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    Home»Top Story»थोड़ा तो शर्म करो सुशासन बाबू, अगर आंख में पानी हो
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    थोड़ा तो शर्म करो सुशासन बाबू, अगर आंख में पानी हो

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJune 19, 2019Updated:June 19, 2019No Comments10 Mins Read
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    रांची। बिहार रो रहा है। फुट-फुट कर रो रहा है। बच्चे तड़प रहे हैं। दम तोड़ रहे हैं। मां-बाप की दहाड़ें सुनाई दे रही हैं। इस समय खासकर मुजफ्फरपुर में त्रासदी जैसा माहौल है। चमकी बुखार से मासूमों की मौत का लगातार आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। मंगलवार को भी चार और मासूमों ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया। इसके साथ ही यह आंकड़ा 112 तक जा पहुंचा। यहां हर तरफ रुदन, क्रंदन, चीत्कार है। लोगों का गुस्सा फूट रहा है। एक तरफ पूरा बिहार इस महामारी से भयाक्रांत था, तो दूसरी तरफ सुशासन बाबू चैन की चादर ओढेÞ भविष्य की रणनीति तय कर रहे थे। उनकी सारी जुंबिश इसलिए हो रही थी कि कैसे देश के कुछ राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का चेहरा चमके और उनकी तसवीर राष्टÑीय स्तर पर स्थापित हो। चीख-पुकार से दूर वे दिल्ली के एयरकंडीशंड कमरों में अपने नेताओं के साथ बैठ कर भविष्य की राजनीतिक रूपरेखा तैयार कर रहे थे। एक तरह से मुजफ्फरपुर का रास्ता वे भूल ही गये थे। 18वें दिन उन्हें अचानक मुजफ्फरपुर याद आया। वे लाव-लश्कर के साथ वहां गये। एयरकंडीशंड कमरे में बैठक की और यह आश्वासन देकर चले आये कि इस बीमारी से जो भी बच्चा मरेगा, उसके परिजन को चार लाख रुपये दिये जायेंगे। परिवार के लोगों को बीमार को अस्पताल लाने पर आने-जाने का भाड़ा मिल जायेगा। लेकिन सुशासन बाबू ने इस पर एक शब्द भी नहीं बोला कि एक-एक बेड पर जो तीन-तीन बच्चे सोये हैं, उनका समुचित इलाज वे कैसे करायेंगे। सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार की इस बेरुखी पर पूरे देश में सवाल उठ रहे हैं। पूरा देश जानना चाहता है कि सुशासन का दावा और पारदर्शिता की दुहाई के बीच नीतीश सरकार की यह कैसी बेरुखी है? बिहार का भविष्य लचर सिस्टम के आगे हार रहा है। और यहां का राजा चैन की बांसुरी बजा रहा है। उसके चेहरे पर गम और उदासी नहीं, बल्कि कुटिल मुस्कान दिख रही है। उसका हाव-भाव ऐसा है, मानो कुछ हुआ ही नहीं हो।
    मंजर देख पत्थरदिल इंसान भी रो रहा है…

    मुजफ्फरपुर की स्थिति देख पत्थरदिल इंसान भी रो रहा है, लेकिन अपने सुशासन बाबू की आंखों से पानी गायब है। वह मंगलवार को देखने तो पहुंचे, लेकिन महज कोरम पूरा किया। क्या यह वही नीतीश कुमार हैं, जो गांव की पगडंडियों से निकल कर लोगों का दुख-दर्द बांटते थे। आज के नीतीश कुमार बदल गये हैं। उन्हें एसी में रहने की आदत जो हो गयी है। वह गरीबों का दर्द नहीं समझ पा रहे हैं। एक बेड पर तीन-तीन बच्चों का इलाज होता देख गरीब और पत्थरदिल इंसान का कलेजा भी फट रहा है, लेकिन सुशासन बाबू की आंखों का पानी मानो सूख गया है। बेड पर पड़े बच्चों की मां अपने बच्चे को दिनभर पुचकार रही है। उसका तो अब सिस्टम से भरोसा भी उठ गया है।
    वहीं दूसरी ओर जब कोई बच्चा दम तोड़ रहा है, और उसकी मां दहाड़ें मार रही है, तो दूसरी बीमार बच्चों के माता-पिता का दिल बैठ जा रहा है। आखिर कौन मां होगी, जो अपने कलेजे के टुकडेÞ को गोद में लिये इस हाल में देखना चाहेगी। देशभर में इन बच्चों के लिए दुआओं का दौर जारी है।
    पूरे अस्पताल में इन दिनों मातम का माहौल है। कोई अपने बच्चे को खोने पर रो रहा है, तो कोई मरणासन्न अवस्था में अपने बच्चे को देख लाचार होकर खुद को कोस रहा है। एइएस से दम तोड़ रहे ज्यादातर बच्चे बेहद गरीब परिवारों से हैं। ये परिवार पूरी तरह सरकारी व्यवस्था पर आश्रित हैं, मगर अस्पतालों में दवा, डॉक्टर, सुविधाओं, इच्छाशक्ति हर चीज की कमी है।
