Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Thursday, June 19
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Breaking News»बदला जाएगा अंग्रेजों का 220 साल पुराना कानून, रक्षा भूमि नीति को मिली मंजूरी
    Breaking News

    बदला जाएगा अंग्रेजों का 220 साल पुराना कानून, रक्षा भूमि नीति को मिली मंजूरी

    azad sipahiBy azad sipahiJuly 20, 2021No Comments4 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    – अब बाजार की कीमत देकर पब्लिक प्रोजेक्ट के लिए भी ली जा सकेगी सेना की जमीन

    – जमीन बेचकर सेना के आधुनिकीकरण की योजना को अमलीजामा पहनाने की तैयारी

    नई दिल्ली। देशभर में खाली और बेकार पड़ी सेना की 17.95 लाख एकड़ जमीन को बेचकर सेनाओं के आधुनिकीकरण की योजना को अमलीजामा पहनाने की तैयारी है। अब तक भारत में रक्षा भूमि के बारे में कोई सख्त नीति नहीं रही है जिसकी वजह से देश भर पड़ी सैन्य जमीनों पर बड़े पैमाने पर कब्जे हो चुके हैं। सरकार ने अंग्रेजों के जमाने की 220 साल पुरानी डिफेंस लैंड पॉलिसी को बदलने के लिए इससे जुड़े नए नियमों की मंजूरी दे दी है। इसके तहत अब पब्लिक प्रोजेक्ट के लिए भी सेना की जमीन ली जा सकेगी और बदले उतनी ही कीमत का इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा या बाजार की कीमत के हिसाब से भुगतान करना पड़ेगा।

    अंग्रेजों ने उप-महाद्वीप में अपने शासन को मजबूत करने की प्रक्रिया शुरू करने के तुरंत बाद 256 साल पहले 1765 में बंगाल के बैरकपुर में पहली छावनी स्थापित की थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल-इन-काउंसिल ने अप्रैल, 1801 में किसी भी छावनी, सैन्य बंगले और क्वार्टर को किसी भी बाहरी व्यक्ति को बेचने या कब्जा करने पर रोक लगाई थी। यानी लगभग 220 साल से यह कानून चला आ रहा है जिसके तहत सेना की जमीन बेचने की अनुमति तो नहीं है लेकिन हजारों एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे हो चुके हैं। इस मामले में सैकड़ों मामले अदालतों में भी विचाराधीन हैं। रक्षा मंत्रालय के पास इस समय 17.95 लाख एकड़ जमीन है जिसमें से 16.35 लाख एकड़ जमीन देश की 62 छावनियों से बाहर है। पूरे देश में अधिकांश रक्षा भूमि प्रमुख क्षेत्रों में जीटी रोड के साथ हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना द्वारा बनाए गए कैंपिंग ग्राउंड, पुराने डिपो, परित्यक्त छावनियां, शिविर के मैदान, द्वितीय विश्व युद्ध के पुराने हवाई क्षेत्र अब उपयोग में नहीं हैं।

    चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत की अध्यक्षता वाले सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) ने पिछले साल सरकार को बताया था कि रक्षा बलों का पूंजी बजट उनकी प्रतिबद्ध देनदारियों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है। इसलिए रक्षा भूमि को बेचकर होने वाली आय से सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।

    रक्षा मंत्रालय की 17.95 लाख एकड़ जमीन में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, भारत डायनेमिक लिमिटेड, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड, कोलकाता की गार्डन रीच वर्कशॉप, मुंबई की मझगांव डॉक्स सहित एमओडी के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) और सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की भूमि शामिल नहीं है। कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल के सामने प्रसिद्ध विशाल मैदान से लेकर दक्षिण मुंबई में विशाल दिल्ली छावनी और नौसेना नगर तक, डलहौजी, लैंसडाउन, कसौली और नीलगिरी जैसे हिल स्टेशन रक्षा मंत्रालय और उसके सहयोगी संगठनों के स्वामित्व में हैं।

    थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे भी सेना की जमीन के मॉनेटाइजेशन से मिलने वाली रकम से सशस्त्र बलों की जरूरतें पूरी करने की बात कई बार कर चुके हैं। डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (डीएमए) भी इस साल सेना को मिले बजट पर सवाल उठाकर वित्त मंत्रालय के इस सुझाव पर भी आपत्ति जताई थी कि सेना की जमीन को बेचने से मिलने वाले फंड का 50 फीसद हिस्सा कंसोलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया को जाएगा। आखिरकार सरकार ने 220 साल पुराने अंग्रेजी कानून को बदलने का फैसला लेकर छावनी विधेयक 2020 को अंतिम रूप देने की दिशा में काम शुरू कर दिया। सरकार ने नए बनाए गए नियमों को मंजूरी भी दे दी है, जिससे अब खरीदी गई सैन्य जमीन के बदले समान मूल्य के बुनियादी ढांचे का विकास किया जा सकेगा।

    रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार प्रमुख सार्वजनिक परियोजनाओं जैसे मेट्रो, सड़क, रेलवे और फ्लाईओवर का निर्माण करने के लिए रक्षा भूमि उसी कीमत की जमीन देकर या बाजार मूल्य का भुगतान करके ली जा सकेगी। नए नियमों के तहत छावनी क्षेत्रों के भीतर की भूमि का मूल्य स्थानीय सैन्य प्राधिकरण की अध्यक्षता वाली एक समिति निर्धारित करेगी जबकि छावनी के बाहर की जमीन की दर जिलाधिकारी तय करेंगे। अधिकारियों के अनुसार रक्षा आधुनिकीकरण कोष की स्थापना के लिए कैबिनेट नोट के मसौदे पर अभी अंतर-मंत्रालयी विचार-विमर्श चल रहा है और जल्द ही इस पर अंतिम फैसला आने की उम्मीद है। इसके बाद इसे मंजूरी के लिए केंद्रीय कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleमाली के अंतरिम राष्ट्रपति असिमी गोइता पर हमला
    Next Article मिताली राज वन-डे में फिर नंबर-1
    azad sipahi

      Related Posts

      खूंटी का  बनई पुल टूटा, खूंटी-सिमडेगा मुख्य मार्ग पर आवागमन ठप

      June 19, 2025

      झारखंड में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल, 56 आईएएस अधिकारियों का तबादला

      June 19, 2025

      भारी बारिश से जन जीवन प्रभावित, रौद्र रूप में नजर आ रहे खूंटी के जलप्रपात

      June 19, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • खूंटी का  बनई पुल टूटा, खूंटी-सिमडेगा मुख्य मार्ग पर आवागमन ठप
      • झारखंड में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल, 56 आईएएस अधिकारियों का तबादला
      • भारी बारिश से जन जीवन प्रभावित, रौद्र रूप में नजर आ रहे खूंटी के जलप्रपात
      • एमएड सेमेस्टर वन की परीक्षा 30 जून से
      • फ्लाईओवर का नामकरण मदरा मुंडा के नाम पर करने की मांग
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version