24 मार्च को जब कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन का एलान किया गया था, झारखंड में संक्रमण का कोई मामला नहीं था। लेकिन आज यह संख्या एक हजार के पार जा चुकी है और अगले 24 घंटे में लॉकडाउन खत्म होने का पहला चरण, यानी अनलॉक-1 शुरू होनेवाला है। यह झारखंड के लिए बेहद खतरनाक और चिंतनीय स्थिति है, क्योंकि यहां जिस रफ्तार में संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है, राज्य की तबाही की आशंका उतनी ही बलवती होती जा रही है। झारखंड में कोरोना संक्रमण का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ रहा है, उससे साफ हो गया है कि बाहर से आनेवाले प्रवासी अपने साथ इस वायरस को ला रहे हैं। संक्रमितों की बढ़ती संख्या के बीच सुकून की बात इतनी है कि यह बीमारी अब तक जानलेवा नहीं हुई है और अधिकांश संक्रमित स्वस्थ हो रहे हैं। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है कि झारखंड के 85 फीसदी संक्रमितों में कोरोना का कोई लक्षण नहीं पाया गया है। यह बेहद खतरनाक है, क्योंकि बिना लक्षण वाले संक्रमितों की पहचान बेहद मुश्किल है। झारखंड को अब सतर्क हो जाने की जरूरत है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया गया और अनलॉक-1 के साथ जैसे ही लोग घरों से बाहर निकल कर सामान्य दिनचर्या में लौटने लगेंगे, यह संक्रमण दोगुनी तेजी से फैलेगा। उस स्थिति में अपने सीमित स्वास्थ्य संसाधनों के साथ झारखंड के लिए इस पर नियंत्रण पाना असंभव हो जायेगा। इसलिए झारखंड को बचाने के लिए अब अत्यधिक सतर्कता अनिवार्य है। कोरोना की विस्फोटक स्थिति की पृष्ठभूमि में झारखंड के वर्तमान हालात का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

झारखंड में इन दिनों हर शाम घरों और चौक-चौराहों पर इसी बात की चर्चा होती है कि आज कितने मरीज मिले और कितने ठीक होकर घर लौटे। इस बात की चर्चा शायद ही होती है कि कितने सैंपलों की जांच की गयी और कितने लोगों को क्वारेंटाइन किया गया। आम तौर पर चिकित्सा विज्ञान की ये शब्दावलियां आज घर-घर में प्रचलित हो गयी हैं। वैश्विक महामारी के कारण 25 मार्च को किये गये देशव्यापी लॉकडाउन के खत्म होने का पहला चरण आठ जून से शुरू हो रहा है, लेकिन इस कदम से पहले झारखंड जैसे राज्यों की खतरनाक स्थिति पर शायद ध्यान नहीं दिया गया, जहां संक्रमण का ग्राफ बड़ी तेजी से ऊपर की ओर जा रहा है। झारखंड में कोरोना का पहला मामला 31 मार्च को सामने आया था और शनिवार छह जून की रात तक यह संख्या 1028 तक पहुंच गयी। इसका सीधा मतलब यही है कि झारखंड कोरोना विस्फोट के मुहाने पर खड़ा है और यदि अब भी सतर्कता नहीं बरती गयी, तो अगले कुछ दिनों में स्थिति बेकाबू हो सकती है।
झारखंड में कोरोना संक्रमण की यह स्थिति बाहर से आनेवाले लोगों के कारण पैदा हुई है, इस बात में अब कोई संदेह नहीं रह गया है। लेकिन इसके साथ ही चिकित्सकीय प्रबंधन में लापरवाही को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जमशेदपुर, चाईबासा, गुमला, सिमडेगा, धनबाद जैसी जगहों से ऐसी सूचनाएं लगातार आ रही हैं, जिनमें कहा गया है कि लोगों के सैंपल की रिपोर्ट आने से पहले ही उन्हें घर भेज दिया जा रहा है। बाद में जब उनके संक्रमित होने की पुष्टि होती है, तब तक वे दर्जनों लोगों में संक्रमण फैला चुके होते हैं। यह सिलसिला लगातार जारी है। इसे तत्काल बंद किये जाने की आवश्यकता है।
