विशेष
बिहार से पहले हुए उपचुनाव ने कांग्रेस-भाजपा के लिए बजायी खतरे की घंटी
सबसे बड़ी राहत आम आदमी पार्टी को मिली, जिसका ग्राफ गिरता जा रहा था
केरल में कांग्रेस की जीत ने माकपा के ढहते किले को कुछ और कमजोर किया
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले देश के चार प्रमुख राज्यों, पंजाब, गुजरात, पश्चिम बंगाल और केरल की पांच विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के आये परिणामों में जहां आप और टीएमसी को खुशी मिली है, वहीं कांग्रेस और भाजपा को रणनीतिक झटका भी लगा है, लेकिन माकपा को करारी मात मिली है। उपचुनाव परिणाम इस बात का संदेश देते हैं कि जहां आप को उम्मीदों के विपरीत पंजाब और गुजरात में एक-एक सीट पर दोबारा जीत मिली है, वहीं केरल में कांग्रेस को एक सीट मिलने से वहां उसकी स्थिति मजबूत हुई है। पश्चिम बंगाल में टीएमसी को भी एक जीती हुई सीट पुन: मिलने से जहां उसका सियासी दबदबा बरकरार रहा है, वहीं गुजरात में भाजपा को महज एक सीट मिलना उसके लिए तनाव बढ़ानेवाला है। इन सभी राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होंगे। यह उपचुनाव आम आदमी पार्टी के लिए बड़ी कामयाबी लेकर आया, क्योंकि दिल्ली के बाद अब गुजरात में वह कांग्रेस के विकल्प के रूप में स्थापित होती जा रही है। वैसे देखने में यह उपचुनाव बेहद छोटा है, लेकिन इसके परिणाम में बड़े राजनीतिक संदेश छिपे हुए हैं। सियासी नजरिये से देखा जाये, तो गुजरात-पंजाब में कांग्रेस-भाजपा की हार ने देश के राजनीतिक मिजाज का एक नया अध्याय लिखना शुरू किया है, जिसका असर आगे आनेवाले चुनावों में जरूर देखने को मिल सकता है। क्या हैं इन पांच सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणामों के सियासी संदेश, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
चार राज्यों की पांच विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे घोषित कर दिये गये हैं। केरल की नीलांबुर, पंजाब की लुधियाना पश्चिम सीट, गुजरात की काडी और विसावदर और पश्चिम बंगाल की कालीगंज सीट पर उपचुनाव हुए थे। केरल की नीलांबुर को छोड़ कर बाकी जगहों पर वही पार्टी जीती है, जिसने पिछली बार भी इन सीटों को जीता था। नीलांबुर की सीट को कांग्रेस ने वाम मोर्चे से छीना है और वहां माकपा को हराया है, जबकि गुजरात की विसावदर सीट आम आदमी पार्टी ने बचायी है, जबकि उसके विधायक भूपेंद्र भयानी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये थे, जिसकी वजह से यहां उपचनाव करवाना पड़ा।
पहला संकेत केरल से
इस उपचुनाव के नतीजे से तीन बड़े संकेत मिल रहे हैं। पहला संकेत है केरल के नीलांबुर से, जहां कांग्रेस के आर्यादन शौकत ने माकपा के एम स्वराज को हराया है। यह सीट दो बार के विधायक रहे और माकपा के सर्मथन से जीतने वाले निर्दलीय पीवी अनवर के इस्तीफा देने से खाली हुई थी। अनवर इस बार भी निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़े और उन्हें करीब 10 हजार वोट मिले और यही अंतर रहा कांग्रेस और माकपा के बीच का भी। कांग्रेस के लिए नीलांबुर की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह विधानसभा सीट वायनाड लोकसभा क्षेत्र में आती है और वहां की सांसद होने के नाते प्रियंका गांधी ने भी चुनाव प्रचार में जमकर हिस्सा लिया था। नीलांबुर में कांग्रेस ने तीसरी बार उपचुनाव जीता है। 