बालेश्वर अग्रवाल जितने अच्छे पत्रकार थे, उतने ही बेहतरीन इंसान भी थे। व्यक्तित्व के जितने अच्छे पारखी थे, उतने ही बड़े कद्रदान भी थे। बालेश्वर अग्रवाल पत्रकारिता जगत का वह सुपरिचित नाम हैं, जिन्हें पत्रकारों की नई पौध विकसित करने में महारत हासिल थी। हिंदी पत्रकारिता का अगर उन्हें पुरोधा कहा जाए तो कदाचित गलत नहीं होगा। बालेश्वर अग्रवाल हिन्दुस्थान समाचार (बहुभाषी न्यूज एजेंसी) के 1956 से 1982 तक प्रधान सम्पादक व महाप्रबंधक रहे। इस दौरान उन्होंने विश्व भर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए ऐतिहासिक काम किया। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ने डी.लिट् की उपाधि से सम्मानित किया था। वसुधैव कुटुंबकम की भावना को उन्होंने अपने जीवन और व्यवहार में प्रत्यक्ष किया था। भारतीय संस्कृति, सिद्धांत और जीवनमूल्यों के प्रति निष्ठा के वे आजीवन ध्वजवाहक बने रहे।
उनका जन्म 18 जुलाई, 1921 को उड़ीसा के बालासोर में हुआ था। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा अगर उन्होंने बिहार के हजारीबाग में प्राप्त की तो वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्होंने अभियंत्रण की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1949 में इंजीनियरिंग की परीक्षा पासकर उन्होंने भी सामान्य युवक की तरह रोजी-रोटी के जुगाड़ तलाशने की कोशिश की लेकिन ईश्वर ने उनके भाग्य में कुछ और ही लिखा था। ऐसी प्रतिभाएं घर गृहस्थी के बंधन में फंसने की बजाय कुछ अलहदा करती हैं। उनके लिए समाज और देश ही प्रमुख होता है। बालेश्वर अग्रवाल भी ऐसी ही प्रतिभाओं में एक थे। उन्होंने समर्पित भाव के साथ अपना हर पल देश के नाम किया। उनकी हर सांस में देश के हित का भाव समाहित था। बालेश्वर अग्रवाल समाजसेवा के रास्ते पर जीवन के अन्तिम क्षण तक चलते रहे। इस क्रम में उन्होंने निरन्तर नई-नई मंजिलें तय कीं। हिंदुस्थान समाचार से अलग होने के पश्चात उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद का काम संभाला और साथ ही युगवार्ता प्रसंग सेवा के माध्यम से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े रहे।
हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी के यशस्वी संपादक, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के संस्थापक बालेश्वर अग्रवाल का परिचय संसार बहुत विशाल था और उन्होंने विश्व भर में फैले भारतीय समाज को जोड़ने का बहुत उल्लेखनीय कार्य किया। बालेश्वर अग्रवाल लोगों को भीतर से जोड़ते थे। मॉरिशस से लेकर नेपाल तक उन्होंने न केवल भारतीय समुदायों को जोड़ने का काम किया बल्कि इन देशों के भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ बनाने में भी भूमिका निभाई। बालेश्वर अग्रवाल स्नेह-सहयोग और परमार्थ का साक्षात व व्यावहारिक स्वरूप थे। वे सादा जीवन-उच्च विचार की परंपरा में यकीन रखने वाले थे। अपने लिए कठोर और दूसरों के लिए सरल। बाल्यकाल में संघ से जुड़े और जीवनभर संघ के प्रचारक रहे बालेश्वर अग्रवाल कहा करते थे कि जीवन मूल्य किताबों और दीवारों पर लिखने के लिए नहीं होते बल्कि व्यवहार में प्रकट होने चाहिए। बालेश्वर जी ने अपने जीवनकाल में विश्व भर में भारतीय समुदायों को जोड़ने की पहल कर जो बड़ा सपना देखा था, जो बीजारोपण किया था,उसके फलदायी होने का अब समय आ गया है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इस हिन्दुस्थान समाचार को भारत की सबसे बड़ी और विश्वस्त एजेंसी के रूप में स्थापित कराने में उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। राजनीतिक पूर्वाग्रहों के चलते जब इंदिरा गांधी ने हिन्दुस्थान समाचार को कुचल डालने के षड्यंत्र रचा तो उनका मन खिन्न हो गया। इसके बाद जो दूसरा कार्य उन्होने शुरू किया, वह भी अन्तरराष्ट्रीय स्तर आज भी याद किया जा रहा है। उन्होंने अनेक देशों के राजदूतों से लेकर राष्ट्राध्यक्षों तक से जो सहज और आत्मीय संबंध बनाए, वह किसी सामान्य व्यक्ति का काम नहीं कहा जा सकता। मॉरिशस को तो उनका दूसरा घर ही कहा जाता था। भारत-नेपाल के बीच जो कुछ आजकल हो रहा है, उसमें बालेश्वर की बहुत याद आती है। काश, वे जीवित होते तो ऐसा न होता। उन्होंने नेपाल को गहरे से जाना-समझा था और कूटनीतिक तौर पर भी उन्होंने नेपाल के शीर्ष लोगों से बहुत सहज संबंध बनाए थे।
