बछवाड़ा दियारा का इलाका शुरू से ही दुरुह रहा है। जितनी भी सरकारें आई किसी ने यहां के समग्र विकास के बारे में नहीं सोचा। नतीजतन 90 के दशक में लोगों का यहां से पलायन शुरू हुआ। हजारों लोगों ने अपना घर छोड़ दिया। बड़ी संख्या में लोग मुंबई गए और वहीं मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करने लगे। रामसूरत राय ने भी 2018 में मुंबई का रुख किया था। जाते वक्त उन्होंने सोचा भी नहीं था कि देश की आर्थिक राजधानी में भूखा रहना पड़ेगा। वह तो भला हो मोदी सरकार का जिसने स्पेशल ट्रेन चलाकर एक महीने की जलालत और चार दिन की भूख से रामसूरत जैसों को निजात दिलाई। अब रामसूरत घर पर खेती-बाड़ी में लगे हैं।
2018 के अगस्त में रामसूरत गए तो गांव के अन्य सहयोगियों की मदद से एक टैक्सी लेकर लोकमान्य तिलक टर्मिनल स्टेशन के आसपास चलाने लगे। करीब छह महीना तक टैक्सी चलाने के दौरान फरवरी 2019 में एक जूट फैक्ट्री के मालिक से परिचय हो गया और उसने अपने यहां काम पर रख लिया। रामसूरत का काम था मालिक के बच्चों को स्कूल पहुंचाना-लाना और बचे समय में फैक्ट्री के कुछ छोटे-मोटे काम में मदद करना। 14 हजार महीना वेतन मिलता था, दिन मजे से गुजरने लगे। मकान किराया में तीन हजार तथा खाना और अन्य में पांच हजार रुपया महीना खर्च होता था। शेष बचा छह हजार प्रत्येक माह नियमित तरीके से वह अपने घर भेजते थे, तो घर के लोग भी सुखपूर्वक अपना जीवन यापन कर रहे थे। रोज घर वालों से बातचीत होती थी, उन्होंने प्लान बनाया था कि 2021 के होली में घर जाएंगे। तब तक कुछ पैसा जमा हो जाएगा तो गांव में जाकर एक किराना दुकान खोलेंगे तथा उसी से अपने परिवार का भरण पोषण करेंगे, दुकान से बचे समय में खेती होगी। लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना ने उनके सभी अरमानों पर पानी फेर दिया।
लॉकडाउन के बाद फैक्ट्री बंद हो गया। मुंबई और बिहार में जब कोरोना वायरस पॉजिटिव की संख्या बढ़ने लगी तो मालिक ने घर जाने को कह दिया। लोकमान्य तिलक टर्मिनल के पीछे जहां किराए के मकान में रहते थे, संक्रमण के डर से मकान मालिक ने घर जाने की सलाह दी। न साधन की व्यवस्था, ना ही रोजी-रोजगार और ना ही भूख का कुछ इलाज.. आखिरकार केंद्र सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलवाई तो उन्होंने घर जाने का जुगाड़ लगाया और चल पड़े अपने गांव की ओर। गांव आए तो खेती किसानी में जुट गए। रामसूरत ने बताया कि मुंबई में एक तो सरकार और दूसरे स्थानीय मराठी लोग पहले भी बुरा बर्ताव करते थे लेकिन लॉकडाउन होने के बाद बिहारियों पर शामत आ गई। जिस बिहार के श्रम शक्ति से मुंबई चमकता है उसे वह काफी जलालत झेलनी पड़ी।
वहां की सरकार ने कोई मदद नहीं किया लेकिन नरेन्द्र मोदी की सरकार ने मजदूरों के दुख-दर्द को समझा और स्पेशल ट्रेन चलाई। ट्रेन नहीं चलती तो मुंबई में बिहार के सैकड़ों लोग भूख से मर जाते। मोदी सरकार ने ट्रेन चलाकर हम लोगों को घर वापस पहुंचा दिया। अब कुछ काम का जुगाड़ हो जाए तो भाड़ में जाए मुंबई।
मैट्रिक पास रामसूरत कहते हैं कि बिहार को बर्बाद करने में कुछ राजनीतिक दल का अहम योगदान है। जो बिहार को जाति के नाम पर घसीटा चला गया और बिहार का स्वर्णिम इतिहास बस देखता और देखता रह गया। यहां बस रह गया तो अपराध, अपराधी और अपहरण। जिसके कारण यहां के उद्योग बंद और लोग बेरोजगार होकर दूसरे प्रदेश चले गए। तब से आज तक हर बिहारी गाली सुनकर, मार खाकर अपनों से दूर अलग जा रहा है ताकि उसका परिवार भूख से न मरे।