बेगूसराय, लॉकडाउन से उत्पन्न स्थिति के मद्देनजर के बाद काम-धंधा बंद होने से जलालत झेल रहे प्रवासियों के घर आने तथा यहां काम नहीं मिलने के बाद वापस लौट कर परदेस जाने का सिलसिला लगातार जारी है। देश के विभिन्न शहरों से रोज जहां कामगार अपने घर लौट रहे हैं, यहां काम नहीं मिलने के बाद से फिर परदेस के शहर लौटने लगे। रेल मंत्रालय द्वारा चलाई गई वैशाली सुपरफास्ट स्पेशल एक्सप्रेस प्रवासी कामगारों के घर आने और घर से फिर परदेस जाने का सबसे बड़ा साधन बन रही है। लॉकडाउन में लाखों लोगों के जहां काम बंद हो गए थे, वहीं महानगरों में हो रही जलालत देखकर कुछ छोटे व्यवसायियों ने अपनी दुकानें भी बंद कर दी- बेच दी। उनकी सोच थी कि गांव जाएंगे, गांव में ही रहेंगे, अब यहां लौट कर नहीं आएंगे।
लेकिन हालत कुछ ऐसे बन गए कि अब वे फिर लौटकर जा रहे हैं। दुकान बेच कर लाया गया पैसा घर पर खर्च हो चुका है तो फिर दिल्ली जाने के लिए यह लोग महाजन से कर्ज लेकर जा रहे हैं। ऐसी ही दास्तान है मंझौल निवासी मुकेश कुमार की। 2007 में बूढ़ी गंडक नदी में आई प्रलयंकारी बाढ़ से पूरा इलाका तबाह हो गया था। बड़ी संख्या में जान-माल की क्षति होने के साथ-साथ लोगों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई थी। इसके बाद उसने दिल्ली का रुख किया और वहां उत्तम नगर से नजफगढ़ जाने वाले रोड में तिराहे पर पान की दुकान खोली। दुकान के पास किराए का मकान लेकर रहने लगा, दुकान चल पड़ा तो आमदनी अच्छी होने लगी, प्रत्येक महीना आठ से दस हजार घर भेजा करता था। जिससे यहां बाढ़ में ध्वस्त हुआ घर भी ठीक हो गया।
दिल्ली में जहां मुकेश के समय अच्छे से गुजर रहे थे, वहीं गांव में उसके परिवार की आर्थिक स्थिति भी धीरे-धीरे मजबूत होने लगी। घर के लोगों ने होली में बुलाया, लेकिन वह नहीं आया, सोचा था कि दुर्गा पूजा में घर जाएगा। लेकिन उसके सभी अरमान धराशाई हो गए, होली के कुछ दिन बाद ही लॉकडाउन लग गया तो उसका भी दुकान बंद हो गया। दुकान बंद होने के बाद रोटी पर भी आफत हो गई, हालत जब काफी विषम हो गया, कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ने लगी तो हालत बदतर हो गया। घर के लोग भी परेशान हो गए, जिंदगी से डर लगने लगा। जिसके बाद उसने मात्र 17 हजार में अपना दुकान बेच दिया और 15 दिन में पैदल ही गांव आ गया। गांव में रोजगार खोजने का लगातार प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली।
इस बीच दुकान बेचकर लाया गया पैसा भी खर्च हो गया। जिसके बाद थक हारकर उसने दस हजार रुपया महाजन से गांव में कर्ज लिया है और चल पड़ा दिल्ली। दिल्ली में अब दुकान नहीं खोलेगा, पहले काम खोजेगा, किसी कंपनी में काम मिल गया तो ठीक, नहीं मिला तो दूसरे शहर का रुख करेगा। लुधियाना में मुकेश के पहचान के कई लोग रहते हैं, वहीं जाकर किसी कपड़ा फैक्ट्री में काम करेगा। फिर से दुकान खोलने के सवाल पर मुकेश कहता है कि एक बार घाटा लगाकर दुकान बेच दिया है, दुकान नहीं रहेगा तो कहीं घूम-घूमकर काम खोजेगा। लेकिन परदेस में दुकान नहीं खोलेगा और ना ही बिहार आकर फिर से काम खोजेगा। हिन्दुस्थान समाचार