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    Home»दुनिया»चीन की विमान कंपनियों ने नेपाल का कानून मानने से क्या इनकार, सरकार को नहीं देतीं टैक्स
    दुनिया

    चीन की विमान कंपनियों ने नेपाल का कानून मानने से क्या इनकार, सरकार को नहीं देतीं टैक्स

    shivam kumarBy shivam kumarMay 18, 2025No Comments2 Mins Read
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    काठमांडू। चीन की विमान कंपनियां नेपाल के नियम कानून को नहीं मानती हैं। नेपाल आने वाले सभी विमानों की कंपनियां यहां की सरकार को टैक्स देती हैं, लेकिन चीन की कोई भी एयरलाइंस नेपाल सरकार को टैक्स नहीं देती हैं।

    नेपाल के ऑडिटर जनरल ने बीते दिनों अपनी वार्षिक रिपोर्ट सार्वजनिक की है। इसमें नेपाल में उड़ान भरने वाले चार चीनी एयरलाइंस कंपनियों के द्वारा सरकार के तरफ से निर्धारित टैक्स को नहीं देने पर सवाल खड़े किए हैं। सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट के मुताबिक एयर चाइना, साउदर्न चाइना एयरलाइंस, चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस और सिचुवान एयरलाइंस ने नेपाल सरकार के द्वारा निर्धारित टैक्स नहीं दिया है।

    ऑडिटर जनरल की रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि इन चारों चीनी एयरलाइंस कंपनियों से अन्य विदेशी एयरलाइंस की तरह टैक्स वसूला जाए। इसके मुताबिक दिसंबर 2024 तक इन चार चीनी एयरलाइंस कंपनी ने नेपाल सरकार को टैक्स नहीं देने से करीब 400 करोड़ रूपये का घाटा हुआ है। उन्होंने नेपाल सरकार को जल्द से जल्द टैक्स लेने अन्यथा इन विमान कंपनियों की सेवा सुविधा को बंद करने को कहा है।

    वित्त मंत्रालय में राजस्व सचिव रहे दिनेश घिमिरे ने शनिवार को कहा कि मंत्रालय के तरफ से बार बार चारों चीनी एयरलाइंस कंपनियों को टैक्स देने को लेकर पत्राचार किया गया, लेकिन उनके तरफ से कोई जवाब नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि शुरुआत में तो चीनी राजदूत ने मंत्रालय में आकर टैक्स नहीं देने की बात की थी। चीनी राजदूत का कहना था कि चीन सरकार का नियम है विश्व में कहीं भी किसी भी एयरपोर्ट पर लैंड करने और उड़ान करने के लिए अतिरिक्त टैक्स या वैल्यू एडेड टैक्स (VAT) नहीं देना पड़ता है। फिर नेपाल में क्यों दिया जाए।

    राजस्व सचिव ने बताया कि जब दुनिया की सारी एयरलाइंस कंपनिया नेपाल के नियम कानून का सम्मान करते हुए यह टैक्स देती हैं तो चीन की एयरलाइंस कंपनी को भी देना चाहिए। वित्त मंत्रालय की तरफ से नागरिक उड्डयन मंत्रालय को इनकी सेवा सुविधा को बंद कर लाइसेंस रद्द करने की भी सिफारिश की गई है, लेकिन राजनीतिक कमजोरी के कारण उस पर अमल नहीं किया जा रहा है।

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