    एइएस से बच्चों की मौत पर सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक सरकार के खिलाफ गुस्सा है।
    18 दिन बाद नीतीश की नींद खुली, दिखावटी मरहम लगाया
    18 दिन में 112 मांओं की गोद सूनी होने के बाद अंतत: कुंभकर्णी नींद में सोये नीतीश कुमार की आंखें खुलीं। मंगलवार को वह मासूमों की मौत और जिंदगी की जंग लड़ रहे मासूमों के परिजनों पर दिखावटी मरहम लगाने पहुंचे। वहां भी जनता उनकी कुटिल चाल को भांप गयी और उन्हें देखते ही आक्रोशित हो गयी। वहां नीतीश जितनी देर रहे, उन्हें भारी विरोध झेलना पड़ा। गो बैक-गो बैक के लतागार नारे लगते रहे। बिहार में चमकी के तांडव से अब तक 128 और सिर्फ मुजफ्फरपुर में 112 बच्चों के काल कवलित हो जाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह सुध आयी कि अब उन्हें वहां का दौरा करना चाहिए। वह मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल पहुंचे। डॉक्टरों को इलाज में लापरवाही नहीं बरतने की घुट्टी पिलायी और चलते बने। हां, जाते-जाते इतना जरूर कह गये कि इलाज में धन की कमी आड़े नहीं आयेगी। मतलब, संसाधनों की कमी नहीं होने देंगे। अस्पताल का सच यह है कि वहां एक-एक बेड पर तीन-तीन बच्चे मौत से लड़ रहे हैं और पूरे अस्पताल में मात्र तीन डॉक्टर हैं।
    उनके सहारे ही सैकड़ों की संख्या में चमकी से पीड़ित बच्चों को जिंदगी की जंग जीतने को छोड़ दिया गया है। यहां उल्लेख करना जरूरी है कि मई के अंत से ही मुजफ्फरपुर में चमकी का आतंक पसरा हुआ है। अस्पताल ही नहीं, गांव का गांव रुदन-क्रंदन और चीत्कार से हिल गया है। हर घर में भय और दहशत का माहौल है कि न जाने चमकी अब किस बच्चे को अपने आगोश में ले ले। लेकिन नीतीश कुमार थे कि उनके कानों में यह क्रंदन जा ही नहीं रहा था। उनकी सारी चिंता यह थी कि कैसे केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें तीन बड़ी बर्थ मिले। जब नहीं मिली, तो उन्हें धारा 370 और तीन तलाक की वकालत करनेवालों की सुध आ गयी और वे कहने लगे कि धारा 370 हटाना आसान नहीं है। यही नहीं, उन्हें यह भी याद आ गया कि कुछ दिनों बाद जहां विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां पार्टी का चेहरा चमकना चाहिए, सो बिहार के ही अपने सांसदों और मंत्रियों के साथ बैठक करने के लिए वह दिल्ली चले गये। यही नहीं, इस दरम्यान वे पश्चिम बंगाल की समस्या से भी अवगत होते रहे, लेकिन बिहार और खासकर मुजफ्फरपुर की आपदा उन्हें झकझोर नहीं पायी।
    चमकी से पीड़ित बच्चों की संख्या 414 पहुंची
    सरकार एक्शन का दावा कर रही है, तो वहीं अभी भी अस्पतालों में भर्ती बीमार बच्चों की संख्या बढ़ कर 414 हो गयी है। चमकी बुखार से पीड़ित ज्यादातर मरीज मुजफ्फरपुर के सरकारी श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल और केजरीवाल अस्पताल में एडमिट हैं। अब तक एसकेएमसीएच हॉस्पिटल में 89 और केजरीवाल अस्पताल में 19 बच्चों की मौत हो चुकी है। इधर, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के खिलाफ बीमारी से पहले एक्शन नहीं लेने के आरोप में केस दर्ज हुआ है। बच्चों की मौत पर मानवाधिकार आयोग ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भेजा है।
    मानवाधिकार आयोग ने मांगी रिपोर्ट
    राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मुजफ्फरपुर जिले में इंसेफेलाइटिस वायरस की वजह से बच्चों की मौत की बढ़ती संख्या पर सोमवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और बिहार सरकार से रिपोर्ट दाखिल करने के लिए एक नोटिस जारी किया है। मानवधिकार आयोग ने कहा कि सोमवार को बिहार में एइएस से मरनेवाले बच्चों की संख्या बढ़कर 108 हो गयी है और राज्य के अन्य जिले भी इससे प्रभावित हैं। इसके साथ ही आयोग ने इंसेफेलाइटिस वायरस और चमकी बुखार की रोकथाम के लिए उठाये गये कदमों की स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी है। मानवाधिकार आयोग ने चार हफ्तों में जवाब मांगा है।
    17 दिन में समीक्षा और 112 की मौत की चीख क्यों नहीं सुनायी पड़ी?
