विशेष
कांग्रेसी युवराज को कैसे पता चला कि ट्रंप और मोदी के बीच क्या बात हुई
अनाप-शनाप बयान देकर खुद को मजाक का विषय बना लेते हैं नेता प्रतिपक्ष
उनको तो भाजपा से अच्छा जवाब उनके अपने सांसद शशि थरूर ने दे दिया है
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
चार जून को भोपाल में जब कांग्रेस के युवराज और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने ‘नरेंदर सरेंडर’ वाला बयान दिया, तब से यही सवाल पूछा जा रहा है कि क्या पीएम मोदी से हुई बातचीत का ब्योरा डोनाल्ड ट्रंप ने राहुल गांधी को दिया था या फिर राहुल गांधी इन दोनों के फोन सुन रहे थे? राहुल गांधी ने दावा किया कि पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में आत्मसमर्पण कर दिया। इतना ही नहीं, ये सब कहने का अंदाज भी उनका इतना खराब था कि जैसे कोई दुश्मन देश का बंदा बोल रहा हो। राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, मैं भाजपा और आरएसएस वालों को अच्छे से जान गया हूं। इनको थोड़ा सा दबाओ, तो डर कर भाग जाते हैं। राहुल ने आगे कहा, उधर से ट्रंप ने फोन किया और इशारा किया कि मोदी जी क्या कर रहे हो? नरेंदर, सरेंडर। और ‘जी हुजूर’ कर के मोदी जी ने ट्रंप के इशारे का पालन किया। राहुल गांधी ने 1971 के युद्ध के दौरान इंदिरा गांधी के मजबूत नेतृत्व के साथ तुलना करते हुए भाजपा और आरएसएस पर दबाव में झुकने का आरोप लगाया। जाहिर है कि इस बयान पर राजनीतिक हलकों में विवाद होना ही था। भाजपा ने इसे राष्ट्रद्रोह और भारतीय सेना का अपमान करार देते हुए राहुल गांधी की कड़ी आलोचना की है। उधर यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिर राहुल गांधी को ट्रंप और पीएम मोदी के बीच फोन पर हुई बातचीत की जानकारी कैसे मिली और उन्हें कैसे पता चला कि बातचीत के दौरान ट्रंप ने पीएम मोदी से क्या कहा। इस पूरे प्रकरण में सबसे खास यह रहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने राहुल गांधी के इस बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी। थरूर ने न केवल राहुल गांधी को उनके इस बयान के लिए घेरा, बल्कि इस मुद्दे पर भाजपा नेताओं की तुलना में बहुत अच्छे तरीके से अपनी बात रखी। थरूर, जो आॅपरेशन सिंदूर के बाद भारत का पक्ष रखने के लिए अमेरिका में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे थे, ने स्पष्ट किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच जंग को समाप्त कराने में किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं की थी। अब राहुल गांधी की टिप्पणी को सियासी हलके में भारत विरोधी तो लिया ही जा रहा है, नेता प्रतिपक्ष खुद भी मजाक के विषय बन गये हैं। क्या है यह पूरा प्रकरण, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भोपाल में पार्टी की एक सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आॅपरेशन सिंदूर और भारत-पाकिस्तान सीजफायर को लेकर दावा किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक फोन आया और पीएम नरेंद्र मोदी ने तुरंत सरेंडर कर दिया। उन्होंने पीएम मोदी के नाम का उच्चारण ‘नरेंदर’ किया। ऐसे में राहुल गांधी की भाषा और उनकी राजनीतिक मर्यादा को लेकर गंभीर सवाल उठाये जा रहे हैं। राहुल गांधी की इस टिप्पणी को भाजपा ने ‘असभ्य’ और ‘पाकिस्तान समर्थक’ करार दिया है, जबकि कांग्रेस इसे अपनी वैचारिक लड़ाई का हिस्सा मान रही है। लेकिन सवाल यह है कि राहुल गांधी की ऐसी भाषा का मकसद क्या है और यह कितना उचित है?
