उग्रवाद, नक्सलवाद, मानव तस्करी और अफीम की खेती जैसे मामलों को लेकर सुर्खियों में रहने वाला जनजातीय बहुल जिला खूंटी इन दिनों कृषि और बागवानी के क्षेत्र में नयी पहचान बना रहा है। किसान पारंपरिक खेती के बदले वैज्ञानिक तरीके से कृषि कार्य करने को अग्रसर हुए हैं।
इस जिले में अब वैसे फलों और पौधों की खेती किसान कर रहे हैं, जिसका शायद नाम भी यहां के अधिकतर लोगों ने नहीं सुना था। बात चाहे स्ट्रॉबेरी की खेती की करें या ड्रैगन फ्रूट की, यहां के कृषक हर क्षेत्र में संभावना तलाश रहे हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती तो अब यहां बड़े पैमाने पर की जा रही है, वहीं प्रायोगिक तौर पर ड्रैगन फ्रूट की भी खेती की जा रही है। जिला प्रशासन और कृषि विभाग द्वारा ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
फिलहाल, जिले में प्रयोग के तौर पर डेढ़ एकड़ क्षेत्रफल में इसकी खेती की गयी है। जिला प्रशासन की योजना तीस एकड़ में इसकी खेती करने की है। मुरहू प्रखंड के हेठगोवा गांव में जुरन सिंह मुंडा ने अपने बलबूते डेढ़ एकड़ टांड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती की है। जिले के कर्रा स्थित मनरेगा पार्क में एक एकड़ क्षेत्रफल में इसकी खेती शुरू की गयी है। रनिया प्रखंड के तुरीगड़ा और खूंटी प्रखंड के बेलांगी सहित अन्य गांवों में भी इसकी खेती शुरू की गयी है। जुरन सिंह मुंडा बताते हैं कि रांची के उनके मित्र मनीष राज से प्रेरणा लेकर उन्होंने ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की है।
ड्रैगन फ्रूट खेती की अच्छी संभावना : अमरेश कुमार
कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण (आत्मा) के निदेशक अमरेश कुमार कहते हैं कि खूंटी जिले में ड्रैगन फ्रूट की खेती की काफी अच्छी संभावनाएं हैं। उन्होंने बताया कि इसकी खेती के लिए अधिक बारिश की जरूरत नहीं होती। 20 से 30 डिग्री तापमान पर इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। रेतीली जमीन पर ड्रैगन फ्रूट का अधिक उत्पादन होता है। यही कारण है कि राजस्थान में इसकी सबसे अधिक खेती होती है।
आत्मा के निदेशक ने कहा कि एक एकड़ खेत में ड्रैगन फ्रूट की खेती करने में कम से कम पांच लाख रुपये की लागत आती है। पौधा लगाने के एक से डेढ़ साल बाद यह फल देने लगता है। हर साल औसतन पांच लाख से अधिक की कमाई किसान को होती है। यह एक सीजन में कम से कम तीन बार फल देता है। एक फल का वजन लगभग 300 से 400 ग्राम होता है।
अमरेश कुमार ने बताया कि एक पौधे में 50 से 60 फल लगते हैं। मई-जून महीने में इसके फूल आने लगते हैं और दिसंबर तक फल आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि एक पौधा कम से कम 20 वर्षों तक फल देता है। यही कारण है कि अधिक पूंजी लगने के बाद भी किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
क्या है ड्रैगन फ्रूट
राक्षस (ड्रैगन) की तरह दिखने के कारण पौधे का नाम ड्रैगन रखा गया है और इससे उगने वाले फल को ड्रैगन फ्रूट कहा जाता है। इसका पौधा कांटेदार होता है। इस फसल की ज्यादा देखभाल करने की जरूरत भी नहीं होती। कांटेदार होने के कारण पशु भी इसको नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इसमें काफी मात्रा में विटामिन-ए पाया जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह काफी उपयोगी है। जुरन सिंह मुंडा कहते हैं कि पांच किलो सेव के बराबर विटामिन एक किलो ड्रैगन फ्रूट में मिलता है।