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    Home»Jharkhand Top News»झारखंड को मदद की दरकार, दिल खोलो सरकार
    Jharkhand Top News

    झारखंड को मदद की दरकार, दिल खोलो सरकार

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJune 27, 2020No Comments6 Mins Read
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    कहा जाता है कि यदि इंसान का पेट भरा हो, तो वह बड़ी से बड़ी चुनौतियों का भी सामना कर लेता है और उससे पार पा लेता है। लेकिन पेट की आग अच्छे-अच्छों को बेबस कर देती है। झारखंड सरकार ने अपने यहां के जरूरतमंदों का पेट भरने के लिए एक बड़ी तैयारी की है और इसके लिए उसने केंद्र सरकार से मदद मांगी है। झारखंड पहला ऐसा राज्य है, जिसने अपने यहां के लोगों को अगले छह महीने तक मुफ्त खाद्यान्न देने की योजना तैयार की है। कोरोना संकट और लॉकडाउन ने झारखंड के कई परिवारों के सामने रोजगार का संकट तो पैदा किया ही है, उनके सामने पेट भरने की भी बड़ी चुनौती है। पिछले तीन महीने से राज्य सरकार ऐसे लोगों का पेट भरने के लिए पका-पकाया भोजन भी उपलब्ध करा रही है और साथ ही खाद्यान्न भी मुफ्त में दे रही है। राज्य सरकार ने इसी सिलसिले को आगे बढ़ाने की तैयारी की है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बेहद बेबाक तरीके से अपनी जरूरतें केंद्र को बतायी हैं और मदद की गुहार लगायी है। झारखंड को इस मदद की सख्त दरकार है, क्योंकि पठारी प्रदेश होने के नाते खाद्यान्न के मामले में यह राज्य अब तक आत्मनिर्भर नहीं बन सका है। ऐसा क्यों हुआ, इसकी विवेचना बाद में की जा सकती है, लेकिन फिलहाल तो उसे इतना अनाज चाहिए ही, क्योंकि यदि झारखंड के लोगों का पेट भरा होगा, तो वे बड़ी से बड़ी बाधाओं को पार कर जायेंगे। खाद्यान्न और खेती के मामले में झारखंड की वर्तमान स्थिति और भविष्य की जरूरतों पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गुरुवार को केंद्र सरकार को पत्र भेज कर कहा कि झारखंड अपने यहां के जरूरतमंदों को अगले छह महीने तक मुफ्त राशन देने की योजना पर काम कर रहा है। इसलिए उसे जरूरी खाद्यान्न की मदद की जाये। हेमंत ने जिस बेबाक और तार्किक तरीके से राज्य की जरूरत को केंद्र के सामने रखा, उसकी सराहना भी हो रही है और राज्य सरकार के फैसले की तारीफ भी। हेमंत सरकार ने यह फैसला झारखंड की हकीकत को ध्यान में रख कर किया है। इसलिए केंद्र सरकार को झारखंड की मदद करनी ही चाहिए।
    कोरोना संकट और लॉकडाउन की वजह से झारखंड की हालत बेहद खराब है। मार्च के अंतिम सप्ताह से जून के मध्य तक राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से यह तो सुनिश्चित किया ही कि इस दौरान कोई भूखा नहीं रहे। रोजी-रोजगार तो बहुत से लोगों से छिन गया, लेकिन झारखंड में ऐसा कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति नहीं है, जिसे भोजन या अनाज नहीं मिला हो। लॉकडाउन शुरू होने के साथ ही हेमंत सरकार ने इस मोर्चे पर काम शुरू कर दिया और दाल-भात केंद्र से लेकर सामुदायिक किचेन और मुख्यमंत्री दीदी किचेन से लेकर मुख्यमंत्री आहार योजना के जरिये हर दिन कम से 10 लाख लोगों का पेट भरता रहा। इसके साथ ही राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की घोषणा के अनुरूप तीन महीने तक मुफ्त खाद्यान्न भी जरूरतमंदों को उपलब्ध कराया। पिछले तीन महीने से यह काम राज्य सरकार अपने संसाधनों के सहारे कर रही थी। लेकिन हालात अभी सामान्य नहीं हुए हैं। झारखंड के सामने अन्य राज्यों की तुलना में बड़ी चुनौती है। अब राज्य को कोरोना के संक्रमण के साथ-साथ भूख से भी बचाना है।
