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    Home»Top Story»56 इंच के सीने से झारखंड में 65 पार
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    56 इंच के सीने से झारखंड में 65 पार

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskAugust 8, 2019No Comments7 Mins Read
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    मोदी के मास्टर स्ट्रोक से भाजपा महाबली, विपक्ष में खलबली

    नरेंद्र मोदी के ताबड़तोड़ मास्टर स्ट्रोक से विपक्ष को दिन में ही तारे नजर आने लगे हैं। पहले तीन तलाक कानून और अब कश्मीर से धारा 370 हटाने का फैसला, ने राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया है। पहले जब भाजपा ने झारखंड में 65 पार का लक्ष्य रखा था, उस वक्त इसे मुंगेरी लाल के हसीने सपने की संज्ञा दी गयी। लेकिन समय के साथ संगठन और सरकार स्तर पर किये जा रहे कार्यों से यह लक्ष्य अब आसान लगने लगा है। धारा 370 को खत्म करने की घोषणा से चुनावों की तैयारियों में जुटी झारखंड की भाजपा इकाई की बाछें खिल गयी हैं। झारखंड भाजपा के नेता अब आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर दोहरा दम भरते नजर आ रहे हैं। सत्ता में फिर से वापसी करने को बेहद मुखर दिख रहे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अनुच्छेद 370 को लेकर ताबड़तोड़ पांच ट्वीट कर अपनी मंशा साफ जाहिर कर दी थी। ऐसे में आये दिन झारखंड चुनावों की तैयारी के नाम पर यहां लकीर खींचने की कोशिश की जा रही है। ऐसे में अनुच्छेद 370 का मास्टर स्ट्रोक अब बड़ा काम करेगा।
    विधानसभा चुनाव में दिखेगा जबर्दस्त असर
    लोकसभा चुनावों में पहले ही झारखंड की 14 में से 12 सीटों पर कब्जा जमा कर अपना इरादा जाहिर कर चुका एनडीए के बारे में चुनाव विश्लेषक कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले का निश्चित ही हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव में व्यापक असर दिखेगा। एक ओर भाजपा जीत से उत्साहित है, तो दूसरी ओर हार से विपक्ष में निराशा का भाव है। ऐसे में एक और मास्टर स्ट्रोक ने विपक्ष को औंधे मुंह गिरा दिया है।
    विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा का मास्टर प्लान
    भाजपा ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई रणनीतियों पर पहले से ही काम शुरू कर दिया है। 65 के पहाड़ को भाजपा ने अवसरों के आसमान के रूप में बदल दिया है। हर तरफ से धाकड़ बल्लेबाजी चल रही है। केंद्रीय नेताओं का सबसे अधिक फोकस सदस्यता अभियान पर है। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी जिन सीटों पर दूसरे स्थान पर रही, उन पर खास ध्यान दिया जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 37 सीटें हासिल हुई थीं। साथ ही 30 सीटों पर वह दूसरे स्थान पर रही थी। भाजपा को फोकस इस बार इस 30 सीटों को लेकर भी है। वहीं दूसरी ओर भाजपा पिछले चुनाव के आंकड़े को बचा लेती है और दूसरे स्थान पर रहे उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित हो जाती है, तो यह आंकड़ा ऐसे में 67 तक पहुंच जायेगा। दूसरी ओर अगर भाजपा लोकसभा में हासिल मत को अपनी ओर खींचने में कामयाब हो जाती है, तो उसकी झोली में 63 सीटें स्वत: चली जायेंगी। कारण लोकसभा चुनाव में भाजपा को 63 विधानसभा क्षेत्रों में बदल हासिल हुई थी।
    2014 में इन सीटों पर भाजपा सेकेंड रही
    बहड़ागोड़ा, बरहेट, बरही, बड़कागांव, भवनाथपुर, बिशुनपुर, चाईबासा, चक्रधरपुर, डाल्टनगंज, धनवार, डुमरी, गोमिया, हुसैनाबाद, जगरनाथपुर, जरमुंडी, खरसावां, कोलेबिरा, लातेहार, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, मझगांव, मांडू, मनोहरपुर, नाला, निरसा, पाकुड़, पांकी, पोड़ैयाहाट, शिकारीपाड़ा।
    भाजपा पर सदस्यता अभियान पर फोकस
    झारखंड में भाजपा 2014 में मोदी लहर के बावजूद 37 सीटें ही जीत पायी थीं। सहयोगी आजसू को पांच सीटें मिली थीं। बीजेपी को उस चुनाव में 31.3 प्रतिशत वोट मिला था। पार्टी इस बार के चुनाव में अपना वोट प्रतिशत बढ़ाना चाहती है। इसे 50 प्रतिशत तक ले जाने की योजना है। इसके लिए 25 लाख नये सदस्य बनाने का लक्ष्य हर हाल में पूरा करने पर जोर है। पार्टी को लगता है कि 25 लाख नये सदस्य बन गये, तो साल अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में 65 पार का लक्ष्य भी हासिल हो जायेगा। साथ ही वोट परसेंटेज भी बढ़ जायेगा।
    कश्मीर के तीर से झारखंड, महाराष्टÑ और हरियाणा साधने की तैयारी