विदेशों से आने वाले प्रवासी भारतीयों की सुविधा के लिए नई दिल्ली में प्रवासी भवन का निर्माण कर उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया। भारत सरकार द्वारा 9 जनवरी को मनाये जाने वाले प्रवासी दिवस की सर्वप्रथम कल्पना भी उन्हीं के दिमाग की उपज थी। अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग न्यास की स्थापना कर प्रतिवर्ष वे एक ऐसे भारतवंशी को सम्मानित करते थे जो विदेश की सरजमीं पर रहते हुए भी भारतीय मूल के लोगों और भारत के मध्य सेतु की भूमिका निभाता हो। उनके लिए कल्याणकारी कार्य करता हो। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उनका योगदान अतुलनीय रहा है।
पत्रकारिता और अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रवासी भारतीयों के सन्दर्भ में किए गए उनके प्रयास सर्वविदित हैं। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उस समय एक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ जब 1954 में नागरी लिपि में दूरमुद्रक ( टेलीप्रिन्टर) द्वारा पहली बार पटना और दिल्ली को इसके द्वारा सम्बद्ध किया गया। इस सेवा का शुभारम्भ स्व.राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने किया था। यह पहला अवसर था जब हिन्दी के समाचार दूरमुद्रक के माध्यम से हिन्दी में भेजे जाने लगे। इससे पूर्व देश में पी.टी.आई. और यू.एन.आई के माध्यम से देश भर में अंग्रेजी भाषा में समाचार प्रेषित किए जाते थे और हिन्दी के समाचार पत्र उन समाचारों का अनुवाद करके छापने को विवश थे। देवनागरी के जिस दूरमुद्रक ने समाचार जगत में क्रान्ति की उसको वास्तविकता और व्यवहारिता का अमली-जामा पहनाने का श्रेय बालेश्वर अग्रवाल को जाता है। पटना को दिल्ली से जोड़ने के बाद इस क्रान्ति ने रुकने का नाम नहीं लिया। बालेश्वर अग्रवाल दरअसल उस युग के पत्रकार थे जब समाचार को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना एक बहुत बड़ी समस्या होती थी और वह भी देवनागरी लिपि में। बालेश्वर अग्रवाल के इस एक सफल प्रयास से हिन्दी समाचार पत्रों के सम्पादकीय विभाग में काम करने वालों को अनुवादक की बजाय सम्पादक बना दिया। अब तक जो लोग केवल अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद कर समाचार बनाते थे अब अपना समय समाचारों के सम्पादन में लगाने लगे। देखा जाए तो इस बहाने बालेश्वर अग्रवाल ने हिन्दी के सम्पादकों की कई पीढ़ियां तैयार करने में अपना अमूल्य योगदान दिया।
बालेश्वर अग्रवाल उस समय हिन्दुस्थान समाचार की पटना शाखा के प्रभारी थे और अंग्रेजी समाचारों के हिंदी रूपांतरण को असहनीय मानते थे। वे हिन्दुस्थान समाचार के साथ उसके स्थापना काल से ही जुड़ गए थे। बाद में तो हिन्दुस्थान समाचार और बालेश्वर अग्रवाल के मध्य अद्वैत की ही स्थिति बन गई थी। हालात यह थे कि बालेश्वर अग्रवाल के बिना हिन्दुस्थान समाचार की कल्पना तक करना असंभव हो गया था। इसी प्रकार हिंदुस्थान समाचार के बिना बालेश्वर अग्रवाल सम्पूर्ण नजर नहीं आते थे। दोनों एक दूसरे के पूरक बन गए थे। 1949 से लेकर 1982 तक बालेश्वर अग्रवाल के लिए हिन्दुस्थान समाचार ही सर्वस्व था। इसमें काम करने वाले कर्मचारी ही उनके परिजन थे। हिन्दुस्थान समाचार और उससे जुड़े लोगों की उन्नति ही उनके जीवन का एक मात्र ध्येय था।
