झारखंड में कोरोना संकट ने खौफनाक रूप अख्तियार कर लिया है। दो हजार से अधिक सक्रिय संक्रमित और 38 मौतों ने पूरे प्रदेश में दहशत का जो माहौल बनाया है, उससे उबरने में राज्य को लंबा समय लगेगा। आपदा बढ़ने के साथ ही राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की चरमराती स्थिति इस चिंता को और बढ़ा रही है। संक्रमितों के लिए बनाये गये अस्पताल तेजी से भर रहे हैं और राजधानी में अब कोई भी बेड खाली नहीं है। मरीजों को लौटाया जा रहा है। साढ़े तीन महीने पहले इस आपदा की आहट सुनने के बावजूद झारखंड के लोगों ने इस ओर गंभीरता नहीं दिखायी और इसलिए आज हम बुरी तरह घिर चुके हैं। इतने दिनों का लॉकडाउन और तमाम कठिनाइयां झेलने के बाद लोगों की जरा सी लापरवाही ने स्थिति को विस्फोटक बना दिया है। पूरी दुनिया भले ही नहीं जानती हो, लेकिन झारखंड को अपनी क्षमता के बारे में तो अच्छी तरह पता है। जिस समय सरकार और स्वास्थ्य प्रशासन की ओर से कहा जा रहा था कि हमारे पास संसाधनों की कमी है, उस समय इस पर खूब राजनीति हुई और लोगों ने भी इसे हल्के में लिया। आज जब अस्पताल भरने लगे हैं और मरीजों को घरों में ही रहने को कहा जाने लगा है, फिर से राजनीति शुरू हो गयी है। यह वक्त राजनीति का नहीं है और न ही दोषारोपण करने का। यह वक्त है मिल कर चुनौतियों का सामना करने का और कोरोना को पराजित करने की रणनीति बनाने का। झारखंड में कोरोना की विस्फोटक स्थिति और चरमराती स्वास्थ्य मशीनरी की पृष्ठभूमि में शुरू हुई राजनीति और लोगों की लापरवाही पर केंद्रित आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
झारखंड में अब वही सब हो रहा है, जिसके बारे में हम पिछले साढ़े तीन महीने से लगातार आगाह करते आ रहे हैं। कोरोना का संक्रमण लगभग बेकाबू गति से फैल रहा है। तबलीगी जमात के जरिये झारखंड में आया यह खतरनाक संक्रमण अब अपना दायरा बढ़ा चुका है और अब तक 38 लोगों की जान ले चुका है और आज भी दो हजार से अधिक एक्टिव मामले हैं। राज्य के सभी 24 जिले इससे प्रभावित हो चुके हैं और राज्य की स्वास्थ्य मशीनरी लगभग ध्वस्त होने को है। यह चेतावनी पहले से ही दी जा रही थी कि राज्य की स्वास्थ्य मशीनरी बहुत अधिक दबाव झेलने की स्थिति में नहीं है। आज जब राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स से संक्रमितों को लौटाये जाने की जानकारी मिल रही है, कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे एक चिकित्सक की अप्रैल मध्य में की गयी टिप्पणी याद आ रही है, जिसमें उन्होंने कहा था कि संकट बहुत गहरा है और पूरे राज्य को एक साथ इसका सामना करने के लिए तैयार होना होगा। उस चिकित्सक ने कहा था कि जुलाई मध्य तक कोरोना का संक्रमण विस्फोटक स्थिति में होगा। तब हमारे पास न बेड होंगे और न अस्पताल। हम चाह कर भी मरीजों का इलाज नहीं कर सकेंगे। उनकी यह भविष्यवाणी बिल्कुल सच साबित हो रही है। राज्य में संक्रमितों के इलाज के लिए बनाये गये अस्पताल तेजी से भर रहे हैं और संक्रमितों को घर में ही रहने को कहा जा रहा है।
इस खतरनाक स्थिति के लिए जिम्मेवार झारखंड के लोग ही हैं। लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग और दूसरे तय मानकों की लोगों ने शुरू से ही अनदेखी की है। बिना वजह बाहर निकलना और भीड़ लगाने से लोगों ने परहेज नहीं किया, जिसका नतीजा अब सामने आ गया है। इससे भी दुखद स्थिति यह है कि आपदा के इस दौर में भी राजनीति और आरोप-प्रत्यारोप खूब हो रहे हैं। लोग भी इस आपदा के लिए व्यवस्था को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, जबकि हकीकत यह है कि व्यवस्थागत कमजोरियां आज की नहीं हैं। झारखंड में यदि साढ़े सात हजार से कुछ अधिक बेड संक्रमितों के लिए बनाये गये हैं और दो सौ से कुछ अधिक वेंटिलेटर उपलब्ध हैं, तो इसका यह मतलब कतई नहीं है कि इन सभी को उपयोग में ले आया जाये। राजधानी रांची में जिस गति से संक्रमण फैल रहा है, उससे चिंता अधिक हो गयी है। शुरू से ही कहा जा रहा है कि संक्रमण बढ़ने पर झारखंड में कोहराम मच सकता है, लेकिन तब इसे अरण्य रोदन की संज्ञा दी गयी। सब कुछ व्यवस्था और सरकारी मशीनरी के भरोसे छोड़ दिया गया और लोग अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह बने रहे।
यही कारण है कि कोरोना के खतरनाक वायरस ने झारखंड के सामने कड़ी चुनौती पेश कर दी है। अब समय राजनीति या आरोप-प्रत्यारोप का नहीं, बल्कि मिल-बैठ कर एक ठोस रणनीति बनाने का है, ताकि इस आपदा का मुकाबला किया जा सके। इसके लिए समाज के सभी वर्गों को आगे आना होगा और जो जहां है, वहीं से इस लड़ाई के लिए मोर्चेबंदी करनी होगी।
झारखंड बचा रहेगा, तो राजनीति भी होती रहेगी और आरोप-प्रत्यारोप भी होते रहेंगे, लेकिन अभी दूसरी सभी गतिविधियों को बंद करने का समय है। स्वास्थ्य मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए निजी अस्पतालों को आगे आना होगा, तो सरकारी संस्थानों को अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं का दरवाजा आम लोगों के लिए खोलना होगा। इसके अलावा दूसरे संसाधनों की कमी को दूर करने के लिए भी सभी वर्गों को सक्रिय रूप से योगदान करना होगा। आज झारखंड के सवा तीन करोड़ लोगों के मन में केवल एक ही बात आनी चाहिए और वह यह कि हमें हर हाल में इस संक्रमण को फैलने से रोकना है।
यह यकीन के साथ कहा जा सकता है कि यदि राज्य का हर व्यक्ति यह ठान ले कि वह कोरोना की लड़ाई में अपनी भूमिका पूरी निष्ठा से निभायेगा, तो फिर झारखंड इस आपदा से भी पार पा लेगा। राजनीतिक-आर्थिक गतिविधियां रुकने से नुकसान तो होगा, लेकिन लोगों की जान बचाने के लिए इतनी कीमत तो झारखंड चुका ही सकता है।
झारखंड को कोरोना के क्रूर पंजे से बचाने के लिए अब एक ऐसे फैसले की जरूरत है, जो हर व्यक्ति, चाहे आम हो या खास, समान रूप से लागू किया जाये। जब तक ऐसा नहीं होता, झारखंड में संक्रमितों को इसी तरह अस्पतालों से लौटाया जाता रहेगा और हम चुपचाप मौत का तांडव देखने को विवश होते रहेंगे।