चंद्रेश कुमार छतलानी: जिस छड़ी के सहारे चलकर वो चश्मा ढूंढने अपने बेटे के कमरे में आए थे, उसे पकड़ने तक की शक्ति उनमें नहीं बची थी। पलंग पर तकिए के नीचे रखी जहर की डिबिया को देखते ही वह अशक्त हो गये। कुछ क्षण उस डिबिया को हाथ में लिए यूं ही खड़े रहने के बाद उन्होंने अपनी सारी शक्ति एकत्र की और चिल्लाकर अपने बेटे को आवाज दी, प्रबल! यह क्या है..? बेटा लगभग दौड़ता हुआ अंदर पहुंचा, और अपने पिता के हाथ में उस डिबिया को देखकर किंकर्तव्यविमूढ होकर खड़ा हो गया।
उन्होंने अपना प्रश्न दोहराया, यह क्या है? जी, यह रौनक के लिए बेटे ने आंखें झुकाकर लड़खड़ाते स्वर में कहा। सुनते ही वो आश्चर्यचकित रह गये, लेकिन दृढ़ होकर पूछा, क्या! मेरे पोते के लिए ? तूने यह सोच भी कैसे लिया? पापा, पन्द्रह साल का होने वाला है वह, और मानसिक स्तर पांच साल का ही कोई इलाज नहीं उसे अर्थहीन जीवन से मुक्ति मिल जायेगी, बेटे के स्वर में दर्द छलक रहा था। उनकी आंखें लाल होने लगी, जैसे-तैसे उन्होंने अपने आंसू रोके, और कहा, बूढ़े आदमी का मानसिक स्तर भी बच्चों जैसा हो जाता है, तो फिर इसमें से थोड़ा सा मैं भी। उन्होंने हाथ में पकड़ी जहर की डिबिया खोली ही थी कि उनके बेटे ने हल्का_ सा चीखते हुए कहा, पापा! बस और डिबिया छीन कर फैंक दी। वो लगभग गिरते हुए पलंग पर बैठ गए। उन्होंने देखा कि जमीन पर बिखरा हुआ जहर बिलकुल पन्द्रह साल पहले की उस नीम-हकीम की दवाई की तरह था, जिससे केवल बेटे ही पैदा होते थे और उन्हें उस जहर में डूबता हुआ उनकी पुत्रवधू का शव और अपनी गोद में खेलता पोते का अर्धविकसित मस्तिष्क भी दिखाई देने लगा।
मांस का मूल्य
मगध के सम्राट् श्रेणिक ने एक बार अपनी राज्य-सभा में पूछा कि- देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है? मंत्री-परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये। चावल, गेहूं, आदि पदार्थ तो बहुत श्रम बाद मिलते हैं और वह भी तब, जबकि प्रकृति का प्रकोप न हो। ऐसी हालत में अन्न तो सस्ता हो नहीं सकता। शिकार का शौक पालने वाले एक अधिकारी ने सोचा कि मांस ही ऐसी चीज है, जिसे बिना कुछ खर्च किये प्राप्त किया जा सकता है। उसने मुस्कराते हुए कहा-राजन! सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ तो मांस है। इसे पाने में पैसा नहीं लगता और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है।