हिन्दुस्थान समाचार ने जिन पत्रकारों को पत्रकारिता की प्रारम्भिक शिक्षा दी आज वे पत्रकार पूरी तरह से देश के पत्रकार जगत पर छाए हुए हैं। इस प्रकार यदि उन्हें हिन्दी पत्रकारों की वर्तमान पीढ़ी का भीष्म पितामह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। बालेश्वर अग्रवाल ने हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में समाचार एजेन्सी की भूमिका को भी नये आयाम दिए। हिन्दुस्थान समाचार से पूर्व देश के सभी समाचार पत्र अंग्रेजी की समाचार एजेंसियों पर आश्रित थे। ये एजेंसियां भले ही भारत में काम करती थीं परन्तु उन्हें भी अधिकांश समाचारों के लिए विदशी समाचार एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता था। बालेश्वर अग्रवाल की नियमबद्ध परम अनुशासित कार्यशैली अनुकरणीय थी। उनका मन अति निर्मल था यद्यपि कि कई बार उनके व्यवहार में असहनीय रूखापन भी नजर आता था। लेकिन उन्होंने कभी किसी के प्रति अपने मन में दुराव का समावेश नहीं होने दिया। वे अपने हर कार्य नियत समय पर करने के लिए जाने जाते थे। जरा सा विलम्ब भी उन्हें विचलित कर देता था। इस आपाधापी के भौतिक परिवेश में जब हर व्यक्ति अपने सम्बन्धों को भुनाने में लगा है, बालेश्वर जी निस्पृह रहकर अपना कार्य करते थे। देश के शीर्षस्थ नेताओं से उनके अति आत्मीय और घनिष्ठ सम्बंध थे परन्तु इसका कोई लाभ उन्होंने लिया हो, इसके एक भी उदाहरण नहीं हैं।
प्रवासी भारतीयों के बारे में डॉ. एलएम सिंघवी की अध्यक्षता में सितंबर 2000 में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गई, उसमें आरएल भाटिया, जेआर हीरेमथ, बालेश्वर अग्रवाल और विदेश मंत्रालय के सचिव जेसी शर्मा बतौर सचिव शामिल थे। इस समिति ने 8 आठ सितंबर 2002 को पूर्ण रिपोर्ट सौंपने से पहले तीन अंतरिम रिपोर्टें सौंपी थीं। इनमें भारतीय मूल के लोगों के लिए कार्ड की योजना के साथ ही प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की बात कही गई थी। तीसरी रिपोर्ट में कहा गया कि प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार दिए जाने चाहिए। समिति ने अंतिम रूप से जो रिपोर्ट सौंपी उसमें 160 विभिन्न सिफ़ारिशें की गई थीं। इनमें हवाई अड्डों की हालत सुधारने की बात भी शामिल थी। एक संस्तुति यह भी थी कि प्रवासी भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों से विवाह करने वाली महिलाओं के शोषण के बारे में एक विशेष शाखा का गठन किया जाए जिससे उसमें मुफ़्त वैधानिक सलाह भी दी जाए। दूल्हों को उस समय की वैवाहिक स्थिति के बारे में शपथ पत्र देना होगा। विदेश में श्रमिक के तौर पर काम कर रहे भारतीयों के हितों के संरक्षण पर भी जोर देने और इसके लिए मुख्य तौर पर बीमा योजना की बात भी इस रिपोर्ट में शामिल थी। जाहिर है कि बालेश्वर अग्रवाल कितनी सूक्ष्म दृष्टि से चीजों को देखते-समझते और समस्याओं का निदान करते थे। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद को भारतीय मूल के लोगों के साथ रिश्तों के सूत्र को और मजबूत करना चाहिए। छुट्टी के दिनों में छात्रों का आदान-प्रदान कार्यक्रम भी होना चाहिए। दूसरे देशों में आईआईटी, आईआईएम और अन्य मेडिकल कॉलेजों की शाखाएं भी खोले जाने का प्रस्ताव रखा गया था। उनके समाज सेवा के भाव को देखते हुए ही पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने घोषणा की थी कि मॉरीशस के ‘विश्व हिन्दी सचिवालय’ भवन में स्थित पुस्तकालय भवन का नाम ‘बालेश्वर अग्रवाल पुस्तकालय’ होगा और नियत समय पर पुस्तकालय का नामकरण इस राष्ट्रसेवी महामनीषी के नाम पर हुआ भी।
यह कहना गलत नहीं होगा कि विश्व भर में उनके प्रति आदर का भाव रखने वाले लोग बड़ी संख्या में मौजूद हैं। उन्हीं में से एक मॉरीशस निवासी प्रेमचन्द बुझावन ने बालेश्वर अग्रवाल पुस्तकालय का सुझाव दिया था। इससे पता चलता है कि लोक में उनके प्रति कितनी श्रद्धा थी। कितना विश्वास था। वर्ष 2013 में भले ही वे हम सबको दैहिक रूप से छोड़ गए लेकिन उनकी आत्मा, उनके विचार युगों-युगों तक इस देश-दुनिया का मार्गदर्शन करते रहेंगे। उनकी जन्मशताब्दी के अवसर पर उनकी महान आत्मा का पुण्य स्मरण नयी दिशा देता है और देश और समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा भी देता है। लगता है, आज भी वे हमारे बीच हैं और हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। उस अमित तेजस्वी यशकाय और सर्वहितकारिणी दिव्यात्मा को शत-शत नमन।