    कश्मीर के 370 के तीर से झारखंड के साथ महाराष्टÑ और हरियाणा भी साधने की तैयारी में भाजपा लगी है। झारखंड विधानसभा का कार्यकाल पांच जनवरी 2020 तक है। ऐसे में अक्टूबर के मध्य तक आचार संहिता लगने की उम्मीद है।
    उधर हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल दो नवंबर 2019 तक है, जबकि महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल नौ नवंबर 2019 तक है। जाहिर है हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के बीच कार्यकाल में एक से दो महीने का ही अंतर है। ऐसे में चुनाव आयोग भी तीनों राज्यों में एक साथ विधानसभा चुनाव करा सकता है। हालांकि इसके लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास को झारखंड विधानसभा भंग करने का निर्णय लेते हुए समय से पहले चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग से सिफारिश करनी पड़ेगी।
    83 लाख ही साध पायी, तो विपक्ष होगा धाराशायी
    लोकसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित छप्पर फाड़ वोट मिले। अब तक बीजेपी को लोकसभा चुनाव में मिले वोट के ये आंकड़े सबसे अधिक हैं। जाहिर है बीजेपी को इस जीत ने उत्साह से लबरेज कर दिया है। अगर बीजेपी इस रिकॉर्ड के आस पास भी ठहर गयी, तो विपक्ष का दम फूलता नजर आयेगा। साथ ही सत्ता से वह दूर नजर आयेगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी झारखंड में बीजेपी ने 12 सीटें जीती थी। इस बार 12 सीटों में एक गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में बीजेपी की सहयोगी आजसू को जीत मिली है। बीजेपी के वोटों के रिकॉर्ड में गिरिडीह सीट पर आजसू को मिले वोट भी जोडेÞ गये हैं। गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में बीजेपी को 47 लाख 44 हजार 315 वोट मिले थे। यानी इस बार बीजेपी को 35 लाख 28 हजार 267 वोट अधिक मिले हैं। बीजेपी और आजसू को 63 विधानसभा क्षेत्रों में विपक्षी दलों के उम्मीदवारों से अधिक वोट मिले, जबकि राज्य में 81 विधानसभा क्षेत्र हैं और विपक्ष में विधायकों की संख्या 32 है। दरअसल, इस बार विपक्ष ने गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में कांग्रेस, जेएमएम, जेवीएम और राजद को 47 लाख 49 हजार 657 वोट मिले। जबकि 2014 में भी विपक्ष को लगभग 47 लाख वोट मिले थे। उस वक्त जेवीएम अपने दम पर चुनाव लड़ा था। समझा जा सकता है कि वोटों के बंटवारे रोकने की गरज से एक साथ चुनाव लड़ने के बाद भी विपक्ष के वोट नहीं बढ़े। फर्क इतना है कि 2014 में जेएमएम दो सीटों पर जीता था। इस बार कांग्रेस एक और जेएमएम को एक सीट पर जीत मिली है। वोट के विशाल स्कोर के साथ बीजेपी के इतराने की बड़ी वजह यह भी है कि विपक्ष में शिबू सोरेन, सुबोधकांत सहाय, बाबूलाल मरांडी, चंपई सोरेन, मनोज यादव सरीखे बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा है। दूसरी ओर लोकसभा में मिले मत के पीछे माना जा रहा है कि उज्ज्वला, आयुष्मान, पीएम आवास, किसान सम्मान योजना और स्वच्छ भारत मिशन के लाभुकों तक संगठन और संघ के कार्यकर्ता पहुंचने में सफल रहे। आदिवासी इलाकों में बीजेपी को मिले वोट इसके साफ संकेत माने जा सकते हैं।
    आइये जानते हैं क्या है भाजपा का मास्टर प्लान
    >>28 एसटी सीटों में से 22 सीटों पर कब्जा करना, इसके लिए आदिवासी समाज को प्रेरित करना।
    >>जिन सीटों पर पिछली बार दूसरे स्थान पर भाजपा रही, उनके सामाजिक समीकरण को पक्ष में करना।
    >>दूसरे दल के विधायकों को भाजपा में लाने का प्रयास, इसकी भी गुंजाइश अब ज्यादा है।
    >>क्षेत्रीय स्तर पर प्रमुख सामाजिक संगठन के नेताओं को पार्टी से जोड़ना। धीरे-धीरे भाजपा इसमें कामयाब भी हो रही है।
    >>जातिगत गोलबंदी अगर है, तो उसे तोड़ने का प्रयास करना।
    >>कमजोर स्थानों पर विशेष नजर, बूथ कमेटी में 25 लोगों को रखना। इस काम में भाजपा पूरे मनोयोग से लगी है।
    >>केंद्र और राज्य सरकार की योजना के लाभुकों के साथ संपर्क बनाना। इसमें भाजपा काफी काम कर चुकी है।
    >>झारखंड में 29,513 बूथ हैं। इन पर कमेटी बनाना। बीजेपी के मास्टर प्लान का बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा यह है। इस पर काफी काम हुआ है और हो भी रहा है।
    >>तीसरे स्थान वाली सीटों पर भाजपा की रणनीति यहां के लिए दूसरे दलों के विधायक को पार्टी में लाना है। इस असर चुनाव के चंद दिन पहले दिखेगा।

    65 crosses in Jharkhand with 56 inch chest
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