पूर्वी चंपारण। जून महीना खरीफ फसलों की तैयारी के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है। इस माह में किसान धान की नर्सरी की तैयारी में जुटे है। ऐसे में किसान भाई नर्सरी लगाने के पूर्व कुछ आवश्यक बातों का ध्यान अवश्य रखे।ताकि धान का बेहतर उपज उन्हे मिल सके। उक्त बाते विकसित कृषि संकल्प अभियान के दौरान पूर्वी चंपारण जिले के परसौनी कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा विशेषज्ञ डाॅ आशीष राय ने किसानो संबोधित करते कही।
डॉ आशीष ने कहा कि धाान की नर्सरी के लिए मृदा (मिट्टी) का चयन बेहद जरूरी है। धान की नर्सरी के लिए अच्छी जलधारण क्षमता वाली चिकनी या मटियार मृदा जिसका पीएच मानक 6.5 से 7.5 तक हो यह उपयुक्त होती है।किसान भाई धान के बेहतर उपज के लिए स्वस्थ एवं रोगमुक्त पौध तैयार करने के लिए उचित जल-निकास एवं उच्च पोषक तत्वों युक्त दोमट मृदा के साथ सिंचाई के स्रोत वाली जमीन में ही नर्सरी लगाये।
डॉ आशीष ने कहा कि नर्सरी वाली भूमि को गर्मियों में अच्छी तरह से 2-3 बार हल से जुताई करके खेत को खाली छोड़ने से मृदा संबंधित रोगों में काफी कमी आती है। नर्सरी क्षेत्र को पानी से भरकर हेंगा लगाने के बाद पानी की पतली परत रखते हुए खेत को एक दिन के लिए ऐसे ही छोड़ दें। क्यारियों की उचित देखभाल के लिए 2-3 मीटर चौड़ाई तथा 8-10 मीटर लम्बाई रखनी चाहिए। विभिन्न किस्मों के लिए नर्सरी बनाते समय विभिन्न प्रजातियों की मिलावट से बचने के लिए दो प्रजातियों के बीच नर्सरी क्यारियों का फासला 1.5-2.0 मीटर होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मृदाजनित रोग एवं कीटों के नियंत्रण हेतु ट्राइकोडर्मा अथवा क्लोरोपायरीपफाॅस का प्रयोग करना चाहिए, जिससे बीज एवं मृदाजनित रोगों से बचाव हो सकता है,साथ ही इससे बीज का जमाव प्रतिशत भी बढ़ता है। बीज का चयन सावधानीपूर्वक करें। इसके लिए आधारीय एवं प्रमाणित बीजों का ही प्रयोग करें। इसमें पूर्ण जमाव, प्रजातियों की शुद्धता एवं स्वस्थ होने की प्रमाणिकता होती है। सामान्यतः मोटे दानों वाली किस्मों के लिए 30-35 कि.ग्रा. एवं पतले दानों के लिए 20-25 कि.ग्रा.प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है। एक हेक्टेयर रोपाई के लिए 500-700 वर्ग मीटर पौध क्षेत्र पर्याप्त होता है। बीज द्वारा फैलने वाले फफूंद एवं जीवाणुजनित रोगों के नियंत्रण के लिए 20-25 कि.ग्रा छांटे हुए बीज को फफूंदनाशक और कीटनाशक के घोल में डुबोकर 24 घण्टे के लिए पानी में भिगोकर रख दें तथा 24-36 घंटे तक जमाव होने दें।
उन्होंने कहा कि बीच-बीच में पानी का छिड़काव करते रहें। इसके बाद पानी की पतली सतह के साथ संतृप्त स्थिति बनाएं रखने के लिए नर्सरी क्यारियों के ऊपर अंकुरित बीजों को समान रूप से छिड़काव करें। जब तक नवपौध हरी न हो जाए, पक्षियों से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए विशेष सावधानी बरतें। पौधों के बढवार के लिये नर्सरी में खेत की तैयारी के बाद एनपीके का मिक्चर और जैविक खाद का प्रयोग जरूर करें जिससे पौधे स्वस्थ और मजबूत होंगे। नैनो डीएपी से भी बीज को ट्रीटमेंट कर सकते हैं।
कार्यक्रम में कीट वैज्ञानिक डाॅ संजय कुमार, मृद अभियांत्रिकी विशेषज्ञ डाॅ अंशू गंगवार, मछली वैज्ञानिक डाॅ रवि कुमार ने भी किसानों को अपने विषय की तकनीकी जानकारी दी।