनका सम्मान भी साफ-साफ दिखा। यह सिर्फ इस दौरे की बात नहीं है, नरेंद्र मोदी जब भी झारखंड आते हैं और सभा को संबोधित करते हैं तो वह यह कहना नहीं भूलते कि झारखंड महान आदिवासी क्रांतिकारियों की धरती है। भगवान बिरसा मुंडा की भूमि है। वह जब यह बात कहते हैं तो उनकी आंखों और वाणी की ध्वनि भी उनकी भावना को और पुख्ता करती हैं। ये शब्द सिर्फ उनकी जुबां से नहीं निकलते, यह उनके अंतर्मन की ध्वनि होती है। मोदी ऐसे ही डंके की चोट पर यह नहीं कहते कि झारखंड से उनका दिल का रिश्ता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भी उन्होंने प्रस्तुत किया है। जब वह कहते हैं कि झारखंड को दिल्ली से बढ़ कर मानते हैं, तो इसका भी ठोस आधार है। इसे उन्होंने कई अवसरों पर साबित किया है। वैसे पीएम मोदी के लिए हर राज्य एक सम्मान है। लेकिन झारखंड उसमें सर्वोपरि है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले एक तरह से यह परिपाटी सी बन गयी थी कि जो भी केंद्रीय योजनाएं घोषित या लागू होंगी, उनकी घोषणा देश की राजधानी दिल्ली से ही होगी। लेकिन नरेंद्र मोदी ने इस परंपरा को तोड़ा। झारखंड से ही पीएम मोदी ने कई जन कल्याणकारी योजनाओं की शुरूआत की, जिसका लाभ आज पूरा देश उठा रहा है। पीएम मोदी कहते हैं कि झारखंड पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के स्तंभ रहे स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपयी की देन है, तो यह भी सिर्फ कहने के लिए नहीं कहते। सचमुच में अटल बिहारी वाजपेयी ने झारखंड को देश के क्षितिज पर राज्य के रूप में स्थापित किया था। मोदी का यह कहना भी अकारण नहीं है कि झारखंड और यहां के लोगों की भावनाओं को अगर कोई सबसे अच्छे से समझता है और समस्याओं को सुलझाता तो वह भाजपा ही है। जब अलग झारखंड की मांग थी। जब मोदी यह कहते हैं कि कांग्रेस झारखंड गठन का विरोध करती थी, तो यह भी हवा हवाई नहीं है। सचमुच में कांग्रेस चाहती तो झारखंड का गठन वह अपने शासन काल में कर देती, लेकिन सच तो यही है कि कांग्रेस उन दिनों लालू यादव के प्रभाव में थी और लालू यादव तो साफ कह चुके थे कि बिहार का बंटवारा कर झारखंड उनकी लाश पर बनेगा। कांग्रेस के शासनकाल में झारखंड सिर्फ और सिर्फ पठारी क्षेत्र बन कर रह गया था। पीएम मोदी का आरोप भी गलत नहीं है कि जब दिल्ली में बैठ कर कांग्रेस सरकार झारखंड के लिए योजनाएं बनाती थी, तो उसका 85 प्रतिशत हिस्सा गटक लिया जाता था। यह बात तो स्व राजीव गांधी ने कही थी। मोदी का यह कहना भी गलत नहीं है कि इंडी गठबंधन का झारखंड के प्रति प्रेम सिर्फ दिखावा है। कांग्रेस अगर सचमुच में आदिवासियों की हितैषी होती, तो अपने साठ साल के शासनकाल में वह जंगलों पर वहां निवास करनेवालों को हक दे दी होती। आदिवासियों की जमीन पर डाका नहीं पड़ता, जल तो संचित होता ही, खनिज संपदा पर भी यहां के लोगों का कुछ हद तक अधिकार होता।
झारखंड के प्रति मोदी के लगाव का पहला उदाहरण यह है कि वह पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने यह माना कि केंद्रीय योजनाएं सिर्फ दिल्ली से ही क्यों शुरू हों, झारखंड से क्यों नहीं? पीएम मोदी ने आयुष्मान भारत योजना की शुरूआत झारखंड से ही की। इस योजना के लागू होने से पहले गरीब यह सोच भी नहीं सकता था कि वह अपनी जान बचाने के लिए पांच लाख रुपये तक खर्च कर देगा। इस योजना से आज करोड़ों गरीबों को पांच लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज मिल रहा है। मुद्रा योजना की भी शुरूआत प्रधानमंत्री ने झारखंड के दुमका से ही की। इस योजना से कई नौजवानों और देशवासियों की किस्मत चमकी, भाग्य बदला। उनके हाथ मजबूत हुए। इस योजना के तहत एक व्यक्ति व्यापार शुरू करने के लिए 10 लाख रुपये तक ऋण ले सकता है। इससे पहले गरीबों की हालत यह थी कि वह बैंक की देहरी भी नहीं लांघ सकता था, बिना जमीन-जायदाद गिरवी रखे दस लाख रुपये का लोन लेना तो उसके लिए सपना था। पीएम जनधन योजना की शुरूआत भी झारखंड से हुई। भगवान बिरसा मुंडा के गांव से इस योजना की शुरूआत हुई। 