विशेष
-दुर्भाग्यपूर्ण है धनबाद सांसद और डीसी-एसपी के बीच की जुबानी जंग
-विधायक भानु ने सीएम के खिलाफ टिप्पणी कर अपना ही नुकसान किया
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
भारतीय राजनीति के आधुनिक काल, यानी नयी सदी के बाद की राजनीति का यदि इतिहास लिखा जायेगा, तो उसका एक बड़ा हिस्सा सांसदों-विधायकों से लेकर राजनेताओं की बदजुबानी और भाषायी मर्यादा टूटने का होगा। देश के 28वें राज्य के रूप में उभरे झारखंड में भी नेताओं और सांसदों-विधायकों की बदजुबानी नयी बात नहीं है। अब तो अफसर भी इस दलदल में फंसते नजर आ रहे हैं। हाल में झारखंड की तीन घटनाएं बताती हैं कि राजनीति में सहनशीलता और भाषायी मर्यादा की दीवार का अब कोई अस्तित्व नहीं रहा है। कहीं सांसद एक एसपी को भला-बुरा कह देता है, तो जवाब में डीसी-एसपी भी उसी भाषा में सांसद को जवाब दे देते हैं, तो राज्य का एक विधायक अपने ही राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी कर विवादों में घिर जाते हैं। झारखंड जैसे गरीब और पिछड़े राज्य में इस तरह की बदजुबानी अब सीमाएं पार करने लगी हैं। हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब किसी सांसद या विधायक ने अधिकारियों या अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया हो, लेकिन आक्रामक राजनीति के इस दौर में इस तरह की घटनाएं कहीं से भी समाज में अच्छा संकेत नहीं देती हैं। यह सही है कि सांसद और विधायक अपने क्षेत्र के लोगों के लिए किसी से भी भिड़ने को तैयार रहते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें अपनी मर्यादा का ध्यान रखना ही चाहिए। इसी तरह नौकरशाहों को भी सार्वजनिक मंच से बोलते समय अपनी सीमाओं का ध्यान रखना जरूरी है, वरना पूरी व्यवस्था बेपटरी हो जायेगी। क्या हैं ये दो घटनाएं और क्या है इस बदजुबानी के पीछे का मनोविज्ञान, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में इन दिनों दो-तीन घटनाओं की बहुत चर्चा है। ये तीन घटनाएं सांसद-विधायक और डीसी-एसपी द्वारा अपनी-अपनी सीमाओं के उल्लंघन और भाषायी मर्यादा को तोड़ने से संबंधित हैँ।
पहली घटना : सांसद ढुल्लू महतो ने एसपी को सुनायी खरी-खोटी
पहली घटना बोकारो की है, जहां 18 जुलाई को शंकर रवानी नाम के एक शख्स की हत्या के बाद धनबाद सांसद ढऊल्लू महतो ने एसपी पूज्य प्रकाश को फोन पर खूब खरी-खोटी सुनयी। सांसद ने एसपी के साथ सार्वजनिक रूप से तू-तड़ाक कर बात की। इस क्रम में उन्होंने एसपी से कहा: यहां व्यक्तिगत रूप से तुम नेतागिरी कर रहा है। छोटा-मोटा केस में तुरंत एक्टिव हो जाता है और हत्या केस में कान में तेल देकर सोया रहता है। हम पहले भी तुमको फोन किये थे न कि नहीं किये थे। इस वर्दी के लायक नहीं हो तुम। तुमको कोई काम करना नहीं है। सिर्फ क्राइम बढ़ाना है।
दूसरी घटना: डीसी-एसपी ने सांसद को दिया जवाब
इसके दो दिन बाद 20 जुलाई को बोकारो में जिला समिति दिशा की बैठक के दौरान जब सांसद ढुल्लू महतो ने एक बार फिर यह मुद्दा उठाया, तो एसपी पूज्य प्रकाश ने उन्हें जम कर सुनाया। एसपी ने कहा: आप भी लोक सेवक हैं। मैं भी लोक सेवक हूं। आपने मेरे साथ जिस भाषा का इस्तेमाल किया, यदि मैं चाहता तो उसी भाषा में आपको जवाब दे सकता था। इसके बाद डीसी विजया जाधव ने भी कहा कि किसी को भी अधिकारियों को अपमानित करने का अधिकार नहीं है। हर किसी को अपनी मर्यादा में रहना चाहिए।
तीसरी घटना: विधायक भानु ने सीएम के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी की
तीसरी घटना रांची में 20 जुलाई की है। उस दिन प्रदेश भाजपा की विस्तारित कार्यसमिति की बैठक थी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उसमें शामिल थे। उनके सामने भाषण देते हुए भवनाथपुर के भाजपा विधायक भानु प्रताप शाही ने सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी कर दी। विधायक ने कहा: हम मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गट्टा पकड़ कर कुर्सी से नीचे उतार देंगे। उनके इस बयान के कारण उनके खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज हो चुका है। संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति के खिलाफ इस तरह की बात करना कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है। इस प्रकरण से विधायक भानु जहां कानूनी पचड़े में फंस गये हैं, वहीं राजनीतिक रूप से भी उन्हें नुकसान हो सकता है।
क्या है भाषायी मर्यादा टूटने का कारण
