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    Home»देश»भारतीय सेना में ‘गोरखाओं’ की जगह आदिवासियों को भर्ती करने की योजना
    देश

    भारतीय सेना में ‘गोरखाओं’ की जगह आदिवासियों को भर्ती करने की योजना

    adminBy adminJuly 23, 2023No Comments3 Mins Read
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    – भारतीय सेना की ‘गोरखा रेजिमेंट’ में सैनिकों की कमी पूरी करेंगे आदिवासी
    – भर्ती प्रक्रिया ‘अग्निपथ’ स्कीम को लेकर भारत और नेपाल के बीच तनातनी बढ़ी

    नई दिल्ली। नई सैन्य भर्ती प्रक्रिया ‘अग्निपथ’ स्कीम को लेकर भारत और नेपाल के बीच तनातनी बढ़ने के बाद ‘गोरखा रेजिमेंट’ को सैनिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय सेना में नेपाली नागरिकों की भर्ती रुकने के कारण इस मुद्दे को हल करने के लिए सेना भारत के भीतर से समान गुणों वाले आदिवासियों की भर्ती करने की योजना बना रही है। इस कदम का उद्देश्य भारतीय सेना में गोरखा राइफल्स की ताकत और विरासत को बनाए रखना है।

    भारतीय सेना में 7 गोरखा रेजिमेंट हैं, जहां आमतौर पर 60 फीसदी सीटें नेपालियों के लिए आरक्षित होती हैं। सेना में नेपाली गोरखाओं की वार्षिक भर्ती धीरे-धीरे घटकर लगभग 1,500 हो गई है, जो पहले प्रतिवर्ष 4,000 थी। भारतीय सेना में 1300 नेपाली युवाओं की भर्ती की जानी थी, इसलिए भारत ने ‘अग्निपथ’ स्कीम के तहत मित्र देश नेपाल को भी सैनिकों की भर्ती के आमंत्रित किया था, ताकि गोरखाओं की संख्या में इजाफा किया जा सके। इस बीच नई सैन्य भर्ती प्रक्रिया ‘अग्निपथ’ स्कीम को लेकर भारत और नेपाल के बीच तनातनी बढ़ गई। इसलिए नेपाल ने अग्निपथ योजना के तहत भर्तियां रोक दी, जिसके लिए रैलियां शुरू होनी थीं।

    भारतीय सेना की सात गोरखा राइफल्स रेजिमेंट में इस समय लगभग 30 हजार नेपाली नागरिक सेवा कर रहे हैं। प्रत्येक रेजिमेंट में पांच से छह बटालियन हैं। नेपाल में 1.3 लाख से अधिक पूर्व सैनिक भी हैं, जो भारतीय सेना की ओर से अपनी पेंशन प्राप्त करते हैं।गोरखा रेजिमेंट के जवान भारत में ज्यादातर पहाड़ी इलाकों पर तैनात रहते हैं, क्योंकि इनके बारे में कहा जाता है कि पहाड़ों पर उनसे बेहतर लड़ाई कोई और नहीं लड़ सकता है। शिलांग के गोरखा प्रशिक्षण केंद्र में कठोर भर्ती प्रशिक्षण के बाद नेपाली लड़कों को भारतीय सेना के लिए शारीरिक रूप से फिट, मानसिक रूप से मजबूत और पेशेवर रूप से सक्षम सैनिकों में बदल दिया जाता है।

    ‘अग्निपथ’ स्कीम को लेकर नेपाल से तनातनी के बाद भारतीय सेना की ‘गोरखा रेजिमेंट’ को सैनिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। नेपाली नागरिकों की भर्ती रुकने के कारण इस मुद्दे को हल करने के लिए सेना भारत के भीतर से समान गुणों वाले आदिवासियों की भर्ती करने की योजना बना रही है। इस कदम का उद्देश्य भारतीय सेना में गोरखा राइफल्स की ताकत और विरासत को बनाए रखना है। भारत की यह चिंता इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि नेपाली गोरखा अब रूसी सेना की ओर रुख करने लगे हैं। नागरिकता नियमों में हालिया बदलाव के बाद रूस नेपाली नागरिकों को नागरिकता भी प्रदान कर रहा है।

    इसी तरह चीन भी अब नेपाल में भर्ती अभियान चलाकर खुद भी ‘गोरखा रेजिमेंट’ बनाने के सपने देखने लगा है। भारतीय गोरखा जवानों ने चीन से 1962 की जंग में, फिर 1965 और 1971 में पाकिस्तान से युद्ध में दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया है। चीन से 2020 में तनातनी शुरू होने से पहले भारत की गोरखा रेजिमेंट के 1642 सैनिक छुट्टियों पर अपने-अपने घर गए थे, लेकिन पूर्वी लद्दाख में चीन से मोर्चा खुलने के बाद नेपाली सैनिक छुट्टी से वापस लौट आये। यह भी एक वजह है कि चीन को भारत के गोरखा जवान खटकने लगे हैं। इसीलिए चीन ने एनजीओ चाइना स्टडी सेंटर को 12 लाख रुपये में ठेका देकर नेपाल में सर्वे कराया है।

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