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    Home»विशेष»बिहार की चुनावी पिच पर हाथ आजमायेंगे कई नौकरशाह
    विशेष

    बिहार की चुनावी पिच पर हाथ आजमायेंगे कई नौकरशाह

    shivam kumarBy shivam kumarJuly 30, 2025No Comments6 Mins Read
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    विशेष
    राजनीति के मैदान में आइएएस-आइपीएस की इंट्री से बढ़ेगा रोमांच
    अभी से ही टिकट हासिल करने के लिए भिड़ाने लगे हैं अपनी जुगत

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    बिहार में होनेवाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगातार तेजी आती जा रही है। राजनीतिक दलों की गतिविधियां बढ़ रही हैं, तो टिकट हासिल करने के लिए भी जुगाड़ लगाये जा रहे हैं। ऐसे में एक दिलचस्प देखने को मिल रही है कि इस बार बड़ी संख्या में अधिकारी चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। बिहार में चुनाव से पहले इन रिटायर्ड अफसरों की सियासी महत्वाकांक्षा और संभावित इंट्री ने हलचल मचा दी है। कई पूर्व और वर्तमान आइएएस-आइपीएस अधिकारी वीआरएस लेकर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। इनमें कुछ नीतीश कुमार के करीबी रहे हैं, तो कुछ प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के सहारे नयी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि नीतीश कुमार का यह आखिरी चुनाव हो सकता है। ऐसे में बिहार में बढ़ती राजनीतिक खींचतान ने इन अधिकारियों को राजनीति में उतरने का एक बड़ा मौका दे दिया है। इनकी पहली पसंद बन रही है प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जहां अन्य पार्टियों के मुकाबले टिकट मिलने की संभावना ज्यादा है। नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वह अपने विश्वस्त अधिकारियों पर अधिक भरोसा करते हैं। उनके राजनीतिक फैसले भी नौकरशाहों की सलाह पर ही लिये जाते हैं। वैसे भी बिहार की सियासत में नौकरशाहों की मौजूदगी नयी बात नहीं है। लेकिन इस बार उनकी अधिक संख्या ही चुनाव के रोमांच को बढ़ा रही है। क्या है बिहार की सियासी पिच पर नौकरशाहों की इंट्री का कारण और कौन हैं इस कतार में, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    बिहार विधानसभा का आगामी चुनाव हर दिन रोमांचक मोड़ पर पहुंचता नजर आ रहा है। राजनीतिक दांव-पेंच के साथ-साथ पार्टियों की रणनीति तो चल ही रही है, लेकिन इसके साथ ही प्रदेश की राजनीति में एक नयी लहर देखी जा रही है। यह है नौकरशाहों की सियासी महत्वाकांक्षा और चुनावी मैदान में उतर कर हाथ आजमान की उनकी तैयारी। वैसे राजनीति का मैदान हमेशा से नौकरशाहों को आकर्षित करता रहा है और बिहार समेत पूरे देश में कई ऐसे नौकरशाह हुए हैं, जिन्होंने राजनीति में चमकदार पारी खेली है या खेल रहे हैं। बिहार ने तो कई नौकरशाहों को संसद या विधानमंडलों में भेजा है।

    इन सबके बीच यह पहली बार है, जब इतनी बड़ी संख्या में सेवारत और रिटायर्ड आइएएस और आइपीएस अधिकारी चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। अधिकारियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और चुनाव मैदान में उतरने की उनकी तैयारियों के कारण बिहार की इस बार की चुनावी तस्वीर कुछ अलग नजर आ रही है। कई आइएएस और आइपीएस अधिकारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सीधे जनता के बीच जाने की योजना बना चुके हैं। इन अफसरों में ऐसे चेहरे भी शामिल हैं, जो प्रशासनिक सेवा में रहते हुए शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के बेहद करीबी माने जाते थे। वहीं कुछ ने पहले ही राजनीतिक दलों की सदस्यता लेकर चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है।

    नीतीश के पूर्व सचिव दिनेश कुमार राय मैदान में
    इस बार चुनाव मैदान में उतरनेवाले सबसे चर्चित नामों में एक है बिहार सरकार के पूर्व सचिव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निजी राजनीतिक सचिव रह चुके आइएएस अधिकारी दिनेश कुमार राय। उन्होंने वीआरएस लेने के बाद करगहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की है। कुर्मी समुदाय से आने वाले राय स्थानीय स्तर पर अच्छी पकड़ रखते हैं और जमीनी राजनीति में उनकी पैठ बतायी जा रही है।

