रांची : टेंडर में निजी लाभ के लिए यहां के अधिकारी नये-नये कीर्तिमान गढ़ रहे हैं। ऊपर से संरक्षण हासिल होने की वजह से ऐसे अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश तक नहीं होते। नया कारनामा जैप आइटी के एक टेंडर का है। इसमें जिम्मेदार अधिकारी ने पूरे राज्य में कनेक्टिविटी के नाम पर भारत संचार निगम लिमिटेड को ही नकारा साबित कर दिया है।
दरअसल, केंद्र की एक महत्वाकांक्षी योजना का विस्तार झारखंड में भी होना है। इसके तहत राज्य के सभी स्कूलों में स्मार्ट क्लास संचालित करना है। कुल परियोजना की लागत करीब चार हजार करोड़ की है। पहले चरण में हर जिला में चंद स्कूलों को ही जोड़ा जाना है। इसी काम की निविदा निकाली गयी थी। निविदा में तीन कंपनियों ने भाग लिया था।
बाद के घटनाक्रम यह साबित कर गये कि जैप आइटी के एक जिम्मेदार अधिकारी ने निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए अपने मनमाफिक फैसले लिये। इस निविदा में भाग लेने वाली सबसे बड़ी संचार कंपनी बीएसएलएन ही थी। शेष दोनों कंपनियों को संचार तकनीक की कनेक्टिविटी से कोई प्रत्यक्ष लेना देना नहीं था। लिहाजा यह तर्क गढ़ा गया कि बीएसएलएन एक घाटा उठाने वाली कंपनी है। इस कंपनी को कनेक्टिविटी के मामले में भी गलत मानते हुए इसे तकनीकी तौर पर अयोग्य घोषित कर दिया गया है। इसका सीधा मकसद टेंडर में बची दो निजी कंपनियों में से एक को फायदा पहुंचाना है।
जानकार बताते हैं कि नेटवर्क कनेक्टिविटी के मामले में झारखंड में बीएसएनएल अब भी सबसे बड़ी कंपनी है। मोबाइल नेटवर्क के मामलों में शहरी क्षेत्र में एयरटेल की सेवा बेहतर होने के साथ-साथ कई मामलों में महंगी भी है। लेकिन जानकार यह स्पष्ट बता गये कि इस टेंडर में भाग लेने वाली दो अन्य पेरेंट कंपनियों में से कोई भी नेटवर्क कनेक्टिविटी के कारोबार से ही जुड़ी हुई नहीं है।

मामले की छानबीन में यह पता चला कि दरअसल भारतीय डाक सेवा के इस अधिकारी के झारखंड में पदस्थापित होने की समय सीमा पहले ही समाप्त हो चुकी है। जुगाड़ की बदौलत वह जैप आइटी में टिके हुए हैं और यह नियमों के खिलाफ है। इसलिए यहां से रवाना होने के पहले वह मिले अवसरों का पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। यह वही अधिकारी है, जिसने कुछ महीनों पूर्व एक टेंडर में अन्य कंपनियों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उन निविदादाताओं के पास झारखंड में सरकार के साथ काम करने का कोई अनुभव नहीं है। अब चार हजार करोड़ की स्मार्ट क्लास परियोजना के प्रारंभिक चरण में उन्हें बीएसएनएल ही अयोग्य नजर आने लगा है।

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