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त्रासदी को हादसा बताने की जल्दबाजी ने साबित की कांग्रेस की कमजोरी
पुलिस प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन पर ध्यान दिया होता, तो नहीं होता यह हादसा
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बेंगलुरु में चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत के बाद से प्रशासन पर लापरवाही और कुप्रबंधन के आरोप लग रहे हैं। सरकार ने मुआवजे की घोषणा तो कर दी है, लेकिन जवाबदेही तय करने की मांग की जा रही है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर प्रशासन को अंदाजा कैसे नहीं था कि लाखों लोग जश्न में शामिल होने के लिए पहुंचेंगे। इतने बड़े आयोजन की अनुमति बिना पुख्ता व्यवस्था के क्यों दी गयी और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षाबलों की तैनाती क्यों नहीं की गयी। सवाल कई सारे हैं और इनके जवाब मिलना भी जरूरी है। बेंगलुरु की टीम आरसीबी ने 18 साल के लंबे इंतजार के बाद आइपीएल ट्रॉफी जीती थी। जाहिर है कि टीम के साथ फैंस का भी उत्साह चरम पर था। लेकिन हादसे के बाद जीत का जश्न मातम में बदलते देर नहीं लगी। लेकिन इसके संकेत दोपहर से ही मिलने लगे थे। दोपहर से ही स्टेडियम के बाहर लोगों की भीड़ पास लेने के लिए जुटने लगी थी। इस दौरान ये बात फैल गयी कि टिकट ‘पहले आओ-पहले पाओ’ के आधार पर दिया जायेगा। इससे भीड़ बेसब्र हो गयी। कई लोग इस उम्मीद में थे कि टिकट मिले या न मिले, स्टेडियम में किसी तरह एंट्री मिल ही जायेगी। स्टेडियम में एंट्री के लिए पूर्वी गेट खोला गया, जिसमें दो लोग एक साथ मुश्किल से ही घुस सकते थे। लेकिन इस गेट से पूरी भीड़ एक साथ घुसने की कोशिश करने लगी। वास्तव में यह पूरा हादसा कांग्रेस सरकार की कमजोरी और प्रशासनिक विफलता का जीता-जागता उदाहरण है। क्या हुआ बेंगलुरु में और किस तरह एक और भगदड़ में निर्दोष लोगों की जान चली गयी, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बेंगलुरु के इतिहास में जो एक उल्लासपूर्ण क्षण होना चाहिए था, वह कुप्रबंधन और त्रासदी के एक भयावह दृश्य में बदल गया। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) द्वारा 18 वर्षों के बाद अपना पहला आइपीएल खिताब जीतने के जश्न के दौरान एम चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर मची भगदड़ में कम से कम 11 लोगों की जान चली गयी और तीन दर्जन लोग घायल हो गये। जश्न जल्द ही अराजकता में बदल गया, जिससे कांग्रेस के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार द्वारा भीड़ नियंत्रण में घोर विफलता उजागर हुई। यह हादसा आरसीबी की बहुप्रतीक्षित विजय परेड के समापन के दौरान हुआ, जिसमें हजारों प्रशंसक शामिल हुए थे। प्रत्यक्षदर्शियों के बयान और वायरल वीडियो में अनियंत्रित भीड़, अड़चनों वाले प्रवेश बिंदु और स्पष्ट रूप से कम तैयार सुरक्षा तंत्र दिखाई दे रहा है। शहर के लिए गौरव के क्षण के रूप में जो योजना बनायी गयी थी, वह प्रशासन के रिकॉर्ड पर एक काला धब्बा बनकर रह गयी।
चेतावनी के बाद भी आयोजन
पुलिस ने पहले ही कार्यक्रम के आयोजन को हाइ-रिस्क वाला बताया था, लेकिन बावजूद इसके, आयोजन किया गया। लाखों की भीड़ को देखने हुए पुलिस ने विक्ट्री परेड को रद्द करने की जानकारी दी थी। बावजूद इसके, आरसीबी की तरफ से सोशल मीडिया पर विजय परेड होने और फ्री पास के सीमित होने की जानकारी शेयर की गयी। स्टेडियम का गेट खुला और लोगों ने एंट्री के लिए धक्का-मुक्की करनी शुरू कर दी। कतार तो छोड़िए, सारे नियम-कायदे और सिविल अनुशासन ताक पर रख दिये गये। कोई गेट पर चढ़ने की कोशिश करने लगा, कोई बैरिकेड्स को धक्का देने लगा। लोग इस कदर उमड़े थे कि स्टेडियम तो छोड़िए, सड़क पर भी तिल रखने की जगह नहीं बची थी।
स्पष्ट लापरवाही और कुप्रबंधन
