दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया हिंसा मामले में जांच की मांग करने वाली याचिका पर पर सुनवाई आज फिर टाल दिया है। चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने वीडियो कांफ्रेंसिंग से हुई सुनवाई के बाद सभी पक्षों को उन मसलों की सूची देने का निर्देश दिया जिन पर कोर्ट सुनवाई करेगा। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर से बताए गए आपत्तिजनक जवाब को हटाने का निर्देश दिया। इस मामले पर अगली सुनवाई 13 जुलाई को होगी।
आज सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने एक याचिकाकर्ता के जवाबी हलफनामा कुछ अंशों पर गंभीर आपत्ति जताई। जवाबी हलफनामे में कहा गया था कि गृहमंत्री के आदेश से छात्रों की पिटाई की गई। मेहता ने कहा कि हलफनामे में कहा गया है कि आम लोगों की राय है कि पुलिस को ऊपर से आदेश दिया गया था। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के इस हलफनामे का स्रोत क्या है। याचिकाकर्ता ने खुद ही पुलिस को निजी संपत्ति को नष्ट करने का जिम्मेदार ठहराया है। ये गैरजिम्मेदार दलील है और उनकी असली मंशा सामने आ गई है।
मेहता ने कहा कि ऐसे आरोप सार्वजनिक भाषण देने में ठीक लगता है लेकिन किसी संवैधानिक कोर्ट में नहीं। आज कल गैरजिम्मेदाराना दलीलों का चलन हो गया है। इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। ऐसी दलीलों के लिए धारा 226 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। तब कोर्ट ने कहा कि गैरजिम्मेदाराना दलीलों की इस समय कोई प्रासंगिकता नहीं है। मेहता ने कहा कि कोर्ट याचिकाकर्ताओं से ये पूछे कि उनके इन आरोपों का आधार क्या है। आप प्रधानमंत्री पर भी आरोप लगा सकते हैं लेकिन उसके लिए साक्ष्य होना चाहिए। तब कोर्ट ने पूछा कि आप ऐसे आरोप कैसे लगा रहे हैं। मेहता ने कहा कि इस मामले को अंतिम सुनवाई के लिए लिस्ट किया जाना चाहिए। तब कोर्ट ने कहा कि इस पर जल्द से जल्द फैसला होगा।
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि वो जिस याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रही हैं उसके जवाबी हलफनामे में गृहमंत्री के खिलाफ कोई आरोप नहीं है। हमारी याचिका को दायर किए हुए काफी समय बीत चुके हैं इसलिए इसका फैसला जल्द होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को भी ये विस्तृत रुप से बताना चाहिए कि किन वजहों से पुलिस ने वैसा कदम उठाया। अगर सरकार कहती है कि वो गैरकानूनी भीड़ थी तो उसका साक्ष्य देना चाहिए।
पिछली 29 जून को भी कोर्ट ने सुनवाई टाल दिया था। पिछली 5 जून को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता और वकील नबीला हसन ने कोर्ट से दिल्ली पुलिस के हलफनामे का जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की थी जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई टाल दिया था। अपने हलफनामे में दिल्ली पुलिस ने कहा है कि जामिया हिंसा सोची समझी योजना के तहत की गई थी।
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि जामिया हिंसा की इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से साफ पता चलता है कि छात्र आंदोलन की आड़ में स्थानीय लोगों की मदद से हिंसा को अंजाम दिया गया। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि 13 और 15 दिसंबर 2019 को हुई हिंसा के मामले में तीन एफआईआर दर्ज किए गए हैं। इस हिंसा में पत्थरों, लाठियों , पेट्रोल बम, ट्यूब लाइट्स इत्यादि का इस्तेमाल किया गया। इस घटना में कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे। दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली पुलिस पर क्रूरता का इंतजाम गलत है।
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि विरोध करना सबका अधिकार है लेकिन विरोध करने की आड़ में कानून का उल्लंघन करना और हिंसा और दंगे में शामिल होना सही नहीं है। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ये आरोप सही नहीं है कि युनिवर्सिटी प्रशासन की बिना अनुमति के पुलिस परिसर में घुसी और छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की। दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान और आरोपियों की पूरी लिस्ट हाईकोर्ट को सौंपी है।
पिछले 22 मई को हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था। याचिका वकील नबीला हसन ने दायर किया है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील स्नेहा मुखर्जी ने कहा था कि जामिया युनिवर्सिटी के कई छात्रों को पुलिस ने बुलाया और जांच के नाम पर घंटों बैठाए रखा। यहां तक कि कोरोना के संकट के दौरान भी छात्रों को पुलिस परेशान कर रही है। याचिका में कहा गया था कि जामिया युनिवर्सिटी की हालत आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी। इसलिए इस मामले पर जल्द सुनवाई की जाए।
हाई कोर्ट ने पिछले 4 फरवरी को जामिया हिंसा मामले में जांच की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई टाल दिया था। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा था कि जांच अहम मोड़ पर है और उसे पूरा होने दिया जाए, तभी हम उचित जवाब दे पाएंगे। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा था कि जामिया के 93 छात्र घायल हुए। छात्रों ने सीसीटीवी फुटेज के साथ शिकायत भी की। उन्होंने ललिता कुमारी के केस का हवाला देते हुए कहा था कि इन शिकायतों के आधार पर एफआईआर दर्ज किया जाए। तब तुषार मेहता ने कहा था कि कई एफआईआर दायर करने से बेहतर है कि एक समग्र एफआईआर दर्ज किया जाए।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि हाई कोर्ट के पहले के आदेश का पालन नहीं किया गया क्योंकि कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है। अगर उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहिए तो उसके लिए भी एक हलफनामा दाखिल होना चाहिए। हाईकोर्ट ने 19 दिसंबर 2019 को छात्रो के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई पर रोक की मांग ठुकरा दिया था। कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था। 19 दिसंबर 2019 को जब कोर्ट ने छात्रो के खिलाफ़ गिरफ्तारी और पुलिस कार्रवाई पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था तो चीफ जस्टिस डीएन पटेल की कोर्ट में ही कुछ वकीलों ने शर्म, शर्म के नारे लगाए थे। चीफ जस्टिस बिना कोई रिएक्शन दिये उठकर अपने चैम्बर में चले गए थे। उसके बाद 20 दिसंबर 2019 को हाईकोर्ट ने कुछ वकीलों की मांग पर इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी का गठन कर कार्रवाई करने की बात कही थी।