नई दिल्ली। संसद के मानसून सत्र की शुरुआत में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को सदस्यों को संबोधित करते हुए राजनीतिक दलों से सौहार्द और परस्पर सम्मान की भावना बनाए रखने की अपील की। उन्होंने कहा कि एक जीवंत लोकतंत्र निरंतर कलह के वातावरण में फल-फूल नहीं सकता। उन्होंने सभी दलों को परामर्श, संवाद और विमर्श को प्राथमिकता देने का आग्रह किया।
धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र का मर्म टकराव में नहीं, बल्कि विचार-विनिमय और सकारात्मक बहस में है। उन्होंने कहा कि भले ही राजनीतिक दल अलग-अलग रास्तों से अपने लक्ष्य तक पहुंचना चाहें, लेकिन कोई भी राष्ट्रहित के खिलाफ नहीं होता। इसलिए संवाद की संस्कृति को अपनाना और टकराव से बचना सभी की जिम्मेदारी है।
सभापति ने टेलीविज़न या अन्य सार्वजनिक मंचों पर नेताओं के खिलाफ अमर्यादित भाषा और व्यक्तिगत हमलों से बचने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि ऐसा आचरण हमारी सभ्यता और संसदीय गरिमा के मूल स्वरूप के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि देश को कमजोर करने वाले तत्व हमारे आंतरिक मतभेदों का लाभ उठाते हैं, इसलिए आपसी झगड़े हमारे शत्रुओं को ही मजबूत करते हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत की ऐतिहासिक शक्ति संवाद और विचार-विनिमय में रही है और यही परंपरा संसद का मार्गदर्शन भी करती है।
धनखड़ ने कहा कि सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की भूमिका लोकतंत्र में महत्वपूर्ण है और यह अपेक्षा की जाती है कि सभी राजनीतिक दल रचनात्मक राजनीति करें जिससे भारत की प्रगति सुनिश्चित हो। उन्होंने विश्वास जताया कि यदि सभी दल सहयोग और सकारात्मक भागीदारी दिखाएं तो यह मानसून सत्र अत्यंत उपयोगी और अर्थपूर्ण साबित होगा।