1970 और 1980 में भी कांग्रेस नीलांबुर की सीट उपचुनाव में जीत चुकी है। कांग्रेस ने 2021 के बाद पहली बार कोई सीट माकपा से जीती है। यहां मतदान का प्रतिशत भी सबसे ज्यादा 73.26 फीसदी रहा है। केरल में इसी साल स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं और अगले साल विधानसभा के। ऐसे में कांग्रेस की इस जीत को केरल के लिहाज से एक संकेत के रूप में देखा जा रहा है, जहां कहा जाता है कि कांग्रेस बंटी हुई है। शशि थरूर का अपना कैंप है और बाकियों का अपना। यहां से जीतने वाले आर्यदन शौकत के पिता भी 1987 से लेकर 2016 तक इस सीट को जीतते आये थे।
दूसरा संकेत गुजरात से
दूसरी सबसे बड़ी कहानी है आम आदमी पार्टी का विसावदर की सीट जीतना। यह सीट तब खाली हुई थी, जब आप विधायक भाजपा में चले गये थे। आम आदमी पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता गोपाल इटालिया को मैदान में उतारा था, जिन्होंने साढ़े 17 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। इस जीत के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा कि भाजपा ने जो हमारा विधायक चोरी किया था, उसे हम छीन लाये। मतलब साफ है कि अब लड़ाई भाजपा बनाम आप है। गुजरात में कांग्रेस अब नहीं रह गयी। वह भाजपा की कठपुतली बनकर रह गयी है। गुजरात में 2027 में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
तीसरा संकेत पंजाब से
तीसरी कहानी लुधियाना पश्चिम के उपचुनाव की। यह सीट आम आदमी पार्टी के विधायक के निधन के बाद खाली हुई थी और यहां से आप ने अपने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को टिकट दिया था। संजीव अरोड़ा जीते भी। कहा जा रहा है कि संजीव अरोड़ा की खाली हुई राज्यसभा सीट से शायद अरविंद केजरीवाल चुनकर आयें, लेकिन उपचुनाव में जीत के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में केजरीवाल ने राज्यसभा में जाने से इंकार किया है। लुधियाना उपचुनाव में कांग्रेस के भारत भूषण आशु दूसरे स्थान पर रहे। उन्हें 24,542 वोट मिले, जबकि संजीव अरोड़ा को 35,179 वोट। लेकिन असली कहानी भाजपा और अकाली दल की है। लुधियाना उपचुनाव यह संकेत दे रहा है कि यदि पंजाब में भाजपा को कुछ करना है, तो उसे अकाली दल का साथ लेना होगा। अब यह कैसे होगा, ये दोनों दलों पर निर्भर करता है, क्योंकि किसान आंदोलन के बाद इनके संबंध बहुत खराब हो गये हैं, लेकिन आंकड़े यही इशारा कर रहे हैं। लुधियाना उपचुनाव में भाजपा के 20,323 वोट और अकाली दल के 8,203 के वोट अगर जोड़ दिये जायें, तो भाजपा-अकाली गठबंधन दूसरे नंबर पर आता है और वह आम आदमी पार्टी को चुनौती दे सकता है।
बाकी दो और सीटों पर, गुजरात की काडी और पश्चिम बंगाल की कालीगंज, जहां उपचुनाव हुए, वहां सत्तारूढ़ दलों ने जीत दर्ज की है। बंगाल में टीएमसी की जीत का अंतर भाजपा से और बढ़ा है।
भाजपा-कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी
इस उपचुनाव का सबसे बड़ा सियासी संकेत भाजपा और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। कांग्रेस के लिए यह खतरे की घंटी इसलिए है, क्योंकि दिल्ली के बाद अब गुजरात में भी वह हाशिये पर जाती दिख रही है, जबकि आम आदमी पार्टी उसका स्थान ले रही है। भाजपा के लिए गुजरात के साथ पंजाब और पश्चिम बंगाल भी खतरे की घंटी बजा रहा है, क्योंकि इन राज्यों मे जल्दी ही चुनाव होनेवाले हैं।