उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों (Shikshmitra) के समायोजन पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि समायोजित किए गए 1.72 लाख शिक्षामित्र नहीं हटाए जाएंगे। शिक्षामित्रों को पास करनी होगा शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करनी होगी। उन्हें दो भतिर्यों के अंदर परीक्षा पास करनी होगी, इसमें उन्हें अनुभव का भी वेटेज मिलेगा। इसके साथ ही टीइटी ((UPTET 72825) प्रशिक्षु शिक्षकों की भी नौकरी से खतरा टल गया है। कोर्ट से उन्हें राहत मिली है। उनका अकादमिक रिकॉर्ड देखा जाएगा।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में 1.72 लाख शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित करना है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ शिक्षामित्र सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो भी पक्षकार लिखित रूप से अपना पक्ष रखना चाहता है वह एक हफ्ते के भीतर रख सकते हैं।
शिक्षामित्रों की ओर से सलमान खुर्शीद, अमित सिब्बल, नितेश गुप्ता, जयंत भूषण, आरएस सूरी सहित कई वरिष्ठ वकीलों ने अपनी ओर से दलीलें पेश की थी। शिक्षामित्रों की ओर से पेश अधिकतर वकीलों का कहना था कि शिक्षामित्र वर्षों से काम कर रहे हैं, लेकिन अब तक उनका भविष्य अधर में है। ऐसे में उन्हें सहायक शिक्षक के तौर पर जारी रखा जाए। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि वह संविधान के अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर शिक्षामित्रों को राहत प्रदान करें।
शिक्षामित्र स्नातक बीटीसी (BTC) और टीईटी (TET) पास हैं। कई ऐसे हैं जो करीब 10 सालों से काम कर रहे हैं। वहीं शिक्षामित्रों की ओर से पेश वकील ने कहा कि यह कहना गलत है कि शिक्षामित्रों को नियमित किया गया है। उन्होंने कहा कि सहायक शिक्षकों के रूप में उनकी नियुक्ति हुई है। वकीलों का कहना था कि राज्य में शिक्षकों की कमी को ध्यान में रखते हुए स्कीम के तहत शिक्षामित्रों की नियुक्ति हुई थी। लेकिन ये नियुक्ति गलत ढंग से हुई है।
इलाहाबाद कोर्ट ने कहा था ‘नियुक्तियां असंवैधानिक’
इलाहाबाद कोर्ट ने कहा था कि शिक्षामित्रों की नियुक्तियां संवैधानिक के खिलाफ हैं क्योंकि आपने बाजार में मौजूद प्रतिभा को मौका नहीं दिया और उन्हें अनुबंध पर भर्ती करने के बाद उनसे कहा कि आप अनिवार्य शिक्षा हासिल कर लो। पीठ ने कहा कि यह बैकडोर एंट्री है जिसे उमादेवी केस (2006) में संविधान पीठ अवैध ठहरा चुकी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2015 शिक्षामित्रों की नियुक्तियों को अवैध ठहरा दिया था जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर में इस आदेश को स्टे कर दिया था।
अच्छी मंशा आंखों का धोखा है
कोर्ट ने कहा था कि हम मंशा पर सवाल नहीं उठा रहे हैं हम यह पूछ रहे हैं कि आपने शिक्षामित्रों को योग्यता शिक्षा हासिल (बीएड,बीटीसी, दूरस्थ बीटीसी और टीईटी) करने के लिए किस नियम के तहत अनुमति दी। क्या आपने इसके लिए कोई विज्ञापन निकाला था क्या कोई चयन प्रक्रिया तय की थी। आपकी कल्याणकारी मंशा कुछ नहीं, आंखों का धोखा मात्र है, आपने नियमों के विरुद्ध भर्ती की है। जस्टिस ललित ने पूछा आप इस नतीजे पर किस आधार पर पहुंचे कि प्रदेश में पौने दो लाख शिक्षामित्रों की जरूरत है और आपने मार्केट में मौजूद प्रतिभा को महरूम कैसे किया। क्या इसे निष्पक्ष प्रतियोगिता कहा जा सकता है। आप कह रहे हैं इसे किसी ने चुनौती नहीं दी। जब तक ये अनुबंध था किसी को समस्या नहीं थी लेकिन जब आप नियमित करने लगे तक समस्या हुई। बिना विज्ञापन आप नियमित कैसे कर सकते हैं।
कोर्ट मामले को आज की समाप्त करना चाहता था लेकिन कुछ शिक्षामित्रों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने वह कुछ बहस करेंगे। उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले को बचकाना बताया और कहा कि उन्होंने यह नहीं देखा कि शिक्षामित्र रखने को उद्देश्य दूरदराज के क्षेत्रों में शिक्षा देना था। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने फैसला देते समय एक भी शिक्षामित्र को नोटिस नहीं दिया था। कोर्ट का समय पूरा होने के कारण बहस पूरी नहीं हो सकी इसलिए कोर्ट ने मामला कल तक के लिए स्थगित कर दिया।
दूरदराज शिक्षा देने के लिए की थी भर्ती
यूपी सरकार ने कहा कि 1999 में शिक्षामित्रों की भर्ती प्रदेश के दूरदराज के क्षेत्रों में बालकों को बेसिक शिक्षा देने के लिए की गई थी। यह एक कल्याणकारी कदम था जिसके पीछे कोई गलत मंशा नहीं थी। उन्होंने कहा कि 22 साल से चल रही यूपी सरकार की इस नीति को चुनौती नहीं दी है। जिन्होंने चुनौती दी है उनकी संख्या लगभग 200 है और उन्हें सरकार नौकरी में लेने को तैयार है।