    आइपीएस जय प्रकाश सिंह जन सुराज में शामिल
    हिमाचल प्रदेश कैडर के 2000 बैच के आइपीएस अधिकारी जय प्रकाश सिंह वीआरएस लेकर प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी में शामिल हो गये हैं। वह सारण जिले की छपरा विधानसभा सीट से किस्मत आजमाने वाले हैं। जन सुराज पार्टी उन अधिकारियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनती दिख रही है, जो अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए दलों में अवसर की तलाश कर रहे हैं।

    आइपीएस शिवदीप लांडे ने बनायी अपनी पार्टी
    बिहार के ‘सिंघम’ कहे जाने वाले पूर्व आइपीएस शिवदीप लांडे ने भी सियासी पारी की शुरूआत कर दी है। वीआरएस लेने के बाद उन्होंने हिंद सेना पार्टी का गठन किया है और दावा किया है कि उनकी पार्टी बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

    आइपीएस आनंद मिश्रा भी आजमायेंगे किस्मत
    असम-मेघालय कैडर के चर्चित आइपीएस रहे आनंद मिश्रा ने बक्सर से बीजेपी टिकट की उम्मीद में वीआरएस लिया था। हालांकि टिकट नहीं मिलने के बाद उन्होंने जन सुराज पार्टी ज्वाइन की और बाद में उसे भी छोड़ दिया। इस बार वह भी चुनाव मैदान में किस्मत आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस और भाजपा से भी संपर्क साधा है।

    अन्य अफसर भी तैयार कर रहे सियासी पिच
    इस चर्चित अधिकारियों के अलावा बिहार के पूर्व डीएम अरविंद कुमार सिंह, पूर्व संयुक्त सचिव गोपाल नारायण सिंह और नवादा के पूर्व डीएम लल्लन यादव भी जन सुराज के जरिये सियासी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। उधर ओड़िशा कैडर के आइएएस अधिकारी मनीष वर्मा जेडीयू में शामिल होकर संगठन में महासचिव बनाये गये हैं और वह नालंदा से चुनाव लड़ सकते हैं।

    बिहार की परंपरा रही है अफसरों की सियासी मौजूदगी
    बिहार की राजनीति में अफसरों की इंट्री नयी बात नहीं है। यशवंत सिन्हा, आरके सिंह, एनके सिंह, आरसीपी सिंह जैसे कई अधिकारी राजनीति में सफल हो चुके हैं। हालांकि कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं, जैसे गुप्तेश्वर पांडेय, जो टिकट नहीं मिलने के बाद राजनीति से बाहर हो गये। एकीकृत बिहार में तो कई ऐसे अधिकारी रहे, जिन्होंने राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल किया। जानकारों का मानना है कि अगर अफसर राजनीति में भी ‘बाबू’ बनकर रहेंगे, तो असफल हो जायेंगे, लेकिन जिन्हें जनसंपर्क और प्रशासनिक अनुभव है, उनके लिए राजनीति में संभावनाएं हैं।

    नीतीश और मोदी, दोनों का भरोसा अफसरों पर
    नौकरशाहों पर भरोसे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक जैसी सोच रखते हैं। मोदी सरकार में एस जयशंकर, आरके सिंह, अश्विनी वैष्णव जैसे पूर्व अधिकारी मंत्री हैं, वहीं नीतीश कुमार ने अपने विश्वस्त अधिकारियों को रिटायरमेंट के बाद भी अहम पदों पर बनाये रखा है। 2019 में सेवानिवृत्त हुए 1984 बैच के आइएएस दीपक कुमार को नीतीश ने फिर से अपने प्रधान सचिव के रूप में पदस्थापित किया। इसके अलावा चंचल कुमार और अतुल प्रसाद जैसे अफसरों के साथ उनका रिश्ता इतना गहरा है कि कई बार मंत्रियों को नाराज होकर इस्तीफा देना पड़ा। 2022 में समाज कल्याण मंत्री मदन साहनी ने इसी वजह से इस्तीफा दिया था।

    राजनीति में अफसरों की बढ़ती भूमिका
    बिहार के आगामी चुनाव इस मायने में अलग हो सकते हैं, क्योंकि यहां राजनीति का रुख अब सिर्फ परंपरागत नेताओं से नहीं, बल्कि अफसरशाही की दुनिया से आये चेहरों से भी तय हो सकता है। जिस तरह से वीआरएस लेने वालों की संख्या बढ़ रही है और राजनीतिक दल उन्हें टिकट देने को तैयार हैं, यह साफ है कि चुनाव 2025 में नयी शक्ल ले सकता है।

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