सत्र नगरी के रूप में विख्यात बरपेटा अपनी अनूठी वैभवशाली पारंपरिक विशेषताओं के लिए विश्वविख्यात रहा है। यहां की प्राचीन हाथी दांत की कला अपने आप में मौलिक है। इस वजह से इसकी लोकप्रियता राज्य की सीमाएं तोड़कर वैश्विक रही है। बरपेटा का हाथी दांत शिल्प एक ऐसा शिल्प है जो अनूठा है लेकिन अब सरकारी प्रोत्साहन न मिलने के चलते इस कला के शिल्पकार उपेक्षित हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने वर्ष 1977 में हाथी दांत पर पाबंदी लगा दी है। क्योंकि वन्य जीवों रक्षकों का मानना है कि हाथी दांत के लिए लोग हाथियों को मार रहे हैं। सरकार ने शिल्पकारों को हाथी दांत देना बंद कर दिया है। जिसके चलते धीरे-धीरे हाथी दांत का शिल्प समाप्ति की कगार पर पहुंच गया है।
इस समय बरपेटा में हाथी दांत शिल्प से जुड़े संभवतः जीवित व अंतिम शिल्पकार टिकेन बायेन हैं। ये वे शिल्पकार हैं जो हाथी दांत के कारीगर है और अपनी कला के लिए प्रसिद्ध हैं। टिकेन मुख्य रूप से हाथी के पुश्तैनी कलाकार हैं। बचपन में करीब 12 साल से उन्होंने हाथी दांत की कलाकारी सीखना शुरू कर दिया था। बरपेटा के अंतिम हाथी दांत के शिल्पकार का सिर्फ एक ही सपना है कि आने वाली पीढ़ियों को हाथी दांत की कलाकारी सिखाना।
बरपेटा के हाथी दांत के शिल्प का इतिहास काफी प्राचीन है। कहा जाता है कि बरपेटा सत्र (मठ) के प्राचीन इतिहास को प्रचारित करने के लिए आत्माराम दास नामक एक भक्त शिवसागर गए थे। सत्र का प्रचार करते समय खाली समय में हाथी दांत की शिल्प कला को वहां से सीखा था। शिवसागर में आहोम राजा के सौजन्य से हाथी दांत शिल्पकला को शुरू किया गया था। बरपेटा के निपुण कारीगरों के हाथों के स्पर्श से कलाकृति सजीव हो उठती थी। लेकिन, बरपेटा की संस्कृति को समृद्ध करने वाली यह शिल्प अब इतिहास बनने की कगार पर पहुंच गया है।
बरपेटा स्थित राधानाथ आईवरी नामक शिल्प के संस्थापक शैलेंद्र दास के घर पर शिल्पकारों ने इस कला को पूर्ण रूप देकर हाथी दांत से हाथी, गैंडा, बुद्ध की मूर्ति, ,कंघी, महिलाओं की कानों की बाली, गुरु आसन, इंग्लैंड की राजा-रानी की तस्वीर, ऐनक आदि तैयार किया था। हाथी दांत के शिल्पकारों के परिवारों का कहना है कि हाथी दांत के विभिन्न शिल्प कला के नमूने ब्रिटिश म्यूजियम में रखे गये हैं।
वहीं बरपेटा के अंतिम हाथी दांत के शिल्पकार टिकेन बायेन का कहना है कि वन्य जीवों को नुकसान पहुंचाए बिना व कानून का पालन करते हुए इस शिल्प को बचाने के लिए सरकार को हाथी दांत मुहैया कराना चाहिए। ताकि, इस शिल्प कला को बचाया जा सके। उन्होंने अतीत की स्मृतियों को टटोलते हुए उदास मन से अपनी कलाकृति के बारे में कहा कि पहले असम भ्रमण करने वाले विशिष्ट व्यक्तियों को अथवा राष्ट्र नायकों को बरपेटा के हाथी दांत के शिल्पियों द्वारा तैयार की गयी कलाकृतियों को प्रदान किया जाता था। टिकेन बायेन ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हाथी दांत द्वारा तैयार किये गये एक बैग को राज्य सरकार को उपहार देने के लिए प्रदान किया गया था।
एक समय हाथी दांत की कलाकृतिया बनाने वाले शिल्पकार अब लकड़ी पर कलाकारी कर अपने परिवार का पालन-पोषण कर उसी से सत्रिया संस्कृति को बरकरार रखने की कोशिश कर रहे हैं। अपने हुनर से कला-संस्कृति को जीवित रखने वाले इन शिल्पियों को सरकार से सम्मान, स्वीकृति व सहायता नहीं मिली है। पहले के हाथी दांत के कारीगरों और लकड़ी पर मूर्ति निर्माण कर क्षेत्रीय परंपरा को समृद्ध करने वाले इन परिवारों ने बहुत पहले से ही सरकार से शिल्पी पेंशन की मांग करते आए हैं लेकिन, सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। शिल्पकारों की उपेक्षा बेहद चिंताजनक है।