अगले कुछ घंटे बाद राज्यसभा की दो सीटों के लिए मतदान शुरू हो जायेगा और तीन में से दो प्रत्याशी शाम होते-होते संसद की ऊपरी सदन के सदस्य चुन लिये जायेंगे। लेकिन इस चुनाव ने झारखंड में एक नया कल्चर, नयी परंपरा स्थापित की है। अब से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि किसी राजनीतिक दल या गठबंधन को अपने विधायकों को चुनाव से तीन दिन पहले किसी स्कूल या अन्य जगह रखा गया हो। सरकार बनाने-गिराने और विधायकों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए उन्हें किसी दूसरे राज्य में एक साथ रखने की परंपरा झारखंड में कायम की जा चुकी है, लेकिन राज्यसभा चुनाव से पहले ऐसी घटना नहीं हुई। आखिर भाजपा को अपने विधायकों को राजधानी के बाहरी इलाके में स्थित एक स्कूल में क्यों रखना पड़ा। करीब 16 साल तक झारखंड की सत्ता में रहनेवाली भाजपा को कौन सा अंजाना भय सता रहा था, इस सवाल का जवाब तो शायद ही कभी मिले, लेकिन इस घटनाक्रम ने भारतीय संसदीय राजनीति का एक ऐसा चेहरा एक बार फिर सामने लाकर रख दिया है, जिसमें सांसदों-विधायकों की आस्था कहीं और टिकी नजर आती है। झारखंड के राज्यसभा चुनाव में स्थापित हुए इस नये कल्चर का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।
बुधवार 17 जून को सुबह से ही झारखंड की राजधानी रांची के बाहरी इलाके महिलौंग स्थित एक निजी स्कूल के परिसर में गहमा-गहमी थी। ऐसा लग रहा था, मानो किसी बड़े जश्न या सामूहिक भोज की तैयारी है। दिन ढलते-ढलते वहां गाड़ियों का काफिला पहुंचने लगा, तब लोगों को पता चला कि अगले तीन दिन तक झारखंड विधानसभा में भाजपा विधायक और उसके बड़े नेता यहीं रहेंगे।
उनके ठहरने और खाने-पीने के साथ मनोरंजन का इंतजाम इसी परिसर में किया गया है। शाम तक वहां सभी विधायक और कई सांसदों के साथ भाजपा के कई केंद्रीय नेता भी पहुंच गये। उन्होंने क्रिकेट भी खेली, बैठक कर राज्यसभा चुनाव के लिए रणनीति बनायी। बाद में कहा गया कि राज्यसभा चुनाव के लिए विधायक यहीं से एक साथ बस से विधानसभा जायेंगे, जहां राज्यसभा चुनाव के लिए 19 जून को मतदान होना है। हालांकि कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के मद्देनजर जिला प्रशासन ने इस गैदरिंग को नियम विरुद्ध माना और गुरुवार को स्कूल को खाली करने का आदेश दे दिया। साथ ही स्कूल के प्राचार्य को शो कॉज नोटिस भी जारी किया गया। इस घटनाक्रम के बाद राजनीतिक हलकों में अब यह सवाल तैरने लगा है कि आखिर भाजपा को अपने विधायकों को तीन दिन पहले अपने विधायकों को एक जगह रखने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी। झारखंड में राज्यसभा के चुनाव पहले भी हुए हैं और इस बार से अधिक रोमांचक भी हुए हैं। लेकिन आज से पहले कभी विधायकों को इस तरह से एक जगह पर नहीं रखा गया था।
हां, झारखंड में इससे पहले विधायकों को विशेष विमान से राजस्थान के एक रिजॉर्ट में ले जाया गया था, लेकिन वह सरकार बनाने की कवायद थी। राज्यसभा चुनाव में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था। हालांकि यह पहला अवसर है, जब भाजपा विपक्ष में रहते हुए राज्यसभा चुनाव के मैदान में उतरी है, लेकिन लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि उसे किस बात का डर सता रहा है। क्या भाजपा को अपने विधायकों के बिकने या बिखरने की आशंका है या फिर सत्ता पक्ष द्वारा बलप्रयोग कर उन्हें रोकने का भय है। हकीकत यह है कि सत्ता पक्ष से अब तक ऐसी कोई कोशिश नहीं हुई है और न ऐसी कोई तैयारी दिख रही है। भाजपा के एक विधायक, जो इस समय जेल में हैं, को भी मतदान में भाग लेने की अनुमति अदालत ने दी है। पार्टी को अपने प्रत्याशी दीपक प्रकाश को राज्यसभा में भेजने के लिए 27 वोट चाहिए, जबकि उसके पास 30 विधायक हैं। ऐसे में कमजोरी का यह सार्वजनिक प्रदर्शन क्या संदेश देता है।
राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त वोट होने के बावजूद क्या भाजपा को खुद पर ही भरोसा नहीं हो रहा है। शायद इसीलिए उसके केंद्रीय नेता ओमप्रकाश माथुरऔर अरुण सिंह अपने सहयोगी और समर्थन का आश्वासन दे चुके आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो से मिलने पहुंचे। यह स्थिति तब है, जब सुदेश बार-बार भाजपा को समर्थन देने का भरोसा दे चुके हैं। इतना ही नहीं, बुधवार को एनडीए की बैठक में भी वह शामिल थे। अपने ही विधायकों और अपने सहयोगियों के प्रति इतने अविश्वास की कोई न कोई वजह तो होनी ही चाहिए।
अब भाजपा की इस पूरी कवायद पर कोरोना संकट का साया भी पड़ गया है। कोरोना महामारी के दौरान विधायकों का एक जगह एकत्र होने और क्रिकेट खेलने के खिलाफ प्रशासन ने कदम भी उठाया है। स्कूल परिसर को खाली करने का आदेश जिला प्रशासन ने दिया है। जाहिर है अब इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दिया जायेगा। विपक्ष की ओर से इसे सत्ता के दुरुपयोग की संज्ञा दी जायेगी, लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि स्कूल परिसर में विधायक एकत्र हो सकते हैं, क्रिकेट खेल सकते हैं, तो फिर उस स्कूल में बच्चे क्यों नहीं एकत्र हो सकते। इन विधायकों को रांची में सरकारी आवास आवंटित किया गया है। सारी सुविधाएं उन्हें उपलब्ध हैं।
और चाहे कुछ हो या न हो, एक बात हो गयी है कि भाजपा ने झारखंड में इस ‘पिकनिक’ या ‘रिजॉर्ट’ कल्चर की शुरुआत कर दी है। झारखंड जैसे छोटे राज्य के लिए, जहां महज 81 सदस्यों वाली विधानसभा है, यह कल्चर फिजूलखर्ची की ही श्रेणी में रखा जा सकता है। इस बेमतलब की कवायद से भाजपा के भीतर का डर ही सामने आया है, जिसका बहुत अच्छा संदेश आम जनता में नहींं गया है। वैसे तो झारखंड के हर राज्यसभा चुनाव के साथ विवाद जुड़ते रहे हैं, लेकिन इस बार जो घटनाएं हो रही हैं, वे कुछ खास और अलग तरह की हैं।