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    Home»विशेष»सपने उनके ही सच होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है
    विशेष

    सपने उनके ही सच होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है

    azad sipahiBy azad sipahiJune 6, 2022No Comments9 Mins Read
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    • कहानी उनकी जिन्होंने दुखों और कष्टों को अपनी ताकत बना कर सफलता के शिखर पर अपना मुकाम बनाया

    आज हर युवा अपना एक बेहतर भविष्य बनाना चाहता है, लेकिन उनमें से कुछ ही इसको प्राप्त करने के लिए कठिन रास्ते पर चलने का साहस करते हैं। उपलब्धि हासिल करना और उससे गौरवान्वित होना आसान नहीं है। इसे प्राप्त करने करने के लिए कड़ी मेहनत और लगन की जरूरत होती है। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आज आप जिस संघर्ष से गुजरेंगे, वह आपको एक बेहतर भविष्य बनाने में मदद करेगा। सफल लोग वही होते हैं, जिन्होंने सभी दुखों और कष्टों को झेला है। उन दुखों और कष्टों से जो विचलित नहीं हुए, बल्कि उसे उन्होंने अवसर के रूप में लिया। कहा गया है, सपने उनके ही सच होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। इन पंक्तियों को झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन के रिजल्ट में शानदार प्रदर्शन गुदड़ी के लालों ने एक बार फिर से चरितार्थ कर दिया है। जी हां, आज हम बात कर रहे हैं ऐसे युवाओं के बारे में, जिन्होंने अपने दुखों और कष्टों को अपनी ताकत बना कर सफलता के शिखर पर अपना मुकाम बनाया है। इनमें सबसे ज्यादा सफलता के शिखर पर वे पहुंचे, जिनके परिजनों ने हाड़ तोड़ मेहनत कर इन युवाओं के लिए एक-एक रोटी का इंतजाम किया। एक-एक पाई जोड़ कर जिन्होंने किसी तरह किताबें खरीदीं। किसी-किसी ने तो फेसबुक और अन्य माध्यमों से ये मुकाम हासिल किये। कई बच्चों ने तो ठेला और रेहड़ी पर अपने माता-पिता का हाथ बंटाते हुए ऊंची उड़ान प्राप्त की। इन गुदड़ी के लालों की सच्ची लगन और कठोर परिश्रम की ताकत को रेखांकित करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह की खास रिपोर्ट।

    अपने लक्ष्य को पाने के लिए व्यक्ति को पैसे की नहीं, बल्कि हिम्मत और सच्चे इरादे की जरूरत होती है। अकसर कहा जाता है कि अगर इंसान किसी कार्य को सच्ची लगन और कठिन परिश्रम से करता है, तो वह उसमें अवश्य ही सफल होता है। कठोर परिश्रम और कड़ी मेहनत मनुष्य का असली धन होता है। बिना कठिन परिश्रम के आज के प्रतियोगी युग में सफलता पाना असंभव है। इस दुनिया में जो व्यक्ति कठिन परिश्रम करता है, सफलता उसी का कदम चूमती है। कड़ी मेहनत करनेवाले लोग मिट्टी को भी सोना बना देते हैं। पहाड़ पर भी पेड़ उगा देते हैं। यदि आपके पास सपने हैं, तो यह निश्चित रूप से समर्पण, बलिदान, कड़ी मेहनत के माध्यम से प्राप्त किये जा सकते हैं।

    पिता हैं गेट-ग्रिल कारीगर, बिटिया बनी जेपीएससी टॉपर
    झारखंड लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विस परीक्षा की टॉपर सावित्री कुमारी आज पूरे झारखंड के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं। सावित्री कुमारी बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के दांतू गांव निवासी राजेश्वर नायक की बेटी हैं, जो पेशे से गेट-ग्रिल बनानेवाले एक कारीगर हैं।

    सावित्री शुरू से ही मेधावी छात्रा रही हैं। घर की कमजोर माली हालत को उन्होंने कभी अपने मार्ग की बाधा नहीं बनने दी। स्कूल से लेकर कॉलेज तक हर स्तर पर बेहतरीन रिजल्ट की बदौलत सावित्री को स्कॉलरशिप योजनाओं का लाभ मिलता रहा और उसकी पढ़ाई को लेकर परिवार पर कभी बड़ा आर्थिक बोझ नहीं पड़ा। सावित्री ने मेहनत, लगन और हौसले में कोई कसर बाकी नहीं रखी और इसी का नतीजा है कि मंगलवार देर शाम जारी हुई जेपीएससी सिविल सर्विस परीक्षा के सफल 252 अभ्यर्थियों की लिस्ट में सावित्री का नाम सबसे ऊपर चमक रहा है।

