रांची: 10 जून को पिठोरिया के किसान कलेश्वर महतो ने आत्महत्या कर ली थी। 15 जून को सुतियांबे के किसान बलदेव महतो की लाश उसके घर के पास खेत में बने कुएं से मिली। इन दोनों खबरों ने सबको झकझोर कर रख दिया। आजाद सिपाही की टीम भी पहुंचे थी सुतियांबे गांव। दोपहर तक तो तेज धूप थी, लेकिन शाम ढलते ही झर-झर हवाएं चलने लगीं। वहां मुलाकात हुई महेश मुंडा से, जो घर के सामने पत्थर के टीले पर पेड़ की छांव में बैठा था। हाइस्कूल तक पढ़ाई की है। अब खेती ही मुख्य पेशा है। दादाजी बूढ़े हो गये हैं, वे भी पास में पेड़ के नीचे आराम फरमा रहे थे। चाचाजी बगल के खेत में कच्चू लगा रहे थे। महेश ने बताया कि खेत में फूलगोभी और बीन लगा चुके हैं। कुछ और सब्जियों के बीज लगाये गये हैं। बताते हैं कि प्रचंड गर्मी में पानी की दिक्कत होती है, सो सब्जियां नहीं लगाते हैं, नहीं तो सालों भर सब्जी का उत्पादन करते हैं। रोजाना सुबह छह से लेकर नौ बजे तक पिठोरिया चौक पर डेली मार्केट में बेच आते हैं। कुछ इसी तरह जिंदगी गुजर रही है। मुश्किल तो तब खड़ी हो जाती है, जब उन्हें नकली बीज मिल जाता है। नकली बीज के कारण न तो पौधे ठीक से उगते हैं और उग गये, तो उसमें न फल आते हैं और न ही उसमें फूल आते हैं। बैंक से ऋण लेकर बीज खरीदते हैं। खेत में लगाते हैं, जब फसल नष्ट हो जाती है, तो उनकी कमर ही टूट जाती है। रही-सही कसर रूठा मानसून कर देता है।
एक तरफ प्राकृतिक प्रकोप, तो दूसरी तरफ कृषि संबंधित सामग्री के विक्रेताओं की कारस्तानी किसानों पर भारी पड़ रही है। इन दिनों धान का बिचड़ा डालने का पिकआवर चल रहा है। इसके लिए बीज की मांग बढ़ी और मुनाफे के लिए धान का नकली बीज बेचने वाले दुकानदार सक्रिय हो गये हैं। किसानों की आंख में धूल झोंक कर बड़े पैमाने पर ब्रांडेड बोरी में नकली बीज धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। इसके अलावा फूलगोभी, पत्तागोभी, सोयाबीन, बरबट्टी आदि के नकली बीज धड़ल्ले से बेचे जा रहे हैं। किसानों को पता भी नहीं चलता कि दुकानदार उन्हें हजारों रुपयों का चूना लगा दिये हैं। पिछले साल नकली बीजों ने किसानों की कमर तोड़ दी थी। हाइब्रिड नकली बीज से काफी नुकसान हुआ था। चाहे वह किसी भी क्वालिटी का बीज हो। धान का बिचड़ा अंकुरित होते ही मुरझाकर सूख गये थे।
छोटे खेत क्यों हैं घाटे का सौदा?
छोटे खेत वाले किसानों के पास खेती के पर्याप्त साधन, सिंचाई की व्यवस्था आदि का अभाव होता है और इस सबके लिए उन्हें मोटर पंप और सिंचाई कूप पर निर्भर रहना पड़ता है। छोटे किसानों के लिए खेती के साधन जुटाना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। इसके अलावा क्रय-विक्रय में छोटे किसानों की मोलभाव क्षमता भी कम होती है। ऐसे में जैसे-जैसे खेतों का आकार छोटा होता जा रहा है, किसानों को होने वाला फायदा भी कम होता जा
रहा है।
किसानों के लिए विकल्पों की तलाश जरूरी
खेती अकेले किसानों और ग्रामीण मजदूरों को रोजगार नहीं दे सकती है। सरकार को खेती से जुड़े लोगों को दूसरे व्यवसायों में अवसर देने के उपाय करने होंगे। ऐसे लोगों में वैकल्पिक स्किल्स पैदा करने और रोजगार के अवसर मुहैया कराने होंगे। यही नहीं ऐसे लोगों को अस्थायी रोजगार देने पर भी फोकस करना होगा। साथ ही किसानों को उनकी फसल की अच्छी कीमत मिले, यह व्यवस्था करनी होगी। इसके लिए बाजार उपलब्ध कराना होगा, क्योंकि फसल खरीदनेवाले दलाल उन्हें अच्छी कीमत देने से तो रहे।
कृषि उत्पादों पर कम मूल्य और कर्ज का बढ़ता बोझ ही उनकी मुख्य समस्याएं नहीं हैं। दरअसल कृषि के ढांचे में ही कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिनका कर्ज माफी जैसे अस्थायी उपायों से समाधान नहीं हो सकता। किसानों को चाहिए सिंचाई के लिए साधन (डीप बोरिंग, कुआं, डोभा, तालाब), उन्नत किस्म के बीज, अच्छे कृषि उपकरण और उत्पादित फसल की बाजार में अच्छी कीमत। क्योंकि आज भी इनके बाजुओं में इतनी ताकत है कि वे पत्थर चीर कर भी सब्जियां उगाने में सक्षम हैं।
पीढ़ी दर पीढ़ी खेती के विभाजित होने से खेतों का आकार घटता जा रहा है। खेतों का आकार छोटा होने से कृषि उत्पादन और फसलों से होने वाली बचत में कमी आ रही है। यहां के किसानों के पास अच्छे कृषि उपकरण नहीं हैे। महेश मुंडा के पास भी खेत जोतने के लिए दो भैंस हैे। कहते हैं कि किराये पर ट्रैक्टर लाते हैं, तो 800 रुपये प्रतिघंटा लेता है। ऐसे में मेहनत और समय ज्यादा लगता है, जिससे खेती की लागत बढ़ जाती है।