कोरोना के कारण सवा दो महीने के लॉकडाउन से सर्वाधिक प्रभावित प्रवासी मजदूर रहे। सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर से भारी मुसीबतों का सामना कर घर लौटनेवाले इन प्रवासी मजदूरों की सबसे बड़ी चिंता रोजी-रोटी की है। झारखंड में करीब साढ़े छह लाख मजदूर लौट चुके हैं और इनमें से अधिकांश ने अब कभी बाहर नहीं जाने की बात कही है। ऐसे में इनके लिए काम की व्यवस्था करना राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती थी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पहले ही घोषणा की थी कि इन श्रमिकों को झारखंड में ही काम दिया जायेगा, ताकि झारखंड के माथे पर लगा पलायन का कलंक हमेशा के लिए मिट सके। आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि हेमंत सोरेन की यह घोषणा जमीन पर उतर कर आकार लेने लगी है। राज्य में मनरेगा के तहत मई महीने में पांच लाख लोगों को काम दिया गया। इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने के बावजूद राज्य सरकार की ओर से कहीं कोई प्रचार नहीं किया जाना साबित करता है कि यह सरकार काम करने में विश्वास करती है। इतना ही नहीं, राज्य सरकार ने लौटनेवाले करीब सवा लाख प्रवासी श्रमिकों का जॉब कार्ड भी खोल दिया है और इन्हें काम देने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। यह सचमुच हैरान करनेवाला है। सबसे खास बात यह है कि हेमंत सरकार ने इस शानदार उपलब्धि को प्रचारित-प्रसारित भी नहीं किया है। झारखंड में प्रवासी मजदूरों को काम देने के मोर्चे पर हासिल की गयी इस उपलब्धि का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
घटना एक मई की है। कोरोना के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के सवा महीने बीत चुके थे। लोग घरों में बंद थे। देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूर घर लौटने की जद्दोजहद में थे। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बाण भी चल रहे थे। तभी टीवी पर एक फ्लैश चला, जिसमें कहा गया था कि करीब 12 सौ श्रमिकों को लेकर तेलंगाना से एक विशेष ट्रेन रवाना हुई है, जो झारखंड जायेगी। यह खबर इतनी चौंकानेवाली थी कि सहसा किसी को विश्वास नहीं हुआ कि प्रवासी श्रमिकों को लेकर देश में सबसे पहले विशेष ट्रेन झारखंड के लिए चली। ट्रेन रात को हटिया पहुंची और उसके साथ ही देश भर में श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का सिलसिला शुरू हो गया। इसी तरह लेह और अंडमान निकोबार में फंसे श्रमिकों के लिए झारखंड सरकार ने विशेष विमान का इंतजाम किया और उसका यह काम देश भर में चर्चित हुआ।
लेकिन इन चर्चाओं के बीच आम लोगों को इस बात का पता तक नहीं चला कि हेमंत सोरेन सरकार घर लौटे प्रवासी श्रमिकों को काम देने में जुट गयी है। लॉकडाउन के दरनम्यान ही मई महीने में हेमंत सोरेन सरकार पांच लाख लोगों को काम दे चुकी है। किसी को कानो-कान भनक भी नहीं लगी और राज्य सरकार ने अपनी घोषणाओं को जमीन पर उतार भी दिया। लॉकडाउन के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा शुरू की गयी तीन योजनाओं के तहत इन मानव दिवस का सृजन किया गया और क्वारेंटाइन की अवधि पूरी कर चुके लोगों को काम पर लगाया गया।
यह काम इतना योजनाबद्ध तरीके से किया गया कि कहीं कोई खामी नजर नहीं आयी। घर लौटनेवाले करीब सवा लाख प्रवासी श्रमिकों का जॉब कार्ड भी खुल गया है और उन्हें काम मिलने का रास्ता साफ हो गया है। राज्य सरकार ने जून महीने में 10 लाख लोगों को काम देने का लक्ष्य रखा है और यदि यह पूरा हो गया, तो मनरेगा के तहत यह एक कीर्तिमान होगा। लौटनेवाले श्रमिकों को घर में ही काम देने की घोषणा जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने की थी, तब बहुत से लोगों को लगा था कि यह संभव ही नहीं है। लेकिन अब पता चल रहा है कि अगर किसी काम को लेकर गंभीर इच्छाशक्ति हो, तो वह काम असंभव नहीं होता। सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली को देखते हुए यह असंभव लगता है कि सरकारी क्वारेंटाइन से निकलनेवाले लोगों को तत्काल काम मिल जाये, लेकिन झारखंड में यह हकीकत है। अब राज्य सरकार ने कहा है कि राज्य की हर पंचायत में मनरेगा के तहत कम से कम पांच नयी योजनाओं पर काम शुरू किया जाये और न्यूनतम ढाई सौ नये मजदूरों को उसमें जोड़ा जाये।
मई महीने में पांच लाख लोगों को मनरेगा के तहत काम मिलने से अब लोगों को भरोसा हो गया है कि यह सरकार राज्य के विकास की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए कितनी गंभीर है। कोरोना संकट ने राज्य की पूरी व्यवस्था को बेपटरी कर दिया है। सरकार का खजाना खाली है और उसे भरने के लिए हर तरफ से कोशिशें जारी हैं। फिजूलखर्ची पर सख्ती से रोक लगा कर और आय के अतिरिक्त स्रोतों का सृजन कर राज्य की माली हालत सुधारने का प्रयास किया जा रहा है। इसी बीच प्रवासी श्रमिकों के लौटने के कारण पैदा हुई चुनौतियों का सफलता से सामना कर झारखंड के नेतृत्व ने साबित कर दिया है कि यदि जज्बा और संयम हो, तो हर राह आसान हो सकती है।
अब, जबकि लॉकडाउन का दौर खत्म हो रहा है और जनजीवन पटरी पर लौटने लगा है, उम्मीद की जानी चाहिए कि झारखंड सरकार इसी तरह आगे भी काम करती रहेगी। राज्य के विकास के प्रति मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गंभीरता और उनकी टीम झारखंड का समर्पित रवैया राज्य की सवा तीन करोड़ जनता के कल्याण के लिए आगे भी जुटी रहेगी। और तब कोरोना क्या, कोई भी आपदा झारखंड का भविष्य तय नहीं कर सकेगी। झारखंड का भविष्य यहां के लोग, यहां की सरकार और यहां की प्रशासनिक मशीनरी ही तय करेगी। वह भविष्य उज्ज्वल ही होगा।