क्या कहा राहुल गांधी ने
राहुल गांधी ने भोपाल में ‘संगठन सृजन अभियान’ के दौरान कहा, ट्रंप ने एक इशारा किया, फोन उठाया और कहा, मोदी जी, आप क्या कर रहे हैं? नरेंदर, सरेंडर। और मोदी जी ने ‘यस सर’ कहकर ट्रंप का हुक्म मान लिया। उन्होंने इसे 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से जोड़ा, जब इंदिरा गांधी ने अमेरिका के सातवें बेड़े की धमकी के बावजूद दृढ़ता दिखायी थी। उसी युद्ध की बदौलत पाकिस्तान से अलग बांग्लादेश का जन्म हुआ। राहुल ने भाजपा-आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी आजादी के समय से सरेंडर लेटर लिखने की आदत है, जबकि कांग्रेस सुपरपावर से लड़ती है और कभी नहीं झुकती। दरअसल, राहुल गांधी का यह पूरा बयान आॅपरेशन सिंदूर के बाद डोनाल्ड ट्रंप के दावे को लेकर है। ट्रंप ने भारत-पाक के बीच सीजफायर का श्रेय लिया था।
राहुल की भाषा पर सवाल
राहुल गांधी की यह टिप्पणी उनकी सामान्य आक्रामक शैली का हिस्सा है, लेकिन ‘नरेंदर, सरेंडर’ और ‘जी हुजूर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल कई मायनों में असामान्य और अशोभनीय है। देश के प्रधानमंत्री के लिए ऐसी भाषा को किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता। वह भी विपक्ष के नेता की ओर से ऐसी भाषा। इससे पहले भी देश ने प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता के बीच कई तंज देखे हैं, लेकिन किसी ने कभी मर्यादा की सीमा पार नहीं की। देश में लंबे समय तक भाजपा विपक्ष में रही है। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज जैसे नेता लंबे समय तक विपक्ष में रहे हैं। उनकी भाषा शैली और सरकार की उनकी आलोचना के तरीके का जनता मुरीद हुआ करती थी। लेकिन राहुल गांधी का यह बयान बताता है कि उनके मन में प्रधानमंत्री पद को लेकर कितनी गरिमा है। भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने इसे असभ्य और पाकिस्तान की आइएसआइ का प्रतिनिधित्व करने वाला बयान करार दिया।
राहुल के सवालों से किसको फायदा
दरअसल भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर कह दिया है कि पाकिस्तान के साथ सीजफायर में किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी। लेकिन राहुल गांधी बार-बार सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। वह सार्वजनिक तौर पर आॅपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना को हुए नुकसान की रिपोर्ट मांग रहे हैं। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में पूछा था कि पाकिस्तान ने भारत के कितने फाइटर जेट मार गिराये। इसी तरह उन्होंने विदेश मंत्री एस जयशंकर पर भी आरोप लगाया था कि उन्होंने आॅपरेशन सिंदूर शुरू होने से पहले ही इसकी जानकारी पाकिस्तान को दे दी। राहुल गांधी ये सभी आरोप और सवाल ऐसे वक्त में उठा रहे हैं, जब देश अब भी जंग के खतरों से बाहर नहीं आया है। सेना ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि आॅपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है।
ऐसे में हर तरफ यही सवाल उठता है कि विपक्ष के नेता की यह भूमिका क्या वाकई देश हित में है। क्या राहुल गांधी के बयानों और पीएम मोदी को लेकर की गयी अनुचित टिप्पणी से किसका फायदा होगा? राहुल गांधी और कांग्रेस को समझना चाहिए कि देश की अंदरूनी राजनीति अपनी जगह है और बाहरी खतरों से निपटने की बात अलग है। अगर देश सुरक्षित रहेगा, तभी कांग्रेस या भाजपा या कोई दल सत्ता में आयेगा।
पाकिस्तान परस्त है कांग्रेस का स्टैंड
आॅपरेशन सिंदूर को लेकर राहुल गांधी और उनकी पार्टी के नेताओं के बयानों को पाकिस्तान खूब भुना रहा है। विपक्ष के नेताओं के बयान दिखाकर पाकिस्तान ये नैरेटिव बनाने की कोशिश कर रहा है कि आॅपरेशन सिंदूर की कामयाबी के दावों पर भारत के विरोधी दल ही सवाल उठा रहे हैं। राहुल गांधी संवैधानिक पद पर हैं और उन्हें अपने शब्दों के चयन में सावधानी बरतनी चाहिए। जहां तक संसद में सवाल पूछने की बात है, सवाल पूछने में कोई बुराई नहीं है। संसद के विशेष सत्र की मांग करने में कोई बुराई नहीं है। विरोधी दलों के नेता संसद का विशेष सत्र क्यों बुलाना चाहते हैं? क्या वे संसद में हमारी सेना की शौर्य की गाथा सुनेंगे या प्रधानमंत्री मोदी से सवाल पूछकर हीरो बनने की कोशिश करेंगे? वे संसद में कहेंगे कि मोदी ने ट्रंप के सामने सरेंडर कर दिया, मोदी की डिप्लोमेसी फेल हो गयी, भारत पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ गया। वे सेना की तारीफ करेंगे और सेना को खुली छूट देने वालों को कायर कहेंगे। वे सेना का गुणगान करेंगे, लेकिन सेना के हाथ मजबूत करने वाले नेता का अपमान करेंगे।