    गांव के सरकारी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा के बाद सावित्री का चयन नवोदय विद्यालय के लिए हो गया। 2010 में इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई के बाद उन्होंने स्कॉलरशिप परीक्षा पास की और उनका चयन बांग्लादेश के चिटगांव के एशियन यूनिवर्सिटी फॉर वीमेन के लिए हो गया। यहां से उन्होंने बीएससी की डिग्री ली। इसके आगे उन्हें आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी लंदन में भी स्कॉलरशिप प्रोग्राम के जरिए पीजी में दाखिला मिला। इस दौरान वह पार्ट टाइम जॉब भी करती रहीं। इसके बाद वह भारत लौटीं तो आइआइटी मुंबई के क्लाइमेट चेंज डिपार्टमेंट में उन्हें नौकरी मिल गयी, लेकिन उन्होंने यह नौकरी छोड़कर सिविल सर्विस की तैयारी का फैसला किया।

    सावित्री के मुताबिक उन्होंने लगभग डेढ़ साल तक घर पर रह कर हर रोज आठ से दस घंटे तक पढ़ाई की और पहले ही प्रयास में कामयाबी हासिल की। सावित्री के पिता राजेश्वर प्रसाद कहते हैं, मेरी तीन बेटियां हैं और मैंने सबको घर-परिवार की चिंता से दूर रख अपने लक्ष्य पर ध्यान देने को कहा। किसी पर कोई दबाव भी नहीं दिया। मुझे खुशी और गर्व है कि बेटियों ने मुझे निराश नहीं किया। एक बेटी कंप्यूटर इंजीनियर है, दूसरी इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में है और तीसरी बेटी अफसर बनने जा रही है। वह कहते हैं, किसी भी माता-पिता को इससे बड़ी खुशी भला और क्या हो सकती है कि बच्चे सफलता की सीढ़ी चढ़ जायें। कहते हैं, हमारी बेटियां ही हमारी सबसे बड़ी धन हैं।
    बेटे के सो जाने का करती थीं इंतजार, पहले ही प्रयास में दीपिका को मिला 45वां स्थान
    चिरकुंडा की रहनेवाली दीपिका की शादी धनबाद के ही बरवाअड्डा में हुई है। झारखंड लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा के अंतिम परिणाम में बरवाअड्डा की बहू और चिरकुंडा की बेटी दीपिका कुमारी ने शानदार सफलता अर्जित की है। दीपिका ने पूरे झारखंड राज्य में 45वां रैंक हासिल किया है।

    दीपिका की शादी 2014 में हुई थी। इनका छह वर्ष का एक पुत्र भी है। शादीशुदा जिंदगी होने के बाद भी उन्होंने अपने सपने को पीछे नहीं छोड़ा और कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने सफलता हासिल की। इस सफलता में उनके पति ने उनका भरपूर सहयोग दिया। जब वह पढ़ाई करती थीं तो पति बच्चे को संभालते थे। अकसर बेटे के सो जाने के बाद दीपिका पढ़ाई करती थीं। सचमुच में दांपत्य जीवन में परिवार के साथ सामंजस्य बैठा कर पढ़ाई के रास्ते पर बढ़ना और फिर मुकाम हासिल करना आसान नहीं होता। फिर भी दीपिका ने यह कर दिखाया।

    अखबार विके्रता की बेटी अंशु ने लहराया सफलता का परचम
    शहर के न्यू कालोनी कोर्रा निवासी अखबार विक्रेता प्रेम कुमार और प्रेमा देवी की पुत्री अंशु कुमारी ने आर्थिक समस्या और अभाव को कभी अपनी सफलता के रास्ते में आड़े नहीं आने दिया। ट्यूशन पढ़ाकर निरंतर धैर्य के साथ लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी में जुटी रहीं। अंतत: सातवीं जेपीएससी संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में 49वां स्थान पाकर सहायक नगर आयुक्त पद के लिए चयनित हुई हैं। भले ही जेपीएससी में उन्होंने सफलता हासिल कर ली, लेकिन उनकी मंजिल यूपीएससी की संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होना है। अंशु कहती हैं कि मैंने अपने पिता को 20 वर्षों से सर्दी, गर्मी, बारिश की परवाह किये बगैर सुबह चार बजे से लोगों के घरों में अखबार बांटते देखा है। मुझे अपने पिता से ही मेहनत की प्रेरणा मिली और आज यह सफलता मैं उन्हीं के नाम करती हूं। उन्होंने कहा कि पिता ने ही उन्हें आगे बढ़ने की सीख दी और हर पग पर उनका साथ दिया।

