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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»छत्तीसगढ़ में भी राम-हनुमान के सहारे कांग्रेस
    स्पेशल रिपोर्ट

    छत्तीसगढ़ में भी राम-हनुमान के सहारे कांग्रेस

    adminBy adminJune 4, 2023No Comments7 Mins Read
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    विशेष
    -चुनाव से पहले राष्ट्रीय रामायण महोत्सव के आयोजन से दिया संदेश
    -कर्नाटक में मिली जीत को बजरंग बली की कृपा बता रही है पार्टी
    -प्रदेश में हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है ग्रैंड ओल्ड पार्टी

    इस साल के अंत में हिंदी पट्टी के जिन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें छत्तीसगढ़ भी है। 2018 में राज्य में हुए चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को पराजित कर सत्ता हासिल की थी। उस बार कांग्रेस ने सत्ता विरोधी लहर का लाभ उठाया था, लेकिन इस बार वही सत्ता विरोधी लहर उसके खिलाफ काम कर रही है। इसलिए राज्य में कांग्रेस हर कदम फूंक-फूंक कर उठा रही है। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद अब छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस राम और हनुमान के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है। पार्टी की राम भक्ति का आलम यह है कि सरकार वहां राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन करा रही है और कर्नाटक की जीत को बजरंग बली की कृपा बता रही है। सियासी हलकों में कांग्रेस के इन कदमों को चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। वैसे भी छत्तीसगढ़ में भगवान राम को भांजा माना जाता है, क्योंकि कौशल्या का मायका यहीं है। लेकिन अब तक कभी यहां राम को सियासत में नहीं उतारा गया था। इसलिए इस बार कांग्रेस के इन कदमों से लोगों को थोड़ा अचरज भी हो रहा है।
    अब तो स्थिति यह है कि कांग्रेस की हर छोटी-बड़ी सभा में ‘जय बजरंगबली’ और ‘जय श्रीराम’ के नारे खुलेआम लगाये जाने लगे हैं, हनुमान चालीसा का पाठ किया जा रहा है और रामचरित मानस उपहार स्वरूप दिये जा रहे हैं। भगवान राम और हनुमान के सहारे हिंदुओं को आकर्षित करने की कांग्रेस की यह सियासी कवायद कितनी सफल होगी, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसके लिए सियासी माहौल गरमाने लगा है। एक तरफ कांग्रेस लगातार दूसरी बार राज्य की सत्ता में वापसी के लिए प्रयास में जुटी है, तो भाजपा हिंदी पट्टी के राज्यों में अपनी मौजूदगी को विस्तार देने के लिए कोशिश कर रही है। कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ का चुनाव उसके राजनीतिक भविष्य के मद्देनजर बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि यहां पार्टी पिछड़ती है, तो फिर पूर्व और मध्य भारत में उसके लिए परेशानी खड़ी हो जायेगी। इसलिए कांग्रेस वह हर कदम उठाने के लिए तैयार है, जो उसे वोट दिला सके। इस क्रम में उसने हिंदुत्व और राम-हनुमान के नाम का सियासी इस्तेमाल करना भी शुरू कर दिया है।
    कांग्रेस की राम के प्रति उमड़ी इस अगाध भक्ति का प्रमाण गुरुवार से रायपुर में शुरू हुआ राष्ट्रीय रामायण महोत्सव है। वैसे तो यह विशुद्ध रूप से धार्मिक-आध्यात्मिक आयोजन है, लेकिन इसे लेकर भाजपा और कांग्रेस में जम कर सियासत चल रही है। कांग्रेस कह रही है कि भाजपा खुद को असुरक्षित महसूस कर रही है, क्योंकि राम तो आदि और अंत दोनों हैं। छत्तीसगढ़ से उनका विशिष्ट नाता है। वह कौशल्या के राम हैं, शबरी के राम हैं। वह हमारे भांजे राम हैं। लोग उन्हें अनेक रूप में देखते हैं।
    सुख में और दुख में लोग राम का स्मरण करते हैं, लेकिन भाजपा केवल चुनाव के समय वोट के लिए राम को याद करती है। इधर भाजपा ने रामायण महोत्सव को चुनाव से जोड़ते हुए कांग्रेस के नेताओं को राक्षस बता दिया है। पार्टी ने कहा कि अरण्यकांड में दो घटनाओं का जिक्र है, एक भगवान राम की नवधा भक्ति का और दूसरा मारीच और सुबाहू जैसे राक्षसों का वध। ये कांग्रेसी राक्षसी प्रवृत्ति के हैं। उनका वध इस चुनाव में सुनिश्चित है। छत्तीसगढ़ में राक्षसों और उनकी 14 हजार सेनाओं का वध हुआ था। जिन राक्षसों का वध हुआ, उसी के बराबर कांग्रेस का वध होगा। इनकी भी पूरी 14 हजार सेना का वध होगा।

