भारत की एक चौथाई आबादी प्रदूषण की मार झेलने को मजबूर है. इसके चलते जिंदगी जीने की संभावना करीब 5.2 साल कम हो गई है. अगर 2018 की स्थिति बरकरार रही तो दिल्ली, कोलकाता समेत उत्तर भारत की 248 मिलियन आबादी की संभावना 8 साल कम हो जाएगी. इस बारे में शिकागो यूनिवर्सिटी की तरफ से जारी किए एक्यूएलआई रिपोर्ट में खुलासा किया गया है.

 

वायु प्रदूषण के मामले में भारत दूसरे नंबर पर

शोध में 2018 तक के डाटा को अध्ययन में शामिल किया गया था. जिसके बाद बताया गया कि दुनिया में वायु प्रदूषण के मामले में बांग्लादेश की स्थिति सबसे बदतर है. बांग्लादेश के बाद वायु प्रदूषण के खराब स्तर में भारत का दूसरा नंबर है. रिपोर्ट में भारत को सलाह दी गई है कि वायु गुणवत्ता में सुधार कर लोगों की कुल आबादी की जीने की संभावना को 5.2 साल बढ़ाया जा सकता है. क्योंकि वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI) के मामले में भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों पर खरा नहीं उतरता है. हालांकि ऐसा नहीं है कि पूरे भारत में वायु प्रदूषण का स्तर एक समान है. बल्कि गंगा के मैदानी हिस्से वायु प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित पाए गए हैं.

 

जिंदगी जीने की संभावना 5.2 साल कम

भारत के लखनऊ शहर की स्थिति ज्यादा वायु प्रदूषण के लिहाज से सबसे खराब है. यहां की वायु गुणवत्ता WHO के मानकों से 11 गुणा ज्यादा खराब है. रिपोर्ट में आगे बताया है कि अगर WHO की गाइडलाइन के तहत प्रदूषण का स्तर बहाल रखा जाए तो दिल्लीवासियों की जिंदगी में 9.4 साल की बढ़ोतरी हो सकती है. रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि कोविड-19 से पहले मानव जीवन के लिए वायु प्रदूषण सबसे बड़ा खतरा था और महामारी खत्म हो जाने के बाद भी रहेगा. इसका एक ही उपाय है कि मजबूत और निरंतर चलाए जानेवाले कार्यक्रम शुरू किए जाएं.

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