24 हजार करोड़ रुपये की यह योजना अति-पिछड़े आदिवासी भाई-बहनों की जिंदगी बदल रही है। विकसित भारत वाली मोदी की गारंटी वाली गाड़ी भी झारखंड के खूंटी से ही शुरू हुई। आदिवासियों को सम्मान देने के लिए नरेंद्र मोदी ने भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयंती को जनजाति गौरव दिवस के रूप में मानाने की शुरूआत की। मोदी सरकार देशभर में आदिवासी गौरव के लिए जनजाति संग्रहालय बना रही है। आज देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पहले झारखंड की ही राज्यपाल थीं। यह आदिवासियों के प्रति मोदी के सम्मान का ही प्रतिफल है कि झारखंड में राज्यपाल के पद पर बैठी आदिवासी महिला अचानक रातोंरात देश के सबसे सर्वोच्च पद पर विराजमान हुर्इं। कांग्रेस ने तो राष्टÑपति के चुनाव के वक्त उनके खिलाफ उम्मीदवार तक उतार दिया। उसने यशवंत सिन्हा को विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार बना कर श्रीमती द्रोपदी मुर्मू के खिलाफ उतार दिया। अगर सचमुच में कांग्रेस का आदिवासियों के प्रति प्रेम होता, तो वह झारखंड या देश के किसी भी राज्य से किसी आदिवासी महिला या पुरुष को राष्टÑपति का उम्मीदवार बना सकती थी। राष्टÑपति के बारे में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन ने क्या-क्या आपत्तिजनक नहीं बोला, यह पूरा देश जानता है।
पीएम नरेंद्र मोदी से हर आम आदमी यूंही कनेक्ट नहीं करता
मोदी हर आम आदमी की भावनाओं को समझते हैं। मोदी डायरेक्ट पीएम नहीं बने हैं, न ही यह पद उन्हें विरासत में मिला है। इसके पीछे उनका संघर्ष, उनकी तपस्या, उनका समर्पण, उनका सब्र और देशहित में कुछ कर गुजरने की चाह है। उन्होंने गरीबी को बहुत नजदीक से देखा है। जिया है। इसलिए उन्हें गरीबों की पीड़ा कुछ ज्यादा ही समझ में आती है। पीएम मोदी को अहसास है कि जिस गरीबी को उनके जैसे परिवारों ने देखी है, वैसी गरीबी भारत के परिवार न देखें, जो अभाव चाहे वह खाने में हो, इलाज में हो उन्होंने झेला है, वह देश कीजनता नहीं झेले। इसलिए उन्होंने गरीबों के लिए मुफ्त राशन का प्रबंध किया है, ताकि कोई भी गरीब रात को पेट पकड़ कर भूखा नहीं सोये। पैसा नहीं रहने के कारण जो लोग इलाज नहीं करवा पाते थे और कई तो दम तोड़ देते थे, उनके लिए आयुष्मान भारत योजना की शुरूआत वरदान साबित हुई। मोदी हमेशा कहते हैं, जिसने अपनी मां को खाना बनाते, खांसते देखा ही नहीं, उसे क्या उन आंसुओं का मोल समझ में आयेगा। उज्ज्वला योजना की शुरूआत इसलिए की, ताकि कोई भी मां अगर अपने बच्चों के लिए खाना बनाये, तो उसके आंख धुएं से लाल न हों, ना ही उसके आंसू अग्नि में टपकें। मोदी का मानना है कि इन दस वर्षों में गरीब कल्याण की हर योजना की प्रेरणा खुद के जीवन के अनुभव से मिला है।
मोदी मौज के लिए नहीं मिशन के लिए पैदा हुआ है
मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, लेकिन आज भी उनके पास अपना घर नहीं है, न ही एक साइकिल है। पीएम मोदी कहते हैं कि उनकी संपत्ति देशवासियों का प्रेम है। वह अपने देशवासियों और बच्चों के लिए सुनहरे भारत और विकसित भारत की विरासत छोड़ कर जाना चाहते हैं। इसलिए वह इतनी मेहनत करते हैं। उनका कहना है कि मेरा तो देश ही परिवार है जी। वह तो कहते हैं कि मुझे पद का प्रलोभन नहीं है, झोला उठा कर आये थे, झोला उठा कर ही चले जायेंगे, लेकिन जो कार्य देश की जनता ने उन्हें सौंपा है, उसे पूरा कर के ही जायेंगे। जब तक देश की जनता का आदेश रहेगा, वह उनके मापदंड पर हमेशा खरा उतरने की कोशिश करेंगे। आज भारत का कद इंटरनेशनल मंच पर कितना बढ़ा ह, वह किसी से छिपा नहीं है। पहले जब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत बोलता था, तो उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाता था। लेकिन आज दुनिया भारत को सीरियसली लेती है। मोदी को सीरियसली लेती है, क्योंकि मोदी मौज के लिए नहीं मिशन के लिए पैदा हुआ है।