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    Home»Breaking News»ये क्या, कांग्रेस के साथ तो खेला हो गया!
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    ये क्या, कांग्रेस के साथ तो खेला हो गया!

    azad sipahiBy azad sipahiJune 1, 2022No Comments13 Mins Read
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    हेमंत ने वही किया, जो उन्हें पार्टी हित में करना चाहिए था

    राज्यसभा उम्मीदवार को लेकर झारखंड में कांग्रेस के साथ बड़ा खेला हो गया है। कांग्रेस सत्ता में हिस्सेदार तो है, लेकिन उसकी स्थिति गले में फंसी उस हड्डी की तरह हो गयी है, जो न निकल सकती है न निकलना चाहती है। आंख है भरी-भरी और तुम मुस्कुराने की बात करते हो। यह लाइन शायद झारखंड कांग्रेस के लिए सटीक बैठती है। जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी ने तो इससे भी बड़ी लाइन दे मारी है: पत्थर तो हजारों ने मुझे मारे थे मगर, जो दिल पर आके लगा वह एक दोस्त ने मारा था! अब वह दोस्त कौन है, यह सबको पता है। वहीं कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह ने भी एक ट्वीट कर लिखा है: विनाशकाले विपरीत बुद्धि! उस ट्वीट पर कांग्रेस नेता सुखदेव भगत ने रीट्वीट कर लिखा, जब नाश मनुज पे छाता है, पहले विवेक मर जाता है। दीपिका पांडेय सिंह ने जेएमएम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। मंगलवार को पत्रकारों से बात कर उन्होंने यहां तक कह डाला कि यह सोनिया गांधी का अपमान है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि जब से राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी है, न हम युवाओं की उम्मीदों को पूरा कर पा रहे हैं, ना ही हम भ्रष्टाचार पर लगाम लगा पा रहे हैं। जो पिछले सरकार में भ्रष्ट अधिकारी थे, उनकी सीएमओ से जो घनिष्ठता है, वह कहीं न कहीं कांग्रेस के ऊपर दाग लगा रही है। उन्होंने ट्वीट कर ये भी लिखा कि प्रदेश में एक नयी तरह की राजनीति चल रही है, आप जिसके साथ मिल कर सरकार चला रहे, उसके साथ ही छल कर रहे हैं। आप पर जांच का दबाव है, हम भी जानते हैं, लेकिन गठबंधन धर्म के नाम पर अधर्म बर्दाश्त नहीं होगा। वहीं झारखंड में कांग्रेस की पहचान रहे पीएन सिंह के पुत्र अमरेंद्र सिंह ने तो कांग्रेसियों को धिक्कार ही दे डाली है। लिखा है: झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तलवाचाट नेता डूब मरो। वहीं भाजपा विधायक भानु प्रताप शाही लिखते हैं, सारे मान सम्मान गिरवी रख कर, सारे अपमान सह कर भी हम सरकार में बने रहेंगे, हम हैं झारखंड के कांग्रेसी। ट्विटर पर अभी तमाम तरह की प्रतिक्रयाएं चल रही हैं। कांग्रेस को यह अनुभव ढाई साल बाद हुआ है। सरकार गठन के समय कांग्रेस बहुत खुश थी। विधायकों की संख्या कम होने के बावजूद उसे चार-चार महत्वपूर्ण मंत्रिपद मिले थे। उस समय कांग्रेस ने झामुमो संग मिल कर एक गाना गाया था: रहे लाख दुश्मन जमाना हमारा सलामत रहे दोस्ताना हमारा। लेकिन झामुमो ने अपने राज्यसभा उम्मीदवार के नाम की घोषणा क्या कर डाली, कांग्रेसी तो- दोस्त-दोस्त न रहा प्यार-प्यार न रहा, जिंदगी हमें तेरा, ऐतबार ना रहा वाली मोड में आ चुकी है। ऐसे तो कांग्रेस को पहले से ही शिकायत थी कि अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते, लेकिन अब तो उनके सहयोगी दल भी उन्हें तवज्जो नहीं देते। झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और सीएम हेमंत सोरेन ने अपने उम्मीदवार महुआ माझी के नाम की घोषणा कर दी। इसमें गलत क्या है। झामुमो ने मेहनत कर 30 विधानसभा सीटें जीती थीं। वहीं कांग्रेस ने मात्र 16 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था। अंतर लगभग डबल। तो दो बार झामुमो को अपने उम्मीदवार को राज्यसभा भेजना तो बनता है। यह अलग बात है कि बाद में बंधु तिर्की और प्रदीप यादव ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली, लेकिन