झारखंड में कोरोना संक्रमण ने खतरनाक रूप अख्तियार कर लिया है। राज्य में संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे निपटने के लिए कई तरह के उपाय भी किये जा रहे हैं। इन्हीं उपायों के तहत 31 जुलाई तक कुछ रियायतों के साथ लॉकडाउन लागू रखने और बाहर से आनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए 14 दिन के होम क्वारेंटाइन समेत अन्य प्रावधान राज्य में लागू किये गये हैं। इन प्रावधानों की जानकारी भी बाकायदा सार्वजनिक की गयी है। इसके बावजूद भाजपा के लोगों को इस बात पर आपत्ति है कि उनके विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी जब दिल्ली से लौटे, तो उनके हाथ पर होम क्वारेंटाइन की मुहर क्यों लगायी गयी। भाजपा प्राणपण से इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाने में जुट गयी है। कोरोना संक्रमण को रोकने के राज्य सरकार के प्रयासों और प्रशासन द्वारा लागू नियमों को राजनीतिक मुद्दा बनाया जाना कहां तक तर्कसंगत है, यह तो भाजपा ही जाने, लेकिन नियम तो सभी के लिए बराबर होना चाहिए। हालांकि सरकारी नियम में भी कुछ छूट का प्रावधान किया गया है, लेकिन इसके दायरे में आनेवाले लोगों में बाबूलाल मरांडी शामिल नहीं हैं। ऐसे में यदि उन्हें होम क्वारेंटाइन किया गया है, तो इससे उनका अपमान हुआ या सम्मान बढ़ा, यह भाजपा ही जान सकती है। बाबूलाल मरांडी को होम क्वारेंटाइन किये जाने पर भाजपा की आपत्ति का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
राजनीतिक रूप से संवेदनशील झारखंड में पिछले 24 घंटे में एक नया राजनीतिक मुद्दा उभरा है। यह मुद्दा है भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के हाथ पर होम क्वारेंटाइन की मुहर लगा कर उन्हें 14 दिनों तक घर में रहने की सलाह देने का। बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं। रविवार 19 जुलाई की देर शाम वह पांच दिनों के प्रवास के बाद दिल्ली से रांची लौटे। यहां लौटने पर राज्य में लागू नियम के अनुसार उन्हें 14 दिन के होम क्वारेंटाइन में रहने की सलाह दी गयी और हवाई अड्डे पर अन्य यात्रियों की तरह उनके हाथ पर भी होम क्वारेंटाइन की मुहर लगा दी गयी। प्रशासन के इसी कदम से भाजपा के लोगों को आपत्ति है।
सोशल मीडिया से लेकर दूसरे संचार माध्यमों पर भाजपा के सांसदों, विधायकों, प्रवक्ताओं और अन्य नेताओं-कार्यकर्ताओं ने प्रशासन के इस कृत्य को अनुचित और बाबूलाल मरांडी की प्रतिष्ठा को धूमिल करनेवाला करार दिया है।
यहां एक बड़ा सवाल है। आखिर भाजपा के लोगों को एक मुहर लगा देने और बाबूलाल मरांडी के होम क्वारेंटाइन में रहने की सलाह दिये जाने से आपत्ति क्यों है। भाजपा के लोग सवाल कर रहे हैं कि शिबू सोरेन भी 22 जुलाई को राज्यसभा सदस्यता की शपथ लेने दिल्ली जायेंगे। क्या रांची लौटने पर उन्हें भी होम क्वारेंटाइन किया जायेगा। भाजपा के लोगों को यह सवाल उठाने के लिए इंतजार करना चाहिए था, क्योंकि अभी तो शिबू सोरेन दिल्ली गये ही नहीं हैं। इसके अलावा भाजपा के लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि मुख्यमंत्री खुद होम क्वारेंटाइन में थे, लेकिन उनके हाथ पर ठप्पा क्यों नहीं लगाया गया। सत्ता पक्ष के लोगों की नजर में यह बचकाना सवाल है।
यहां सवाल यह उठता है कि आखिर एक मुहर लगाने पर इतना हंगामा क्यों मच गया है। इसे सामान्य प्रशासनिक नजरिये से क्यों नहीं देखा जा रहा है। इस सवाल का जवाब कोरोना संकट के दौरान झारखंड में विपक्ष, जो भाजपा है, की अब तक की भूमिका से साफ हो जाता है। कोरोना संकट के शुरुआती दौर में 17 अप्रैल को भाजपा के चार विधायक अपने-अपने घरों में उपवास पर बैठे थे, क्योंकि उनका आरोप था कि राज्य सरकार प्रवासी मजदूरों पर ध्यान नहीं दे रही है और कोरोना संक्रमितों के साथ भेदभाव कर रही है। इस उपवास कार्यक्रम का उद्देश्य कितना पूरा हुआ, इसके बारे में भाजपा के नेताओं को ही ज्यादा अनुमान होगा। इसके बाद कुछ दिनों के अंतराल पर भाजपा के लोगों ने एक बार फिर कोरोना संक्रमण के दौर में राज्य सरकार की विफलता का आरोप लगा कर राज्य भर में उपवास रखा। उसके बाद से लगातार भाजपा हेमंत सरकार को घेर रही है और यह माहौल पैदा करने की कोशिश कर रही है कि कोरोना के संक्रमण काल में मानो सरकार कुछ कर ही नहीं रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अभी झारखंड को जो स्थिति है और कोरोना का संक्रमण जिस तेजी से फैल रहा है, उसमें ठप्पा लगाने या होम क्वारेंटाइन करने पर सवाल खड़ा उचित प्रतीत नहीं होता। कोरोना का संक्रमण न जाति देख कर हमला करता है और न धर्म देख कर। अब तक तो सभी यह समझ गये हैं कि यह संक्रमण किसी को कभी भी हो सकता है। चाहे राजनेता हो या अभिनेता, खिलाड़ी हो या उद्योगपति, आम आदमी हो या दिहाड़ी मजदूर, कोई भी इस संक्रमण से तब तक नहीं बच सकता है, जब तक कि वह विशेषज्ञों की राय से तैयार दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करेगा। ऐसे में यदि झारखंड में बाहर से आनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए दो सप्ताह के होम क्वारेंटाइन का नियम लागू है, तो इसका पालन करने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। रही बात मुहर लगाने की, तो इसे एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया के रूप में लिया जाना चाहिए।
अगर आम आदमी से नियमों का पालन कराया जायेगा और नेताओं को इसमें छूट मिल जायेगी, तो आम लोगों में यही संदेश जायेगा कि नेता नियम कानून से बंधा नहीं होता, जो भी कायदे-कानून हैं, उनका शिकंजा जनता पर ही कसा जाता है।
झारखंड को बचाने के लिए जब तक खास लोग सामने नहीं आयेंगे, तब तक आम लोग जागरूक नहीं होंगे। इसलिए बाबूलाल मरांडी ने अपने हाथ पर होम क्वारेंटाइन का मुहर लगवा कर अपना अपमान नहीं करवाया है। प्रशासन ने भी उनके हाथ पर होम क्वारेंटाइन की मुहर लगा कर उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास नहीं किया है। इससे तो कहीं न कहीं यह सकारात्मक संदेश ही गया है कि कानून सबके लिए बराबर है और बाबूलाल मरांडी भी कानून का पालन करनेवालों में शामिल हंै। भाजपा के लोग इस कदम को इस नजरिये से भी देख सकते हैं और कोरोना के खिलाफ जंग में अपनी भूमिका को महत्वपूर्ण बना सकते हैं।