नई दिल्ली। कोरोना के मरीजों के उचित इलाज और बीमारी से मरने वालों के शव को अस्पतालों में गरिमापूर्ण तरीके से रखे जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वो कोरोना टेस्ट की अधिकतम कीमत तय करे। राज्य चाहें तो उससे कम कीमत रख सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि कोरोना मरीजों के वार्ड में सीसीटीवी कैमरे लगें। सभी राज्यों में मरीज भर्ती करने और उन्हें डिस्चार्ज करने की नीति समान हो।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने सुप्रीम को बताया कि अब किसी डॉक्टर और अस्पताल के स्टाप के ऊपर कोई एफआईआर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि अंसल बंधुओं की ओर से ट्रॉमा सेंटर बनाने के लिए पांच साल पहले मिले साठ करोड़ रुपये का इस्तेमाल अब तक क्यों नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में कोरोना मरीज और उसके रिश्तेदार को कोरोना टेस्ट न देने की नीति को गलत बताया। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से अपने फैसले पर विचार करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि विस्तृत आदेश वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा।
पिछले 17 जून को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र का हलफनामा नहीं आने पर सवाल उठाया था। कोर्ट ने दिल्ली के लिए पेश वकील से कहा था कि आपके हलफनामे से लगता है जैसे सब ठीक हो। आंकड़े दबाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा था कि आपका रवैया उन्हें दंडित करने का है जो सच सामने ला रहे हैं। कोर्ट ने दिल्ली में बने हेल्प डेस्क की ज़िम्मेदारी आईएएस अफसर को सौंपने पर भी कोर्ट ने सवाल उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टर और हॉस्पिटल स्टाफ के ऊपर एफआईआर दर्ज करने के लिए दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि सच सामने ला रहे लोगों पर कार्रवाई का रवैया गलत है। आपने उसे भी निलंबित कर दिया जिसने हॉस्पिटल की बदहाली का वीडियो बनाया। कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली सरकार को ऐसी हर कार्रवाई को वापस लेना चाहिए।
पिछली 12 जून को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम शवों से ज्यादा जिंदा लोगों को इलाज को लेकर चिंतित हैं। सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि शवों को हैंडल करने पर दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।
कोर्ट ने दिल्ली में कोरोना के टेस्ट कम होने पर सवाल उठाया था। कोर्ट ने कहा था कि टेस्ट की संख्या भी कम कर दी गई है। दिल्ली में बहुत कम टेस्ट हो रहे हैं। किसी का भी टेस्ट होने से मना नहीं होने चाहिए। ज्यादा से ज्यादा टेस्ट हो ताकि लोग समय पर एहतियात बरत सकें। कोर्ट ने कहा था कि मीडिया रिपोर्ट से हमें मरीजों की दुर्दशा की जानकारी मिली। उनको शव के साथ रहना पड़ रहा है। ऑक्सीजन जैसी सुविधा नहीं मिल रही है। लोग मरीज़ को लेकर इधर-उधर भाग रहे हैं जबकि सरकारी अस्पतालों में बिस्तर खाली हैं। वीडियो सामने आए हैं कि मरीज सहायता के लिए कराह रहे हैं पर कोई देखनेवाला नहीं है। यहां तक कि मरने वालों की सूचना उनके घरवालों को नहीं दी जा रही है। कई केस में वो अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए।
कोर्ट ने कहा था कि 15 मार्च को शवों को हैंडल करने पर केंद्र ने दिशानिर्देश जारी किया था। इसका पालन नहीं हो रहा है। दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और प.बंगाल में इलाज को लेकर हालात सबसे ज़्यादा खराब हैं। कोर्ट ने इन राज्यों के अलावा दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल को अलग से नोटिस जारी किया था।