फिर भी कांग्रेस क्या कर सकती है। कांग्रेस की आज जो हालत हुई है, उसकी जिम्मेदार खुद कांग्रेस ही है। झारखंड में कांग्रेस के विधायकों और नेताओं में कोई कमी नहीं है, लेकिन अगर आलाकमान की कमान ही ढीली है, तो पार्टी मजबूत कैसे बनेगी। गनीमत है कि अभी झारखंड कांग्रेस के नेताओं ने पलायन नहीं किया है। कांग्रेस आलाकमान की हालत भी किसी से छिपी नहीं है। जिस प्रकार से कांग्रेस ने देश स्तर पर राज्यसभा उम्मीदवारों की सूची जारी की है, उससे तो उनके चिंतन इवेंट की पोल ही खुल रही है। अधिकांश राज्य में उसने बाहरी उम्मीदवार थोपे हैं। झारखंड में भी गुलाम नबी आजाद को थोपने की बात थी, जिन्हें खुद कांग्रेस आलाकमान ने किनारे लगाया था। क्या सचमुच में झारखंड में कांग्रेस की कोख इतनी खाली है कि यहां उसे कोई धरती पुत्र या मूलवासी नहीं मिल रहा था। हेमंत की जगह कोई भी होता, तो अपनी पार्टी के हित में यही करता। क्यों है झारखंड में कांग्रेसी नेताओं का हाल बेहाल, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    कांग्रेस ने उदयपुर में आयोजित चिंतन शिविर में संगठनात्मक स्तर से लेकर चुनावी स्तर तक इतनी रणनीतियां बनायीं कि कांग्रेसियों को सब कुछ फुलप्रूफ लगने लगा। जब नयी ऊर्जा के संचार के साथ झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर राजस्थान के उदयपुर में आयोजित तीन दिवसीय नव संकल्प चिंतन शिविर में भाग लेकर रांची लौटे, कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खूब उत्साह था। एयरपोर्ट पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनका जोरदार स्वागत पुष्प गुच्छ देकर किया। एयरपोर्ट पहुंचे राजेश ठाकुर काफी उत्साहित थे। उनकी बॉडी लैंग्वेज ही बदल गयी थी। कहा कि उदयपुर से नव संकल्प चिंतन शिविर से भाग लेकर आ रहा हूं। निश्चित रूप से नयी ऊर्जा का संचार हुआ है। इसका असर आपको जरूर दिखाई देगा। ऊर्जा से लबरेज राजेश ठाकुर ने यह भी कहा था कि जिस तरह से राहुल गांधी ने सभी लोगों की बात संजीदगी से सुनी। सोनिया गांधी ने सभी कैंपों में आकर जानकारी ली कि शिविर में क्या चिंतन हो रहा है, क्या संकल्प लिया जा रहा है। निश्चित तौर पर यह कह सकते हैं कि जिन लोगों ने वहां पर पढ़ा है, समझा है, चिंतन किया है, उसका निर्णय 2024 के चुनाव में जरूर दिखाई देगा। लेकिन 2024 तो अभी दूर की बात है। अभी चिंतन शिविर खत्म हुए एक पखवाड़ा भी नहीं हुआ था कि सारे के सारे चिंतन मंथन में बदल गये। कांग्रेस आलाकमान ने चिंतन शिविर में संकल्प लिया था कि एक परिवार-एक टिकट, युवाओं और सीनियर नेताओं को 50- 50 प्रतिशत टिकट, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व वगैरह-वगैरह। कांग्रेस पार्टी कम से कम अपने किये हुए वादे पर तो खरी उतरती। लेकिन यह क्या। जब 50 साल से कम उम्र के नेताओं को राज्यसभा में भेजने की बारी आयी, तो उसे फिर ग्रैंड ओल्ड पार्टी के पुराने चावल ही याद आ गये। दरबारियों ने आलाकमान को ऐसी घुट्टी पिलायी कि वादा बेवादा में बदल गया। अपनी ढलती उम्र के कारण पार्टी पर बोझ बने पुराने कांग्रेसियों के मोह जाल में वह ऐसी फंसी कि वह उसी बैक डोर एंट्री वाली पॉलिटिक्स की राह पर चल निकली, जिससे कांग्रेस का बेड़ा गर्क हुआ है। इस बार के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने ऐसे-ऐसे उम्मीदवारों के नाम दिये हैं, जिसके कारण देश स्तर पर उसकी पुरजोर आलोचना हो रही है। कांग्रेस की यह सूची उपयोगिता, वफादारी और दरबारी साजिशों की कहानी कह रही है। लगभग 90 प्रतिशत ऐसे लोगों को उम्मीदवार बनाया गया है, जिनका उस जगह से कोई लेना-देना नहीं है। न तो उस राज्य से वे आते हैं, न ही उस राज्य के जमीनी मुद्दों से वे परिचित हैं। ऐसे में उन राज्यों में कांग्रेस के जो समर्पित नेता या कार्यकर्ता हैं, उन्हें धक्का लगा है। वे बेचारे मन मसोस कर रह गये हैं।