    मीडिया में आ रही मौत की खबरों के 17 दिन बाद सीएम नीतीश कुमार ने उच्चस्तरीय बैठक की। वहीं 18वें दिन बच्चों के परिजनों की सुध लेने की याद आयी। बिहार में महामारी की तरह फैल रहे चमकी बुखार को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उच्च स्तरीय बैठक में चिंतित दिखे। बैठक के बाद मुख्य सचिव दीपक कुमार ने बताया कि सरकार ने फैसला किया है कि उनकी टीम हर उस घर में जायेगी, जिस घर में इस बीमारी से बच्चों की मौत हुई है। टीम बीमारी के बैक ग्राउंड को जानने की कोशिश करेगी। क्योंकि सरकार अब तक यह पता नहीं कर पायी है कि आखिर इस बीमारी की वजह क्या है। कई विशेषज्ञ इसकी वजह लीची वायरस बता रहे हैं, लेकिन कई ऐसे पीड़ित भी हैं, जिन्होंने लीची नहीं खायी है।
    चमकी बुखार से 12 जिले प्रभावित
    नीतीश कुमार की बैठक में फैसला किया गया कि चमकी से प्रभावित बच्चों को नि:शुल्क एंबुलेंस मुहैया करायी जायेगी और पूरे इलाज का खर्च सरकार उठायेगी। वहीं इस बीमारी से मरनेवालों के परिजनों को चार लाख रुपये मुआवजा दिया जायेगा। स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने कहा कि चमकी बुखार से बिहार के कुल 12 जिले के 222 प्रखंड प्रभावित हैं, लेकिन इनमें से 75 प्रतिशत केस मुजफ्फरपुर में हैं।
    सरकार और प्रशासन दोनों रहे नाकाम
    स्थानीय लोगों का कहना है कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह से जर्जर है। गांव में स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव है और जहां केंद्र है, वहां डॉक्टर नहीं हैं। अज्ञात बुखार के बारे में जांच, पहचान एवं स्थाई उपचार के लिए स्थानीय स्तर पर एक प्रयोगशाला स्थापित करने की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन इस बारे में कोई कदम नहीं उठाया गया। वहीं एक डॉक्टर के मुताबिक अस्पताल में इस समय मरीजों की संख्या काफी ज्यादा है। उन्होंने कहा कि हम भले ही एक बेड पर 2 मरीज रख रहे हैं, लेकिन उनका इलाज लगातार जारी है। आपको बता दें कि वर्ष 2000 से 2010 के दौरान इस बीमारी की चपेट में आकर 1000 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी। सबसे खतरनाक बात यह है कि अभी तक इस बीमारी की साफ वजह पता नहीं चल पायी है।
    नीतीश के नहीं आने पर उठ रहे थे सवाल
    चमकी बुखार से मौत के बढ़ते आंकड़े और स्थिति के बद से बदतर होने के बावजूद सीएम नीतीश कुमार के मुजफ्फरपुर नहीं आने पर लगातार सवाल उठ रहे थे। मीडिया से लेकर विपक्ष तक हमलावर था। लोगों में भी भारी आक्रोश था। इसी का नतीजा रहा कि नीतीश कुमार के दौरे के चलते अस्पताल में सुरक्षा चाक-चौबंद कर दी गयी थी। ऐसे में मरीजों और उनके परिवारों को और अधिक मुसीबतों का सामना कर पड़ा।
    नीतीश के काफिले को लेकर अस्पताल में अन्य वाहनों का प्रवेश रोक दिया गया था। गेट पर सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिये गये थे। इसके कारण पीड़ित बच्चों के परिजन बाहर ही खड़े रहे। यही नहीं, यहां अस्पताल परिसर को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया था। पुलिसकर्मियों को यह खास हिदायत थी कि कोई भी अजनबी चेहरा नीतीश कुमार के आसपास नहीं फटकने पाये। कोई भी व्यक्ति काला कपड़ा नहीं दिखाये। डॉक्टर भी इस दौरान नीतीश कुमार का ही चक्कर काटते रहे। नीतीश कुमार को सिर्फ उस केंद्र में ले जाया गया, जिसे धो-पोछ कर चकाचक किया गया था। जिन वार्डों में एक बेड पर तीन-तीन बच्चे थे उन्हें नहीं ले जाया गया। वे आये, घूमे, बैठक किये, आश्वासनों की घुट्टी पिलाये और चलते बने। अस्पताल की वही स्थिति है, जैसी कल थी। भविष्य में भी सुधरने की कोई उम्मीद नहीं है।
    झारखंड में भी जारी किया गया अलर्ट
    बिहार में चमकी से मचे हाहाकार के बाद झारखंड सरकार भी अलर्ट मोड में आ गयी है। स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने निर्देश दिया है कि सभी अस्पताल और डॉक्टर अलर्ट मोड में रहें। बीमारी फैलने की स्थिति में तुरंत इलाज के साथ आवश्यक एहतियात बरती जाये।

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