– चीनी रक्षा मंत्री के साथ द्विपक्षीय वार्ता में हॉटलाइन फिर से शुरू करने पर हुई चर्चा
नई दिल्ली। चीन के किंगदाओ में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने गए राजनाथ सिंह ने एससीओ संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि आतंकवाद के मुद्दे पर चीन और पाकिस्तान ने हमेशा सख्त रुख अपनाने के बजाय नरम रवैया अपनाया है। यह मतभेद इसलिए भी था, क्योंकि मसौदे में आतंकवाद को ठीक तरीके से परिभारित नहीं किया गया था।
किंगदाओ में एससीओ देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए हमले के लिए पाकिस्तान समर्थित समूहों को दोषी ठहराया, जिसमें 26 नागरिक मारे गए। इसके जवाब में भारत ने ऑपरेशन ‘सिंदूर’ शुरू करके सैन्य प्रतिक्रिया दी। उनके इस बयान ने भारत के दृढ़ आतंकवाद विरोधी रुख, एससीओ से कार्रवाई की मांग और रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। राजनाथ सिंह ने कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले का पैटर्न भारत में लश्कर के पिछले आतंकवादी हमलों से मेल खाता है।
भारतीय अधिकारियों के अनुसार इस बयान पर हस्ताक्षर करने से आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा पर भारत की स्थिति कमजोर हो जाती। यह मतभेद इसलिए भी था, क्योंकि मसौदे में आतंकवाद को ठीक तरीके से परिभाषित नहीं किया गया था। राजनाथ सिंह का कहना था कि दस सदस्यीय समूह में पाकिस्तान, चीन और रूस भी शामिल हैं, लेकिन इन देशों ने कोई अंतिम घोषणा पत्र नहीं जारी किया। राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान का सीधे नाम लिए बिना कहा कि कुछ देश सीमा पार आतंकवाद को नीति के साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं और आतंकवादियों को पनाह देते हैं। ऐसे दोहरे मानदंडों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। एससीओ को ऐसे देशों की आलोचना करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
गलवान घाटी के जून, 2020 में संघर्ष के बाद रक्षा मंत्री की यह पहली चीन यात्रा थी। राजनाथ सिंह ने चीनी रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून के साथ द्विपक्षीय वार्ता की। दोनों पक्षों ने भविष्य में सीमा पर तनाव से बचने के लिए भारत-चीन हॉटलाइन को फिर से शुरू करने की संभावना सहित सैन्य संचार तंत्र पर चर्चा की। हालांकि, कोई बड़ी बातचीत नहीं हुई, लेकिन इस बैठक को इस बात का संकेत माना गया कि तनाव के बावजूद बातचीत का रास्ता खुला है। एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत ने चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पहल का समर्थन करने वाली भाषा का समर्थन करने से इनकार कर दिया। इसी तरह भारत ने ब्रिक्स मुद्रा बास्केट शुरू करने के बीजिंग के प्रयास का विरोध किया। इन कदमों के माध्यम से भारत ने संकेत दिया है कि रणनीतिक स्वायत्तता पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।