    शुरू में जब झारखंड में महागठबंधन राज्यसभा उम्मीदवार के नाम पर विचार कर रहा था, तब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर, पुराने कांग्रेसी नेता सुबोधकांत सहाय और पूर्व सांसद फुरकान अंसारी के नाम की भी चर्चा हो रही थी। फिर अचानक सूई की दिशा कहीं और मुड़ गयी। लेकिन झामुमो एकतरफा जाकर निर्णय ले लेगा और सोनिया गांधी से मिलने के बाद महुआ माझी के नाम की घोषणा कर देगा, यह किसी कांग्रेसी ने नहीं सोचा था। बता दें कि भाजपा के दो नेताओं केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और भाजपा सांसद महेश पोद्दार का कार्यकाल आगामी 7 जुलाई को समाप्त हो रहा है। इसी के चलते झारखंड से राज्यसभा की दो सीटों पर चुनाव होंगे। इसके लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख 31 मई तय थी। वहीं, मतदान 10 जून को होगा। लेकिन जिस प्रकार से कांग्रेस के साथ खेला हो गया, वह भी एन मौके पर, जब नामांकन की तिथि में महज 24 घंटे भी शेष नहीं रह गये थे, तो समझा जा सकता है कि कांग्रेस की हालत झारखंड में क्या है। वह कितनी प्रभावी है। उसकी उपयोगिता क्या है। ऐसे भी झामुमो को लगता ही होगा कि चार-चार मंत्रिपद तो कांग्रेस पहले ही ले चुकी है और उसे क्या चाहिए। अगर झामुमो महुआ माजी को राज्यसभा उम्मीदवार नहीं बनाता, तो उसके कार्यकर्ताओं में भी तो रोष होता। झामुमो ने तो यह दांव खेल कर अपनी साख की धाक ही बचायी है। महुआ माजी झामुमो की एक कर्तव्यनिष्ठ, जमीनी और माटी की कार्यकर्ता रही हैं। साहित्य जगत में उनका बड़ा नाम है। वह मृदुभाषी और मिलनसार भी हैं। वह झामुमो की महिला शाखा की अध्यक्ष पद भी संभाल चुकी हैं। वह रांची विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ चुकी हैं और सीपी सिंह के खिलाफ इतना ज्यादा वोट लायीं कि लोगों ने दांतो तले अंगुली दबा ली। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि भाजपा का रांची सीट से पत्ता साफ हो जायेगा, लेकिन चुटिया इलाके ने सीपी सिंह की लाज रख ली। वह हारते-हारते जीत गये और महुआ माझी जीतते-जीतते हार गयीं।

    झामुमो द्वारा लिया गया यह फैसला उसके हित में है, लेकिन कांग्रेस इसे अनैतिक मान रही है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर का दर्द छलक रहा है। वह कह रहे हैं कि यह महागठबंधन का फैसला नहीं है, झामुमो का फैसला है। हमने पार्टी आलाकमान को इसकी जानकारी दे दी है। झारखंड प्रभारी से बातचीत के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि कांग्रेस का रुख क्या होगा और हमें आगे क्या करना चाहिए। राजेश ठाकुर की बातों को सुन कर करन अर्जुन फिल्म का वह डायलॉग याद आ गया, जिसमें मां की भूमिका अदा कर रही राखी कहती हैं कि मेरे करन अर्जुन आयेंगे और सबक सिखायेंगे। लेकिन मजे की बात यह है कि जिस समय राजेश ठाकुर यह बोल रहे थे, उस समय नामांकन दाखिल करने में सिर्फ 18 घंटे का समय शेष था। राजेश ठाकुर के मन में कसक तो रह ही गयी है। उन्हें लग रहा था कि शायद बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जायेगा और वह राज्यसभा पहुंच जायेंगे। लेकिन कहते हैं: मन का सोचा हर काम पूरा नहीं होता। राजनीति में भाग्य भी बड़ी चीज होती है। और हर किसी का भाग्य सिकंदर जैसा नहीं होता।
    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की तरफ से महुआ माझी के नाम की घोषणा करने के बाद इसमें कोई दो राय नहीं कि महागठबंधन को लेकर अब तरह-तरह के सवाल उठेंगे। कांग्रेसियों में कानाफूसी शुरू हो गयी कि इस महागठबंधन का क्या मतलब और ऐसे में यह कितना दिन चलेगा। यानी महागठबंधन को लेकर दरार तो पड़ ही गयी है, जिसे दिल्ली आलाकमान ने भी महसूसा। डैमेज कंट्रोल के तहत कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे ने तत्काल सोनिया गांधी से मुलाकात की और झारखंड के राजनीतिक हालात से उन्हें अवगत कराया। उन्होंने झारखंड के कांग्रेसियों की भावना से भी सोनिया को रूबरू कराया। सोमवार