भाजपा सांसद ढुल्लू महतो द्वारा एसपी को बुरा-भला कहे जाने का मामला हो या डीसी-एसपी द्वारा सांसद को दिया गया जवाब हो या फिर विधायक भानु की सीएम के खिलाफ टिप्पणी हो, सब के सब न केवल मीडिया से लेकर मतदाता तक का ध्यान खींचते हैं, बल्कि इस पर गौर करने को मजबूर करते हैं कि आखिर वह क्या बात है कि आम दिनों में मीठी जुबान में सबको खुश करने वाली बात करने वाले राजनेताओं को आखिर क्या हो जाता है कि जब वे मंच पर होते हैं और सामने भीड़ ज्यादा रहती है, तो उनके बोलने का लहजा आक्रामक और मर्यादित हो जाता है। यह जानना दिलचस्प है कि क्या है इसका मूल कारण। ऐसा सायास होता है या फिर बेसाख्ता निकल जाते हैं ये तल्ख शब्द। आखिर क्या फायदा होता है इन राजनेताओं को इस तल्ख जुबानी से।
हो जाते हैं चर्चित
एक कहावत है कि बदनाम होंगे तो क्या नाम नहीं होगा। दरअसल नेताओं के मन में यह कहावत हमेशा घूमती रहती है। किसी को बुरा-भला कह कर या भाषायी मर्यादा तोड़ कर उन्हें लगता है कि आम लोगों में उनकी छवि सुधर रही है और इससे उनका फायदा ही होता है। धनबाद-बोकारो के लोग बताते हैं कि सांसद ढुल्लू महतो तो अपनी तल्ख जुबान के लिए पहले से विख्यात हैं और एक एसपी को इस तरह तू-तड़ाक करने से उनके समर्थकों के सामने उनकी छवि में सुधार ही हुआ है। उनके समर्थक उनकी वाहवाही कह रहे हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति की अमर्यादित भाषा से समाज को कितना नुकसान होता है।
धर्म और जाति के आधार पर बंट जाते हैं लोग
दरअसल भारत का समाज जातीय और सांप्रदायिक आधार पर बेहद विभाजित और ध्रुवीकृत है। वैसे भी लोकतंत्र अपरिहार्य तौर से समाज को समूहों में विभाजित करता है। ऐसे समाज में किसी के लिए मतदाताओं की सहानुभूति हासिल करने का आसान रास्ता होता है कि वह धर्म और जाति के आधार पर दुश्मन पैदा करे। भारतीय समाज और लोकतंत्र की इस कमजोर कड़ी का फायदा उठा कर कई लोग बड़े राजनेता बने। स्वाभाविक है कि अन्य लोग भी उस आसान रास्ते पर चलने के लिए तत्पर होंगे। भारतीय राजनीति में यह ट्रेंड मंडल-मंदिर आंदोलन के बाद उभरा। पहले तो किसी को किसी विरोधी की आलोचना करनी होती थी तो इतना कहना ही काफी होता था कि आदमी तो अच्छे हैं, पर गलत पार्टी में हैं। पुराने समय में अगर किसी पार्टी के नेता को किसी दूसरी पार्टी के नेता को विकास के नाम पर घेरना होता तो धीरे से बयान दे देते थे कि चाहते तो काम कर सकते थे पर किया नहीं। इसलिए तल्ख जुबानी नेताओं का सोचा-समझा प्रयास होता है। उनकी कोशिश होती है कि इसके जरिये समाज के एक हिस्से को अपने पक्ष में कर लिया जाये और वोट बटोरा जाये। व्यावहारिक तौर पर लोकतंत्र में किसी व्यक्ति या शख्स की कामयाबी के लिए जरूरी होता है कि उसके पास एक अदद राजनीतिक दुश्मन भी हो। भारत में शिक्षा का स्तर बेहतर नहीं है, इसलिए ऐसी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
ऐसी घटनाओं से झारखंड का भला नहीं होगा
अब बात इस तरह की घटनाओं के असर की। झारखंड जैसे राज्य के लिए इस तरह की घटनाएं नुकसानदेह हैं। विधायिका और कार्यपालिका में गंभीर मतभेद होते रहते हैं, लेकिन इस तरह की बदजुबानी से माहौल खराब होता है और व्यवस्था में अवरोध पैदा होता है। उसी तरह किसी विधायक द्वारा राज्य के सीएम के खिलाफ की गयी टिप्पणी से राजनीतिक वैमनस्यता बढ़ती है और कम से कम झारखंड के लिए यह अच्छा नहीं है।
कभी न कभी खुद की सेहत पर पड़ता है असर
झारखंड गवाह है कि जब-जब कुछ नेताओं ने सख्ती लोकप्रियता की खातिर अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल किया या अपनी जुबान से आग उगली, बाद में उनका नुकसान ही हुआ। एक समय था, जब सूरज मंडल झारखंड में आग उगलते थे। बदजुबानी उनके सिर चढ़ कर बोलती थी। वह किसी को भी तू तड़ाक कर देते थे। अधिकारियों को नीचा दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। कुछ दिनों बाद सूरज मंडल राजनीतिक दृष्टि से कहां गायब हो गये, यह सबको पता है। कृष्णा मार्डी भी एक उदाहरण है। झारखंड आंदोलन के समय उनकी तूती बोलती थी। अपनी आक्रामकता की सीढ़ी चढ़ कर वह सांसद भी बने। सांसद बनते ही वे अधिकारियों और राजनीतिक विरोधियों का उपहास उड़ाने लगे। आज वह भी हाशिये पर हैं। स्व लालचंद महतो, स्व मधु सिंह सरीखे कई नेताओं को अपनी अमर्यादित भाषा के कारण राजनीतिक हाशिये पर जाते हुए झारखंड ने देखा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि पद की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए ही नेता कोई टीका-टिप्पणी करेंगे। यह खुद उनके लिए और झारखंड के हित में होगा।