Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Sunday, June 29
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»अनुचित है संविधान की प्रस्तावना में संशोधन के सुझाव पर हंगामा
    विशेष

    अनुचित है संविधान की प्रस्तावना में संशोधन के सुझाव पर हंगामा

    shivam kumarBy shivam kumarJune 29, 2025No Comments7 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    विशेष
    ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवादी’ तो इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस ने जोड़ा था
    इन दोनों शब्दों को हटाने का आरएसएस का सुझाव पूरी तरह गलत नहीं है
    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने इमरजेंसी के 50 वर्ष पूरे होने पर संविधान की प्रस्तावना को लेकर प्रश्न खड़े किये। उन्होंने इमरजेंसी के दौरान संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गये ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द को हटाने पर विचार करने का सुझाव दिया। होसबोले के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हंगामा मच गया है। कांग्रेस के साथ पूरा विपक्ष आरएसएस नेता के बयान को संविधान विरोधी बता रहा है, तो वहीं भाजपा की ओर से अब तक आधिकारिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गयी है। लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस का रवैया सवालों के घेरे में है। दरअसल संविधान निर्माता डॉ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का नाम और भारतीय संविधान पिछले कुछ सालों में भारतीय राजनीति के केंद्र में लगातार शीर्ष पर बना हुआ है। संविधान पर सरकार बनाम विपक्ष की लगातार जंग को हर किसी ने देखा है। लेकिन इस सियासी हंगामे के बीच इस तथ्य को भुला दिया गया कि आरएसएस नेता ने जिन दो शब्दों को हटाने का सुझाव दिया है, वे शब्द डॉ अंबेडकर द्वारा संविधान की प्रस्तावना में नहीं लिखे गये थे, बल्कि इन्हें तो कांग्रेस की तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने संविधान में 42वें संशोधन के जरिये जोड़ा था। दूसरे शब्दों में कहा जाये, तो संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द जोड़ कर डॉ अंबेडकर के संविधान से छेड़छाड़ की थी। तो अब इस गलती को सुधारने में कोई समस्या समस्या नहीं होनी चाहिए। क्या है यह पूरा मामला और क्या हो सकता है इसका सियासी असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    भारत के राजनीतिक विमर्शों में संविधान पर बहस कोई नयी बात नहीं है, लेकिन इस बार मुद्दा प्रस्तावना के वे दो शब्द हैं, जिन्हें भारत की पहचान से जोड़ा जाता है। ये शब्द हैं ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने संविधान की प्रस्तावना में इन दो शब्दों की समीक्षा करने का आह्वान किया, तो कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष आग बबूला हो गया है। भाजपा की तरफ से हालांकि कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आयी है, लेकिन सियासी तौर पर नया हंगामा तो खड़ा हो ही गया है।

    क्या कहा दत्तात्रेय होसबोले ने
    आरएसएस के सहकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने 26 जून को इमरजेंसी की 50वीं बरसी पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया था और इन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं, इस पर विचार किया जाना चाहिए। ये दो शब्द प्रस्तावना में पहले नहीं थे। बाबा साहेब ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे। आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिये गये, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गयी थी, तब ये शब्द जोड़े गये। उनका कहना था कि जिस संविधान की प्रस्तावना को बाबा साहेब अंबेडकर ने लिखा था, उसे इंदिरा सरकार ने बदल दिया। हम लोगों को मालूम है कि ये दो शब्द उस प्रस्तावना में नहीं थे। पहले तो इन दो शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ा गया। बाद में इनको निकालने का प्रयास हुआ नहीं, केवल चर्चा हुई। दोनों प्रकार के तर्क-वितर्क हुए। तो क्या वे शब्द रहने चाहिए? प्रस्तावना में ये विचार होना चाहिए।

    राहुल गांधी ने क्या कहा?
    दत्तात्रेय होसबोले का बस इतना कहना भर था कि विपक्ष ने एकजुट होकर आरएसएस और भाजपा पर हमला बोल दिया। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आरएसएस और भाजपा पर वार करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा, आरएसएस का नकाब फिर से उतर गया। संविधान इन्हें चुभता है, क्योंकि वह समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है। आरएसएस और भाजपा को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए। ये बहुजनों और गरीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा गुलाम बनाना चाहते हैं। संविधान जैसा ताकतवर हथियार उनसे छीनना इनका असली एजेंडा है। आरएसएस ये सपना देखना बंद करे। हम उन्हें कभी सफल नहीं होने देंगे। हर देशभक्त भारतीय आखिरी दम तक संविधान की रक्षा करेगा।

    संजय राउत और आदित्य ठाकरे ने क्या कहा
    शिवसेना उद्धव गुट के सांसद संजय राउत तो राहुल से एक कदम आगे निकले और कहा कि आरएसएस ने तो आपातकाल का समर्थन किया था, तो आदित्य ठाकरे ने होसबोले के बयान को महाराष्ट्र के भाषा विवाद से ध्यान भटकाने वाला बताया।