की शाम लगभग एक घंटे तक अविनाश पांडे और सोनिया गांधी की बातचीत हुई। वहां से निकलने के बाद अविनाश पांडे ने सचेत होकर सिर्फ इतना कहा कि अच्छा होता अगर सामंजस्य बना कर फैसला लिया जाता। उन्होंने जानकारी दी कि वह रांची जाकर विधायकों और वरीय नेताओं संग मंत्रणा करेंगे। उन्होंने दिल्ली में ही यह साफ संकेत दे दिया कि झामुमो की एकतरफा घोषणा से भी महागठबंधन में कोई दरार नहीं पड़ेगी। उन्होंने इस बात से भी इनकार किया कि कांग्रेस अपना उम्मीदवार उतारेगी। उन्होंने साफ कहा कि कांग्रेस के पास संख्या बल नहीं है। सिर्फ उम्मीदवार खड़ा करने से नहीं होता। लेकिन बातचीत में उनके अंदर की पीड़ा झलक रही थी। अब अविनाश पांडे रांची पहुंच चुके हैं। विधायकों, नेताओं और मंत्रियों से लगातार अलग-अलग मंत्रणा कर रहे हैं, लेकिन झामुमो का समर्थन करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है। वह झारखंड के हालात से अच्छी तरह वाकिफ हैं। उन्हें पता है कि सरकार को लेकर अभी झारखंड में किस तरह की हायतौबा मची हुई है। यहां के अधिकारियों की सांसें अंटकी हुई हैं। आइएएस अधिकारी पूजा सिंघल की नोटों की पूजा तो देश भर में सुर्खियां बटोर ही रही है। सत्ता और विपक्ष के बीच भ्रष्टाचार को लेकर आये दिन प्रेस कांफ्रेंस की बरसात हो रही है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर अभी चरम पर है, शब्द भेदी बाण एक दूसरे पर चलाये जा रहे हैं। अब इसमें एक कोण खुद कांग्रेस नेता हो गये हैं। राज्यसभा उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस गुस्से में है और ट्विटर के माध्यम से नेता अपने गुस्से का इजहार भी कर रहे हैं। उसका संदेश तो यही है कि हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, मेरी किश्ती थी डूबी वहां जहां पानी कम था। वहीं कांग्रेस के एक विधायक ने कहा कि वे प्रभारी से आग्रह करेंगे कि तत्काल सभी मंत्रियों से इस्तीफा ले लें।

    बेइज्जत होकर सरकार में रहने का कोई फायदा नहीं है। एक अन्य विधायक के मुताबिक झामुमो को समर्थन जारी रखना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर है। अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी की लुटिया डूब जायेगी। आलाकमान अगर सतर्क नहीं हुआ तो कई विधायक झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं। अभी देश स्तर पर कांग्रेस की दुर्गति हुई पड़ी है। ऐसे ही पार्टी में पलायन का दौर जारी है। अगर कांग्रेस अपने लोगों के लिए स्टैंड नहीं लेगी, तो वही हाल होगा, जो बंगाल में भाजपा का हो रहा है। अगर भाजपा बंगाल में अपने कार्यकर्ताओं के लिए खड़ी रहती, तो वे पार्टी छोड़ ममता के साथ नहीं जाते। यह कांग्रेस का फौरी गुस्सा है। विफल होने पर कांग्रेसी अपने मन की गुब्बार निकाल रहे हैं, जबकि सच्चाई यही है कि कांग्रेस जायेगी कहां। उसके गिनती के विधायक हैं और ये विधायक भी महागठबंधन बनने के कारण ही आये हैं। योग्यता के आधार पर कांग्रेस के छह विधायक भी जीत जायें, तो बड़ी बात होगी। ऐसे में चाहिए कि कांग्रेस सच्चाई को स्वीकारे और 30 विधायकों वाली झामुमो का साथ दे। अगर 30 विधायक के बाद भी झामुमो राज्यसभा में अपना प्रतिनिधि नहीं भेजेगा, तो फिर कम विधायक होने पर उसकी कौन सुनेगा। सच तो यही है कि झामुमो का राज्यसभा का दावा मजबूत है और महुआ माझी के नाम की घोषणा कर हेमंत सोरेन ने कांग्रेस के साथ कोई धोखा नहीं किया है। अच्छा तो यही होगा कि कांग्रेस उनका समर्थन कर अपनी इज्जत बचाये। नहीं तो वो दिन भी दूर नहीं जब कोंग्रेसी गाते फिरेंगे। कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा, हम कहीं के न रहे, कोई हमारा न रहा। हां भाजपाई तो अलग ही मजा ले रहे हैं। जरा भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव की सुनिये: बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम।

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