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    Home»Jharkhand Top News»झारखंड में साढ़े तीन अरब का है कोयले का अवैध कारोबार
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    झारखंड में साढ़े तीन अरब का है कोयले का अवैध कारोबार

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJune 23, 2020No Comments5 Mins Read
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    देश के कोयले की जरूरत का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा पूरा करनेवाला झारखंड इस काले हीरे के अवैध कारोबार के कारण देश भर में चर्चित है। अब यह साफ हो गया है कि कोयले के अवैध कारोबार ने राजनेताओं से लेकर प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के साथ नक्सली संगठनों को खूब पाला-पोसा है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि झारखंड में कोयले के अवैध कारोबार से साढ़े तीन अरब रुपये से अधिक का लेन-देन होता है। काले तरीके से काले हीरे की यह कमाई पूरी तरह काला धन है। कोयले का यह अवैध कारोबार एकीकृत बिहार के समय से ही चल रहा है, लेकिन झारखंड अलग राज्य बनने के बाद इसमें तेजी आयी और कारोबार का जाल नये इलाकों में फैला। कोयले के इस अवैध कारोबार का जाल इतना फैला हुआ है कि इसका हर तथ्य एक सामान्य व्यक्ति को अविश्वसनीय लग सकता है। इतने बड़े अवैध कारोबार का राजनीति में स्वाभाविक हस्तक्षेप होता है और पिछली सरकार में घोषणाओं के बावजूद इस पर लगाम कसने की ठोस कोशिश नहीं की गयी। हालांकि यह भी सच है कि हेमंत सरकार के आने के बाद से राज्य में इस अवैध कारोबार पर बहुत हद तक लगाम लगी है, लेकिन इसे अब तक पूरी तरह रोका नहीं जा सका है। कोयले का यह अवैध कारोबार इसलिए भी खतरनाक होता जा रहा है, क्योंकि इसने अब गैर-कानूनी गतिविधियों को भी पालने-पोसने की तरफ कदम बढ़ा दिया है। झारखंड में कोयले के अवैध कारोबार और राज्य पर पड़ रहे इसके असर पर राज्य समन्वय संपादक अजय शर्मा की खास रिपोर्ट।