    शिवराज सिंह चौहान ने क्या कहा
    कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने होसबोले के बयान का समर्थन कर विवाद को मानो और भड़का दिया। शिवराज ने कहा, ‘सर्वधर्म समभाव’ में भारतीय संस्कृति का मूल है। धर्मनिरपेक्षता हमारी संस्कृति का मूल नहीं है और इसलिए इस पर जरूर विचार होना चाहिए कि आपातकाल में जिस ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को जोड़ा गया, उसको हटाया जाये। ‘सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया’, यह भारत का मूल भाव है और इसलिए यह समाजवाद की जरूरत नहीं है। हम तो वर्षों पहले से कह रहे हैं कि सियाराम में सबको एक जैसा माना। इसलिए ‘समाजवादी’ शब्द की भी आवश्यकता नहीं है। देश को इस पर निश्चित तौर पर विचार करना चाहिए।

    कांग्रेस का दोहरा रवैया
    कांग्रेस शायद भूल गयी है कि आपातकाल के दौरान जब सारा विपक्ष जेल में ठूंस दिया गया था, तब इंदिरा गांधी की तत्कालीन सरकार ने संविधान की प्रस्तावना में जबरन दो शब्द जोड़ दिये थे। कांग्रेस को समझना चाहिए कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जब बाबा साहेब आंबेडकर के लिखे गये संविधान की प्रस्तावना में थे ही नहीं, तो उस पर सवाल उठेंगे ही। ऐसा भी नहीं है कि आरएसएस ने ही पहली बार इन दोनों शब्दों पर सवाल उठाया हो। समाज के कई वर्गों की ओर से इन दोनों शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में शामिल करने को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी थी।
    आरएसएस पर संविधान विरोधी होने का आरोप लगा रही कांग्रेस शायद भूल रही है कि उसकी सरकारों ने ही सर्वाधिक बार संविधान में संशोधन किये और संविधान की प्रस्तावना तक को संशोधित कर डाला। इंदिरा गांधी सरकार ने 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिये प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द तब जोड़े थे, जब देश में आपातकाल लगा था और विपक्ष के सारे नेता जेल में थे। यह सही है कि संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार, संविधान में संशोधन किया जा सकता है और यह शक्ति संसद के पास है, जो प्रस्तावना तक भी विस्तारित है। मगर उस समय संसद ने लोकतंत्र की भावना के अनुरूप काम नहीं किया और विपक्ष की गैर-मौजूदगी में संशोधन के जरिये प्रस्तावना में भारत के वर्णन को ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य’ से बदलकर ‘संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ कर दिया गया। उस समय राजनीतिक कारणों से संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को डाला गया। कांग्रेस को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि जब प्रस्तावना को 26 नवंबर 1949 में संविधान सभा ने स्वीकार किया था, तब 1976 में उसे बदल क्यों दिया गया? कांग्रेस को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि 1976 में किये गये संशोधन के बाद भी संविधान की प्रस्तावना में क्यों लिखा है कि उसे 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया गया?

    आरएसएस पर सवाल उठा रही कांग्रेस को यह भी पता होना चाहिए कि साल 2023 में नये संसद भवन में कामकाज के पहले दिन सांसदों को दी गयी संविधान की प्रति में प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द नहीं थे। उस समय केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि यह मुद्रित प्रति ही मूल प्रस्तावना थी। कांग्रेस को समझना होगा कि संविधान में सामान्य संशोधनों और प्रस्तावना में किये गये संशोधन में बड़ा फर्क है। कांग्रेस ने आपातकाल के दौरान अलोकतांत्रिक रूप से जो कार्य किया था, अब उसे ठीक करने का आह्वान किया जा रहा है तो इसमें गलत क्या है? संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द रहें या नहीं रहें, यदि इस पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद फैसला करने की मांग की जा रही है, तो इसमें गलत क्या है? यह वाकई हास्यास्पद है कि कांग्रेस आरएसएस के आह्वान को बाबा साहेब के संविधान को नष्ट करने की साजिश बता रही है, जबकि इसी पार्टी की सरकार ने बाबा साहेब के संविधान की प्रस्तावना से छेड़छाड़ की थी। बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि डॉ बीआर अंबेडकर के नेतृत्व में संविधान सभा ने विश्व का उत्तम संविधान भारत को दिया, जिससे हमारे लोकतंत्र की नींव मजबूत हुई।

     

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleबोकारो इंडस्ट्रियल एरिया में बड़ा हादसा, ब्लास्ट फर्नेस में विस्फोट
    Next Article उपायुक्त ने रांची शहर के वर्षा प्रभावित क्षेत्रों का किया निरीक्षण
    shivam kumar

      Related Posts

      बिहार में इंडिया ब्लॉक के सामने दावों का बड़ा अवरोध

      June 28, 2025

      चार राज्यों की पांच विधानसभा सीटों के उपचुनाव का बड़ा संदेश

      June 27, 2025

      इमरजेंसी के 50 साल: सत्ता के मद में कुचल दिया गया था लोकतंत्र

      June 26, 2025
      Add A Comment
      Leave A Reply Cancel Reply

      Recent Posts
      • अंपायर के फैसले पर आपत्ति जताई तो आईसीसी ने वेस्टइंडीज के कोच डेरेन सैमी पर लगाया जुर्माना
      • स्मृति मंधाना के शतक से भारत ने इंग्लैंड को पहले टी20 में 97 रन से हराया
      • ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री मोदी ने आपातकाल को बताया लोकतंत्र की हत्या, संविधान रक्षकों को किया नमन
      • हिमाचल में मानसून का कहर, 8 दिनों में 34 लोगों की मौत, 74 जख्मी
      • उत्तराखंडः यमुनोत्री हाईवे पर सिलाई बैंड के पास फटा बादल, 8 से 9 मजदूर लापता
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version