    हनुमान जी की कृपा है कर्नाटक में जीत
    कांग्रेस लगातार यह प्रचारित कर रही है कि भगवान श्रीराम का इस्तेमाल भाजपा द्वारा वोट के लिए किये जाने के कारण हनुमान जी भाजपा से नाराज हैं। इसलिए कर्नाटक चुनाव में उन्होंने कांग्रेस को जीत दिलायी। अब छत्तीसगढ़ की बारी है, क्योंकि हनुमान जी को इस बात पर घोर आपत्ति है कि भगवान श्रीराम की ननिहाल को भाजपा ने नजरअंदाज कर दिया है। इतना ही नहीं, कांग्रेस के हर आयोजन में अब हनुमान चालीसा का पाठ होता है और अतिथियों को रामचरित मानस की प्रति भेंट स्वरूप दी जाती है।

    छत्तीसगढ़ से क्या है भगवान राम का रिश्ता
    बता दें कि रामायण काल में छत्तीसगढ़ को दक्षिण कौशल कहा जाता था। यह माता कौशल्या की जन्मभूमि मानी जाती है। राजधानी रायपुर के चंद्रखूरी में माता कौशल्या का एकमात्र मंदिर है।
    इसे विकसित करने और छत्तीसगढ़ को भगवान राम की ननिहाल के रूप में प्रस्तुत करने के लिए कांग्रेस ने पिछले साढ़े चार साल में बड़ा अभियान चलाया। छत्तीसगढ़ के जिन जगहों में भगवान राम के कदम पड़े थे, उन जगहों को विकसित करने का काम शुरू किया गया है। इसका असर अब चुनाव के ठीक पहले देखने को मिल रहा है। कांग्रेस भाजपा को राम के नाम पर लगातार अटैक कर रही है।

    चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस ने राम का सहारा लिया था
    हालांकि छत्तीसगढ़ कांग्रेस सरकार द्वारा हिंदू देवी-देवताओं पर यह फोकस नया नहीं है। 2018 विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाने के एक वर्ष के अंदर ही राज्य में राम से जुड़े धार्मिक स्थलों को विकसित किये जाने की चर्चाएं तेज हो गयी थीं और एक साल के अंदर ही राम वन गमन पथ को विकसित करने की मंजूरी भी राज्य सरकार की कैबिनेट मीटिंग में मिल गयी थी। पिछली बार और इस बार में अंतर केवल इतना है कि पिछली बार चुनाव में कांग्रेस ने राम या हिंदुत्व का सहारा नहीं लिया था, जबकि इस बार वह इस पर बाकायदा वोट मांग रही है। कांग्रेस का दावा है कि राम ने अपने वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ की लगभग 51 जगहों पर रुक कर समय व्यतीत किया था और इन्हीं जगहों में से नौ स्थलों को राम वन गमन पथ के पहले भाग के अंदर विकसित करने की योजना बनायी गयी। योजना के चालू होने से लेकर अब तक दो ही स्थानों को पूरी तरह से तैयार किया जा चुका है, जिसमें रायपुर के पास चंद्रखुरी में कौशल्या माता का मंदिर और शिवरीनारायण शामिल हैं। लेकिन इस योजना के, राम पर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के उमड़ते प्रेम के और धार्मिक टूरिज्म के अलावा भी कांग्रेस पार्टी द्वारा राम पर केंद्रित रहने के राजनीतिक मायने भी हैं।

    राम के नाम पर राजनीति से चुनाव में फायदा मिलेगा
    छत्तीसगढ़ वैसे तो धार्मिक कट्टरता के लिए नहीं जाना जाता है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में राज्य में हिंदू-मुस्लिम झड़पें, आदिवासी समुदायों में और आदिवासियों और इसाई आदिवासियों के बीच हिंसा होती रही है। इन हिंसक वारदातों में राज्य सरकार की चुप्पी लोगों को अकसर अचरज में डालती रही है। इसलिए कहा जा रहा है कि इस बार कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल ठीक वैसा ही बन रहा है, जैसा कि 2018 में भाजपा के खिलाफ बना था। लोग कह रहे हैं कि राज्य में धार्मिक कट्टरता बढ़ी है। हालांकि राज्य में अन्य समुदाय, जैसे कि मुस्लिमों की आबादी महज दो-तीन प्रतिशत ही है और इसाइयों की आबादी भी काफी कम है, इसके बावजूद कट्टर हिंदुत्व की भावनाओं ने जोर पकड़ा है और इसी बात का फायदा अब कांग्रेस उठा रही है। यह कहना सही होगा कि कांग्रेस उस तर्ज़ पर काम कर रही है कि अगर धर्म के आधार पर ही वोट लेना है, तो वह किसी से कम नहीं है।
    कहने को तो कांग्रेस पर कई बार सॉफ्ट हिंदुत्व के आरोप लगते आये हैं और उस पर भाजपा के एजेंडे पर काम करने का भी आरोप लगा है, लेकिन अगले विधानसभा चुनावों के कुछ पहले ही एक बड़ा सरकारी रामायण महोत्सव कांग्रेस को राजनीतिक फायदा पहुंचाने में कितना सक्षम होता है, यह देखने लायक बात होगी।

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