    भारत में ऊर्जा के सबसे प्रमुख स्रोत कोयले के बारे में बहुत पुरानी कहावत है कि इसके धंधे में हाथ काले होते ही हैं। 1971-72 में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण को एक क्रांतिकारी कदम के रूप में देखा गया था, लेकिन पिछले पांच दशक में इस काले हीरे ने आर्थिक क्षेत्र से लेकर अपराध और राजनीति के क्षेत्र में कई किस्से लिखे हैं। देश की कोयला जरूरतों का करीब 70 फीसदी हिस्सा झारखंड पूरा करता है। झारखंड के धनबाद को तो देश की कोयला राजधानी भी कहा जाता है, जहां कभी कोयला माफिया का साम्राज्य चलता था। उस समय झारखंड अलग नहीं हुआ था। वर्ष 1990 में बेरमो के प्रख्यात मजदूर नेता और हाल ही में दिवंगत विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह ने तत्कालीन केंद्रीय कोयला मंत्री को एक पत्र भेज कर कहा था कि दक्षिण बिहार की कोयला खदानों से हर साल डेढ़ अरब रुपये के कोयले की चोरी होती है। उस समय उनके दावे पर काफी शोर मचा था और इस खबर ने मीडिया की सुर्खियां बटोरी थीं। जांच भी हुई थी और राजेंद्र बाबू का दावा सही पाया गया था, हालांकि वह जांच रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की गयी।
    झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से अकसर राज्य में होनेवाले कोयले के अवैध कारोबार की चर्चा होती रहती है। पिछली रघुवर सरकार में तो शीर्ष स्तर पर इस अवैध कारोबार पर रोक लगाने की हिदायतें लगभग हर बैठक में दी जाती थीं, लेकिन न कभी इस पर रोक लगाने की कोशिश हुई और न ही किसी ने इस पर ध्यान ही दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि यह अवैध कारोबार आज इतना फैल चुका है कि इसने राज्य की राजनीति से लेकर नौकरशाही तक को अपने जाल में लपेट लिया है। जानकार बताते हैं कि झारखंड में कोयले के अवैध धंधे में हर साल साढ़े तीन सौ करोड़ रुपये से अधिक का वारा-न्यारा होता है। इसका लाभ कुछ राजनेताओं, पुलिस-प्रशासन के कतिपय अधिकारियों और कोयला उद्योग से जुड़े लोगों तक पहुंचता है। समय-समय पर इसके बारे में खबरें भी आती रहती हैं। कोयला के अवैध कारोबारियों की पैठ इतनी गहरी हो चुकी है और उनका नेटवर्क इतना सशक्त हो चुका है कि उन पर हाथ डालने की हिम्मत भी नहीं होती है।
    आंकड़ों में देखा जाये, तो झारखंड में कोयले की करीब दो हजार छोटी-बड़ी वैध खदानें हैं। इनके अलावा करीब सात हजार अवैध खदानें भी हैं। इन नौ हजार खदानों से हर साल तीन लाख से अधिक टन कोयले की तस्करी होती है। यह कोयला देश की विभिन्न मंडियों तक जाता है और वहां 10 से 12 हजार रुपये प्रति टन की दर से बिकता है। कोयले के इस अवैध कारोबार में करीब 22 हजार ट्रक, आठ हजार ट्रैक्टर और 10 हजार अन्य वाहन लगे हुए हैं। झारखंड के सात जिलों में यह अवैध कारोबार धड़ल्ले से चलता है। इनमें रामगढ़, हजारीबाग, लातेहार, चतरा, गिरिडीह, बोकारो और गोड्डा शामिल हैं।
    कोयला तस्करों और अवैध कारोबारियों के नेटवर्क की कहानियां मीडिया में खूब आती रहती हैं। चाहे धनबाद का गांजा प्लांट कांड हो या लातेहार के बालूमाथ में पुलिस द्वारा आॅनलाइन वसूली का मामला हो, मगध-आम्रपाली परियोजना में टेरर फंडिंग का मामला हो या फिर रामगढ़ में आपराधिक गिरोहों के बीच खूनी संघर्ष, हर मामले के पीछे कोयले से होनेवाली अवैध कमाई जुड़ी हुई है।
    अवैध कारोबार का इतना संगठित और निरापद कारोबार किसी दूसरे क्षेत्र में शायद ही कभी देखा-सुना गया हो। हाल के दिनों में, जबसे झारखंड में सरकार बदली है, इस अवैध कारोबार पर बहुत हद तक नकेल कसी जा चुकी है। पुलिस प्रशासन के कड़े रुख के कारण अब जहां-तहां कोयला तस्करी के नेटवर्क का भंडाफोड़ हो रहा है और तस्कर-कारोबारी पकड़े जा रहे हैं, लेकिन इसका कितना असर पड़ रहा है, यह अब तक सामने नहीं आया है। जानकार बताते हैं कि कोयले के अवैध कारोबारी झारखंड की नयी व्यवस्था को अपने पक्ष में करने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी दाल नहीं गल रही है। अब एक बार फिर कोयला खनन को निजी हाथों में देने का सिलसिला शुरू हुआ है। इससे इस अवैध कारोबार पर बहुत हद तक अंकुश तो लगेगा, लेकिन राष्ट्रीयकरण से पहले के दौर की सामाजिक शोषण की जो कहानियां हमारे रोंगटे खड़े करती हैं, एक बार फिर वही कहानियां दोहराये जाने का खतरा भी इससे जुड़ा हुआ है। शायद इसीलिए कहा जाता है कि कोयले के धंधे में हाथ हमेशा ही काले होते हैं।

    Jharkhand has an illegal trade of three and a half billion coal
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