सवाल ये है कि क्या ये सब करने से भारत का फायदा होगा? क्या ये सब कहने से हमारी फौज का मनोबल बढ़ेगा? जहां तक ट्रंप के सामने मोदी के सरेंडर का सवाल है, तो उसका जवाब चीफ आॅफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, हमारी सेना, हमारे विदेश मंत्री और हमारे प्रधानमंत्री दे चुके हैं। वो ये कि आॅपरेशन सिंदूर रोकने का फैसला पाकिस्तानी सेना के डीजीएमओ की गुजारिश पर किया गया।
राहुल को सबसे अच्छा जवाब शशि थरूर ने दिया
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अपने नेता राहुल गांधी को सबसे अच्छा जवाब दिया है। उन्होंने कांग्रेस के युवराज को ‘मीडिएशन’ (मध्यस्थता) और ‘फैसिलिटेशन’ (सुविधा) के बीच के फर्क को समझाया। शशि थरूर, जो वाशिंगटन डीसी में भारत का पक्ष रखने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे थे, ने राहुल गांधी के बयान पर पूछे गये सवाल के जवाब में कहा, भारत को किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की जरूरत नहीं थी। हमने कभी किसी से कुछ मांगा नहीं। उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के दावों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत को रुकने के लिए किसी की सलाह की जरूरत नहीं थी और जब पाकिस्तान ने युद्धविराम की बात शुरू की, तब भारत ने भी जवाब दिया। थरूर ने यह भी जोड़ा कि भारत भविष्य में भी, अगर पाकिस्तान से आतंकी हमले होते हैं, तो बल प्रयोग करने के लिए तैयार है। हमें पाकिस्तानियों के साथ उनकी आतंकवाद की भाषा में बात करने में कोई दिक्कत नहीं है। हम ताकत की भाषा का इस्तेमाल करेंगे और इसके लिए किसी तीसरे पक्ष की जरूरत नहीं है। एक महिला पत्रकार ने शशि थरूर से पूछा कि भारत में आपकी पार्टी लगातार प्रश्न पूछ रही है। कल ही आपकी पार्टी के नेता राहुल गांधी ने कहा कि पीएम मोदी ने ट्रंप के सामने सरेंडर कर दिया? इस सवाल के जवाब में शशि थरूर ने कहा कि हमारे मन में अमेरिका के राष्ट्रपति पद के प्रति अगाध आस्था है, हम अमेरिका के राष्ट्रपति का सम्मान करते हैं, हम अपने बारे ये कह सकते हैं कि हमने विशेषकर किसी को मध्यस्थता करने के लिए कहा नहीं।
थरूर की यह प्रतिक्रिया न केवल कूटनीतिक थी, बल्कि इसमें एक सूक्ष्म तरीके से राहुल गांधी के बयान को खारिज करने की शैली थी। जहां भाजपा ने राहुल गांधी पर सीधे और तीखे हमले किये, वहीं थरूर ने अपने बयान में न तो राहुल का नाम लिया और न ही सीधे तौर पर उनकी आलोचना की। इसके बजाय, उन्होंने तथ्यों को सामने रखते हुए भारत की स्वतंत्र नीति और मजबूत रुख को रेखांकित किया।
भाजपा हुई हमलावर
राहुल गांधी के बयान ने भाजपा को हमलावर होने का मौका दिया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसे राष्ट्रद्रोह करार देते हुए कहा कि राहुल गांधी ने भारतीय सेना की वीरता और साहस का अपमान किया है। नड्डा ने दावा किया कि आॅपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने 300 किमी तक पाकिस्तान में प्रवेश किया, 11 हवाई अड्डों को नष्ट किया, नौ आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया, और 150 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया। भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें डीजीएमओ, विदेश मंत्रालय, और यहां तक कि कांग्रेस के अपने नेताओं जैसे शशि थरूर, मनीष तिवारी, और सलमान खुर्शीद पर भरोसा करना चाहिए, जिन्होंने स्पष्ट किया कि कोई मध्यस्थता नहीं हुई थी। भाजपा ने राहुल गांधी को पाकिस्तान का एजेंट तक करार दिया, जिससे यह विवाद और गहरा गया। थरूर की प्रतिक्रिया ने बिना व्यक्तिगत हमले किये राहुल के तर्क को कमजोर कर दिया। उन्होंने यह दिखाया कि भारत की नीति स्वतंत्र थी और किसी बाहरी दबाव का परिणाम नहीं थी, जिससे राहुल का सरेंडर वाला दावा कमजोर पड़ गया है।