अयोध्या में श्रीराम मंदिर का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दिया है और अगले साढ़े तीन साल में दुनिया का सबसे भव्य मंदिर बन कर तैयार हो जायेगा। अयोध्या में हुआ शिलान्यास और भूमि पूजन केवल एक मंदिर का शिलान्यास नहीं है, बल्कि यह भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरुआत है। इसलिए अयोध्या में बननेवाला श्रीराम जन्मभूमि मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं होगा, बल्कि यह भारत को एक सूत्र में पिरोनेवाली उस अदृश्य शक्ति का प्रतीक भी होगा, जिसे भगवान श्री राम कहा जाता है। राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने कभी अपने इश्वरीय शक्तियों का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि हर परिस्थिति का सामना अपने विवेक और संयम से किया। अयोध्या का मंदिर भारत और यहां के 130 करोड़ लोगों के उसी विवेक और संयम का प्रतीक बनेगा, जो 492 साल तक लगातार जूझते रहने के बाद पूरा हुआ है। इस लिहाज से अयोध्या का यह समारोह बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसने तमाम राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक भेदभाव को एक झटके में पाट दिया है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर के शिलान्यास समारोह के सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर नजर डालती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
पांच अगस्त, 2020 को भारत की सांस्कृतिक राजधानी अयोध्या में दिन के 12 बज कर 44 मिनट पर जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की आधारशिला रखी और उस स्थान पर सिर झुकाया, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत का कोना-कोना जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठा। यह उद्घोष भारत का था। इसमें न राजनीति थी, न जाति और न धर्म का भेदभाव। ऐसा इसलिए, क्योंकि अयोध्या में जिस भगवान श्रीराम का मंदिर बन रहा है, वह भारत के कण-कण में समाये हुए हैं। भारत के लोग 492 साल के विवेक और संयम को अंजाम पर पहुंचता देख आज बेहद प्रसन्न हैं, क्योंकि आज एक बार फिर पूरा देश एक होकर खड़ा है।
यही भगवान राम का असली स्वरूप है। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम वैसे ही नहीं कहा जाता है। भारत का हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म या संप्रदाय का हो, भगवान राम को अपने भीतर महसूस करता है। भगवान राम भारत की सांस्कृतिक एकता के पर्याय हैं, इसलिए अयोध्या में जो मंदिर बन रहा है, वह केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, देश की सांस्कृतिक एकता का केंद्र होगा।
भारत की इस एकता को आज बेहद करीब से महसूस किया जा सकता है। आजादी के बाद शायद यह पहला मौका है, जब पूरा देश किसी मुद्दे पर इतनी मजबूती से एक होकर खड़ा है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कच्छ से लेकर कलिंपोंग तक अयोध्या में मंदिर निर्माण की शुरुआत की खुशी में दीवाली मनायी गयी। हर राजनीतिक दल और हर धर्म-संप्रदाय के लोगों ने आज के दिन को ऐतिहासिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
दरअसल, भगवान राम केवल आराध्य ही नहीं हैं, बल्कि वह भारतीय सांस्कृतिक चेतना के अप्रतिम प्रतीक हैं। वह केवल इसलिए एक आम व्यक्ति के इतने करीब हैं, क्योंकि उनमें इश्वरीय अतिरेक नहीं है। रामायण के लगभग हर प्रसंग में भगवान राम एक आम इंसान ही नजर आते हैं। चाहे बाल्यावस्था की चंचलता हो, किशोरावस्था की हरकतें हों, युवावस्था के स्वभाव हों या फिर एक राजा के रूप में कर्तव्यों का निर्वहन हो, भगवान राम ने हर परिस्थिति में विवेक और संयम से ही काम लिया। एक भारतीय के लिए भगवान राम इसलिए अधिक करीब हैं, क्योंकि उन्होंने जीवन के हर पहलू में खुद को उसके अनुरूप ही ढाला। इसलिए भगवान राम धार्मिक से कहीं अधिक सांस्कृतिक प्रतीक हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम भी उन्हें इसीलिए कहा जाता है।
अयोध्या में मंदिर निर्माण का शिलान्यास इसलिए भी भारत के शानदार धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास का एक सुनहरा अध्याय है, क्योंकि इसने देश के लोगों में उनकी सांस्कृतिक विरासत का एहसास फिर से जगा दिया है। पिछले चार दशकों में भारत के लोग अपने सांस्कृतिक इतिहास से विमुख होने लगे थे, क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि इसके सहारे आगे बढ़ने का प्रयास बेकार है। 1990 में आडवाणी की रथयात्रा के बाद पैदा हुआ तनाव और 1992 में विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद उपजी परिस्थितियों ने लोगों के भीतर इस भावना को मजबूत किया, लेकिन पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर जो माहौल बना, वह सचमुच भारत की एकजुटता और दृढ़ संकल्प शक्ति का परिचायक था। इस लिहाज से भी मंदिर निर्माण का शिलान्यास भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण मोड़ है।
आज जब 492 साल का संयम और विवेक मंदिर निर्माण के शिलान्यास के रूप में अपने गंतव्य पर पहुंच गया है, भारत के प्रत्येक व्यक्ति की चुनौती भी बढ़ गयी है। अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर तो अगले साढ़े तीन साल में बन कर तैयार हो जायेगा, लेकिन इस मंदिर को दुनिया के कोने-कोने में भारत की सांस्कृतिक संवेदनशीलता और धार्मिक एकता के जीवंत प्रतीक के रूप में स्थापित करने की जिम्मेदारी हमारी होगी। ‘कोस-कोस पर पानी बदले, पांच कोस पर बानी’ वाले विविधताओं से भरे इस देश के हर व्यक्ति को भगवान राम की संवेदनशीलता, आचरण और भावनाओं को दुनिया भर में पहुंचाना है।
अब, जबकि अयोध्या में मंदिर निर्माण का काम शुरू हो गया है, भारत के लोगों के लिए यह एक संकल्प लेने का दिन है। यह संकल्प देश को इसी तरह एकजुट और मजबूत रखने का होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिलान्यास के बाद अपने संबोधन में इसे रेखांकित भी किया है कि हम जितने ताकतवर होंगे, क्षेत्र में उतनी ही शांति होगी। इसलिए आज का दिन भारत के 130 करोड़ लोगों के लिए अपने विवेक पर, अपने संयम पर और अपनी क्षमता पर दोबारा विश्वास करने का है, जिससे हमारी आनेवाली पीढ़ियों की नजर में हमारी अहमियत कम नहीं हो। हम विरासत में ऐसा देश छोड़ें, जिसका नागरिक होने पर उन्हें गर्व हो और वे यह कह सकें कि ‘हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है’।