सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी अवमानना नोटिस का जवाब देते हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के कामकाज के तरीके और उसकी सद्भावपूर्ण आलोचना करना कोर्ट की अवमानना नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा है कि चीफ जस्टिस की आलोचना करना सुप्रीम कोर्ट का मान गिराना कतई नहीं है। कुल 142 पेजों के हलफनामे में प्रशांत भूषण ने अपने ट्विटस को सही करार दिया है। प्रशांत भूषण ने वकील माहेक माहेश्वरी की मूल शिकायत की प्रतियों की मांग की है, जिसके आधार पर कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए उन्हें नोटिस जारी किया था।
प्रशांत भूषण ने हिंदू अखबार के संपादक और अरुण शौरी के साथ 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट की धारा 2(सी)(आई) को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि कोर्ट के सम्मान को गिराने वाले बयान पर लगने वाली ये धारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन है। याचिका में कहा गया है कि कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट की धारा 2(सी)(आई) असंवैधानिक है और संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि ये धारा संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन करता है। यह धारा भ्रमपूर्ण और मनमाना है।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को प्रशांत भूषण के ट्वीट पर अवमानना का नोटिस जारी किया है। प्रशांत भूषण के दो ट्वीट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई शुरू की है। एक ट्वीट में वे लिखते हैं कि चीफ जस्टिस ने सुप्रीम कोर्ट को आम आदमी के लिए बंद कर दिया है। ट्वीट में लिखा गया है कि चीफ जस्टिस बिना हेलमेट या मास्क के बीजेपी नेता की बाइक चला रहे हैं। दूसरे ट्वीट में वो चार पूर्व चीफ जस्टिस की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहे हैं। कोर्ट ने 24 जुलाई को प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 के कोर्ट की अवमानना मामले की सुनवाई 4 अगस्त तक के लिए टाल दी थी। प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 में भी कोर्ट की अवमानना का केस शुरू किया गया था।
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