    ड्राइवर पिता का पुत्र प्रशासनिक सेवा में चयनित
    ग्रामीण पृष्ठभूमि से आनेवाले ड्राइवर पिता के पुत्र संजीत कुमार यादव कठिन परिश्रम और सतत प्रयास के बल पर सातवीं जेपीएससी से 129 वां रैंक लाकर प्रशासनिक सेवा में चयनित हुए हैं। संजीत के पिता उपेंद्र यादव महाराष्ट्र में ड्राइविंग करते हैं। उनका बड़ा पुत्र अजीत यादव सेना में जवान है। दृढ़ इच्छाशक्ति, प्रबल आत्मविश्वास और सतत मेहनत से संजीत कुमार ने सफलता हासिल की। संजीत कुमार ने इंजीनियरिंग भी की, लेकिन उन्होंने कहीं कोई नौकरी नहीं की और केवल अपने लक्ष्य प्रशासनिक सेवा प्राप्त करने के लिए मेहनत करते रहे। उन्होंने कहीं से भी कोचिंग प्राप्त नहीं की और लगातार हजारीबाग में रहकर ही प्रशासनिक परीक्षाओं की तैयारी करते रहे। अंतत: सातवीं जेपीएससी में अपने पहले ही प्रयास में उन्होंने सफलता प्राप्त कर ली।

    मजदूर का बेटा जेपीएससी में सफल
    कठोर परिश्रम और कड़ी मेहनत इंसान का असली धन होता है। इसी पंक्ति को बरकट्ठा प्रखंड के छोटे से गांव बसरिया के लाल रामजी कुमार ने सच कर दिखाया है। पिता एक मजदूर हैं लेकिन रामजी कुमार ने अभाव में रह कर भी बड़े सपने देखे और उस सपने को पूरा भी किया और 7वीं जेपीएससी में 151वां रैंक लाकर शिक्षा सेवा में चयनित हुए।

    इनकी स्कूली शिक्षा गांव के ही उत्क्रमित मध्य विद्यालय बसरिया से, माध्यमिक शिक्षा राजकीयकृत प्लस टू उच्च विद्यालय बरकट्ठा से तथा इंटरमीडिएट की परीक्षा 2013 में इंटर साइंस कालेज हजारीबाग से तथा स्नातक की परीक्षा 2016 में हजारीबाग से की। जेपीएससी की तैयारी चाणक्य आइएएस एकेडमी हजारीबाग तथा दिल्ली से की। उनकी इस उपलब्धि पर गांव के सभी जनप्रतिनिधियों तथा शिक्षकों ने भव्य स्वागत किया। गाजे-बाजे के साथ पूरे गांव का भ्रमण कराया।

    पारा शिक्षिका वीना कुमारी के पुत्र आर्यन भी सफल
    बरकट्ठा प्रखंड की बेडोकला पंचायत अंतर्गत चांदगढ़ विद्यालय की सहायक अध्यापिका (पारा शिक्षिका) वीना कुमारी के पुत्र अजय आर्यन का चयन डीएसपी पद पर हुआ है। इन्होंने 216वां रैंक लाया है। इनकी प्रारंभिक पढ़ाई और मैट्रिक की पढ़ाई कोडरमा से हुई है। इन्होंने इंटर रांची से और ग्रेजुएशन दिल्ली से की है। दिल्ली में ही रहकर जेपीएससी की तैयारी कर रहे थे। इनके पिता सियाराम माता बोकारो में सिपाही पद पर कार्यरत हैं। कठिन मेहनत और परिश्रम कर इन्होंने यह रैंक प्राप्त किया है।

    ये तो चंद उदाहरण है। इन जैसे दर्जनों गुदड़ी के लाल झारखंड में हैं, जिन्होंने अभाव की जिंदगी जीते हुए भी सफलता की सीढ़ी चढ़ी और अपना मुकाम खुद हासिल किया। आज झारखंड ऐसे युवाओं पर गर्व कर रहा है। इन सभी परीक्षार्थियों ने ना सिर्फ अपने सपने को साकार किया है, बल्कि सभी युवाओं के आइडल भी बन चुके हैं। इन्होंने यह साबित कर दिया कि इंसान की असली पूंजी धन-दौलत नहीं होती, बल्कि कठोर परिश्रम और कड़ी मेहनत ही इंसान का असली धन होता है। धन के रूप में अर्जित की गयी संपत्ति को लोग बांट सकते हैं, लेकिन शिक्षा रूपी धन का बंटवारा नहीं होता। यह आपकी पूंजी होती है, जो आजीवन आपके साथ रहती है और आपको सम्मान दिलाती रहती है।

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