    यह हकीकत है कि खाद्यान्न के मामले में झारखंड आत्मनिर्भर नहीं है। पठारी राज्य होने के कारण यहां की अर्थव्यवस्था में खेती का योगदान जीडीपी का महज 14 से 15 प्रतिशत का ही है, जबकि देश की अर्थव्यवस्था में यह 30 प्रतिशत है। राज्य में खेती की तस्वीर बहुत अच्छी नहीं है। यहां 38 लाख हेक्टेयर जमीन में खेती होती है।
    झारखंड के अधिकांश किसान एकफसलीय खेती करते हैं, क्योंकि उनके पास सिंचाई और दूसरी जरूरी आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं। राज्य के महज 10 फीसदी खेतों में ही सिंचाई की सुविधा है। बाकी की खेती पूरी तरह मानसून पर निर्भर है।
    पैदावार की बात करें, तो झारखंड में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता महज दो टन है, जबकि दूसरे राज्यों में यह चार से पांच गुना अधिक है। इस हिसाब से झारखंड में हर साल महज 76 लाख टन अनाज की उगाया जाता है। केंद्र से राज्य को हर महीने 13 लाख क्विंटल खाद्यान्न मिलता है, जबकि जरूरत लगभग 23 लाख टन की है। झारखंड में खाद्यान्न की इस स्थिति को दयनीय ही कहा जा सकता है। जहां तक बजट का सवाल है, तो इस साल कृषि विभाग को 902 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं, जबकि खाद्य-नागरिक आपूर्ति विभाग को 1514 करोड़ रुपये मिले हैं। इसके अलावा जल संसाधन विभाग को 902 करोड़ रुपये दिये गये हैं।
    यहां बड़ा सवाल यह नहीं है कि इस स्थिति के लिए जिम्मेवार कौन है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि झारखंड की जरूरत को कैसे पूरा किया जाये। मुख्यमंत्री ने पूरी ईमानदारी से झारखंड की हकीकत को सामने रखा है। वह पहले भी कहते रहे हैं कि झारखंड पूरी तरह केंद्र पर निर्भर है। उनकी सरकार लॉकडाउन के दौरान केंद्र की हर गाइडलाइन का पालन भी करती रही है। अब, जब उन्होंने केंद्र से मदद की गुहार लगायी है, तो राज्य के तमाम राजनीतिक दलों और संगठनों को उनके साथ आना जरूरी हो गया है।
    झारखंड एक तरफ कोरोना संकट से जूझ रहा है, तो दूसरी तरफ 10 से 12 लाख प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार की व्यवस्था करने के बोझ तले कराह रहा है। औद्योगिक और दूसरी आर्थिक गतिविधियों की हालत सभी जानते हैं। ऐसे में कम से कम लोगों का पेट भरने की व्यवस्था सबसे जरूरी है, क्योंकि खाली पेट कुछ नहीं हो सकता। यदि झारखंड को तत्काल मदद नहीं मिली, तो फिर यहां समस्याएं बढ़ती जायेंगी। नयी सामाजिक समस्याएं पैदा होंगी और विधि-व्यवस्था को चुनौती मिलने लगेंगी, क्योंकि रोजी-रोजगार के साथ रोटी का संकट लोगों से वह सब कुछ करा सकता है, जिसे सभ्य समाज में गलत बताया गया है। इसके साथ ही यह खतरा भी है कि झारखंड के माथे पर पहले से ही भूख से मौत का जो कलंक चस्पां है, वह फिर से गहराने लगे।
    इसलिए अब यह केंद्र की जिम्मेदारी बनती है कि वह झारखंड की मदद करे और कोरोना संकट से उबरने में सहायक बने। देश की खनिज जरूरतों का 40 फीसदी पूरा करनेवाला झारखंड यदि आज खाद्यान्न की मदद मांग रहा है, तो यह उसका अधिकार बनता है, क्योंकि भारत को आत्मनिर्भर बनाने में उसका हमेशा से बड़ा योगदान रहा है।

    Jharkhand needs help open heart
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