हादसे के बाद भले ही सरकार यह कह रही हो कि कार्यक्रम आनन-फानन में हुआ और तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला, लेकिन कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ ने तीन जून को ही सरकार को पत्र लिखकर कार्यक्रम की अनुमति मांगी थी। प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया है कि एंट्री प्वाइंट पर भीड़ के टूट पड़ने के कारण भगदड़ मची। क्या प्रशासन के पास वहां इंतजाम कम पड़ गया। बताया ये भी जा रहा है कि सिटी पुलिस का एक बड़ा हिस्सा विधान सौधा परिसर में तैनात कर दिया गया था, क्योंकि मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और राज्यपाल वहां पहुंचने वाले थे। विधान सौधा और स्टेडियम, दोनों ही जगह अनुमान से अधिक भीड़ पहुंची, जिससे पुलिस इन्हें नियंत्रित नहीं कर पायी।
मुंबई विजय परेड की तुलना नहीं
यह आपदा पिछले साल मुंबई में आयोजित की गयी विजय परेड से तुलना करने पर और भी अधिक भयावह हो जाती है, जब टीम इंडिया अमेरिका और कैरिबियन द्वीपों में आयोजित टी20 विश्व कप से विजयी होकर घर लौटी थी। उस मामले में मुंबई पुलिस ने शहर के अधिकारियों के साथ मिलकर भारतीय टीम के लिए एक खुली बस परेड आयोजित की थी, जिसमें खिलाड़ियों ने प्रतिष्ठित मरीन ड्राइव पर उमड़ी भीड़ के सामने विश्व कप ट्रॉफी दिखायी थी, जिसे ‘क्वींस नेकलेस’ के नाम से भी जाना जाता है।
कैसे हुआ था मुंबई के विजय जुलूस का कुशलतापूर्वक प्रबंधन
मुंबई परेड की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी थीं। नरीमन प्वाइंट से चौपाटी तक प्रशंसकों का एक समूह सड़कों, बालकनियों और छतों से जयकारे लगा रहा था और एक भी बड़ी घटना की खबर नहीं आयी। यह सफल आयोजन महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की दूरदर्शिता, अनुशासन और समन्वय का प्रमाण था। इसके विपरीत कर्नाटक में सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है, न केवल इस त्रासदी के लिए, बल्कि बेंगलुरु में प्रशासनिक सुस्ती और खराब शहरी नियोजन के चल रहे पैटर्न के लिए भी। चाहे वह गड्ढों से भरी सड़कें हों, कुप्रबंधित त्योहार हों या नागरिक उदासीनता, सरकार हमेशा पीछे की ओर ही खड़ी दिखती है।
अल्लू अर्जुन अलग-अलग भगदड़ की घटना में गिरफ्तार
चिंता की बात यह है कि आरसीबी में भगदड़ कोई अकेली घटना नहीं है। कुछ महीने पहले ही, हैदराबाद में अपनी नवीनतम फिल्म पुष्पा 2 की स्क्रीनिंग के दौरान मची भगदड़ के दौरान एक प्रशंसक की मौत के सिलसिले में टॉलीवुड सुपरस्टार अल्लू अर्जुन को गिरफ्तार किया गया था। यह कार्यक्रम एक भव्य प्रीमियर के रूप में आयोजित किया गया था, लेकिन इसमें भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बुनियादी व्यवस्थाएं नहीं थीं। दुखद परिणाम यह हुआ कि एक और युवा की जान चली गयी। यह राज्य में हाइ प्रोफाइल सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान भीड़ के व्यवहार का अनुमान लगाने और उसे प्रबंधित करने में अधिकारियों की विफलता को और उजागर करता है।
प्राकृतिक नहीं था बेंगलुरु हादसा
आरसीबी भगदड़ कोई प्राकृतिक आपदा नहीं थी। यह एक मानव निर्मित विफलता थी। आत्मसंतुष्टि, खराब योजना और लोगों के उत्साह और प्रशासन की तैयारियों के बीच स्पष्ट विसंगति का परिणाम। मुंबई के विपरीत बेंगलुरु में कोई खुली बस परेड की योजना नहीं बनायी गयी थी। फिर भी एक स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में भी मौतें हुईं। यह दर्शाता है कि कांग्रेस सरकार जनता के उत्साह को संभालने में कितनी अक्षम थी।
अब आगे क्या
केवल शोक संदेश और मुआवजा चेक देना ही काफी नहीं है। जवाबदेही होनी चाहिए। उच्च स्तरीय जांच जरूरी है और अगर जांच में समन्वय में कमी या प्रोटोकॉल का पालन न करने की बात सामने आती है, तो जिम्मेदार लोगों को, चाहे वे किसी भी पद पर हों, जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। भारत एक ऐसा देश है, जहा क्रिकेट का जश्न एक तमाशा है। इसलिए इस तरह की त्रासदियां अक्षम्य हैं। इसलिए बेंगलुरु में जो हुआ, वह कोई सामान्य दुर्घटना नहीं थी। यह दबाव में ढहने वाली शासन व्यवस्था का लक्षण था, जबकि अन्य राज्यों में ऐसा कुशल प्रबंधन देखने को मिलता है। अंतर भीड़ में नहीं है, अंतर सरकार में है।