बेगूसराय, वैश्विक महामारी कोरोना के कहर से बचने के लिए हुए लॉकडाउन के कारण देश के तमाम शहरों में काम करने वाले कामगारों के घर वापसी का सिलसिला लगातार जारी है। काफी दुख-दर्द झेलकर बाहर से लौटे इन प्रवासियों की चिंता हर किसी को है। शासन-प्रशासन से लेकर राजनीतिक दल प्रवासियों के संबंध में रोज बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं लेकिन बिहार में हजारों ऐसे लोग भी हैं जो हर साल अपने राज्य में ही घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर प्रवास करने को मजबूर हैं। यह प्रवासी हैं किसान पशुपालक, जो कहने को तो भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है लेकिन प्रत्येक साल अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर बेगूसराय, समस्तीपुर, दरभंगा और खगड़िया के विभिन्न इलाकों में जाकर रहते हैं। यह लोग सैकड़ों किलोमीटर का रास्ता अपने मवेशियों के साथ पैदल तय करते हैं। करीब तीन महीने तक प्रवास करने के बाद फिर पैदल ही वापस अपने घर लौटते हैं।

इस दौरान कई लोगों की रास्ते में हादसों व सर्पदंश आदि से मौत हो जाती है लेकिन उनका शव भी घर नहीं पहुंच पाता। साथ में रहने वाले पशुपालक ही उनका अंतिम संस्कार कर देते हैं। अन्य साल की तरह इस बार भी फरवरी-मार्च में सैकड़ों पशुपालक अपने घर जमुई, शेखपुरा, नवादा, नालंदा से मवेशी लेकर आए लेकिन यहां उन्हें काफी कष्ट झेलना पड़ा। कोरोना के डर से स्थानीय लोगों ने उन्हें गांव के आसपास रहने नहीं दिया तो गांव से दूर इन लोगों ने अपना डेरा डाला लेकिन जब घर लौट रहे हैं तो खाली हाथ। कोरोना के कारण इस वर्ष इनका दूध नहीं बिका, बिका तो उचित दाम नहीं मिला, जब दूध का दाम नहीं मिला तो बचत कहां से होगी। सरकार लंबे समय से बड़े पैमाने पर जल संरक्षण अभियान चला रही है, अब जल जीवन हरियाली अभियान भी जोर-शोर से चलाया जा रहा है लेकिन इन इलाकों में कोई सार्थक पहल नहीं हो रही है जिस कारण यहां के पशुपालक प्रत्येक साल पैदल प्रवास करने को मजबूर हैं।
घर वापस लौट रहे जमुई के राधे यादव और मोहन ने बताया कि कोई भी सरकार हमलोगों के लिए नहीं सोचती है। जिस कारण साल दर साल जलालत झेलनी पड़ती है। अपने मवेशी को लेकर पानी की खोज में घर से दो से ढ़ाई सौ किलोमीटर दूर तक भटकते रहते हैं। आज पूरा देश वैश्विक महामारी कोरोना से परेशान है, लोग घरों से नहींं निकल रहे हैं लेकिन हम सब अपने मवेशी के जीवन रक्षा और परिवार के भरण-पोषण के लिए प्रत्येक साल की तरह इस साल भी अपने गांव-घर को छोड़कर पांव पैदल निकलते हैं। खुले आसमान के नीचे रह कर अपने पशु को चारा-पानी देते हैं। पानी के लिए होने वाली हमारी यह पदयात्रा प्रत्येक साल मगध से शुरू मिथिला में प्रवास कर समाप्त होती है। इस दौरान दर्जनों पशु काल कलवित हो जाते हैं। पहले हम लोग अगस्त में घर वापस जाते थे लेकिन इस बार कोरोना के कारण जून में ही अपने घर वापस लौटने को मजबूूर हैं। हम सैकड़ों दुग्ध उत्पादक किसान आखिर करें भी तो क्या, प्रकृति की मार को कुछ कहा नहीं जा सकता है।
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