झारखंड में संक्रमितों की संख्या पिछले नौ दिनों में दोगुनी हो गयी है, लेकिन सबसे चिंताजनक बात यह है कि 85 प्रतिशत संक्रमितों में कोरोना के कोई लक्षण नहीं मिल रहे। यहां तक कि उनमें सामान्य फ्लू के लक्षण भी नहीं दिख रहे। ऐसे में संक्रमितों की पहचान का एकमात्र उपाय कोरोना जांच ही है। झारखंड के पास आज महज 17 हजार से कुछ अधिक टेस्टिंग किट हैं, जो हर नजरिये से अपर्याप्त हैं। सवा तीन करोड़ की आबादी वाले राज्य में इतनी कम संख्या में टेस्टिंग किट होना दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। राज्य की स्वास्थ्य मशीनरी पूरी ताकत से संक्रमण को फैलने से रोकने में लगी है, लेकिन आम लोगों का व्यवहार और उनकी आदतों से इन तमाम कोशिशों पर पानी फिर जा रहा है।
कोरोना संकट के इस दौर में एक बात सुकून पहुंचानेवाली है कि झारखंड में मृत्यु की दर बहुत कम है। पिछले ढाई महीने में महज सात लोगों की मौत साबित करती है कि झारखंड के लोेग अपनी प्रतिरोधक क्षमता के कारण कोरोना को मात देने में सफल हो रहे हैं। लेकिन संक्रमितों की संख्या यदि इसी रफ्तार से बढ़ती रही और हर आठवें दिन आंकड़ा दोगुना हो जाये, तो इस हिसाब से अगले कुछ दिनों में झारखंड में स्थिति अनियंत्रित हो जायेगी। तब हमारे सामने हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा।
इसलिए अब समय आ गया है कि झारखंड के लोग, यहां की स्वास्थ्य मशीनरी और यहां का प्रशासन सतर्क हो जाये। मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि सरकार की पहली चिंता लोगों की जान बचाने की है और इसके लिए हरसंभव कदम उठाये जायेंगे। आठ जून से लॉकडाउन में मिलनेवाली छूटों का झारखंड में बेजा लाभ नहीं उठाया जाये, यह सुनिश्चित करना होगा। झारखंड के लोग जितनी सतर्कता बरतेंगे, राज्य की स्वास्थ्य मशीनरी पर उतना ही कम दबाव पड़ेगा और तब संक्रमितों की देखभाल भी अच्छे तरीके से हो सकेगी। इसके साथ ही संसाधन जुटाने के मोर्चे पर भी अतिरिक्त सक्रियता दिखानी होगी। राज्य को बड़ी संख्या में टेस्टिंग किट की जरूरत है। इस जरूरत को पूरा करने के लिए राज्य सरकार को तत्काल केंद्र से बात करनी होगी, क्योंकि यह केंद्र के अधिकार क्षेत्र की बात है। संक्रमण की पहचान जितनी तेजी से होगी, उस पर नियंत्रण पाना उतना ही आसान होगा, इस हकीकत को ध्यान में रख कर आगे की रणनीति बनानी होगी।
कुल मिला कर स्थिति चिंताजनक है। यदि झारखंड में संक्रमण फैलता है, तो इसका सीधा असर पूरे देश पर पड़ेगा। इसलिए पूरे देश को इस खतरे को टालने के लिए तत्काल सक्रिय होने की जरूरत है। इस क्रम में भले ही लॉकडाउन को आगे बढ़ाना पड़े और सख्ती बरतनी पड़े, तो भी ऐसा किया जाना चाहिए, क्योंकि जान है तो जहान है, यह कहावत बहुत पुरानी है।

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