दयानंद राय
10 अगस्त 1975 को जब पूरा देश आपातकाल के साये में सांस ले रहा था, रामगढ़ के नेमरा गांव में दिशोम गुरू शिबू सोरेन और रूपी सोरेन के घर एक नन्ही किलकारी गूंजी। यह किलकारी हेमंत सोरेन की थी। उस हेमंत सोरेन की, जिसे आगे चलकर झारखंड का मुख्यमंत्री बनना था और अपने पिता के खून-पसीने से सींची गयी पार्टी का नेतृत्वकर्ता। हालांकि, उस रोज शायद ही किसी को यह अंदाजा था कि यही बालक आगे चलकर अपने पिता की बनायी गयी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के लिए संभावनाओं का नायक बनेगा। पर 29 दिसंबर 2019 को जब भाजपा के हाथों से सत्ता छीनकर हेमंत सोरेन दूसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने तो यह साबित हो चुका था कि हेमंत झामुमो के लिए संभावनाओं के नायक हैं।
स्कूली शिक्षा के बाद बीआइटी मेसरा से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते समय जब हेमंत सोरेन ने छात्र राजनीति से राजनीति की रपटीली और दांव-पेंचवाली गलियों में कदम रखा तो सबसे पहले अपनी पार्टी झामुमो में ही उन्होंने अपनी काबिलियत साबित की। दिग्गज नेताओं की पार्टी में उपस्थिति के बाद भी वे झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष बने और यहां भी अपनी काबिलियत का झंडा गाड़ा। जुलाई 2013 में जब पहली बार झारखंड का मुख्यमंत्री बनने का उन्हें अवसर मिला तो महागठबंधन की सरकार का मुखिया होने के बावजूद अपने लगभग चौदह महीने के कार्यकाल में खुद की अमिट छाप जनता के जेहन में छोड़ दी। उस वाकये को कोई कैसे भुला सकता है, जब 21 अगस्त 2014 को धुर्वा के प्रभात तारा मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभा करने आये थे। उस समय भीड़ में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की हूटिंग हुई, पर हेमंत सोरेन ने न सिर्फ अपना भाषण पूरा किया, बल्कि लोगों से मंच की गरिमा बनाये रखने की अपील भी की। हेमंत ने इस सभा में कहा कि अगर झारखंड में पर्यटन आधारित योजनाओं में केंद्र सरकार सहयोग करे, तो नक्सलवाद बिना गोलियां चलाये खत्म हो सकता है। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन ने न सिर्फ अपनी पार्टी का कलेवर चेंज करने की कोशिश की, बल्कि उसे नये वक्त की जरूरतों के अनुरूप निर्मित भी किया।
बुके नहीं बुक लेने की परंपरा की शुरुआत की
हेमंत सोरेन जब दूसरी दफा झारखंड के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने बुके नहीं बुक देने की जनता से अपील कर झारखंड में ज्ञान की पूजा करने की परंपरा शुरू की। मुख्यमंत्री बने उन्हें करीब तीन महीने ही हुए थे कि झारखंड में कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी। ऐसे में विषम परिस्थितियों के बावजूद उनके प्रयासों से न सिर्फ झारखंड में पहली श्रमिक स्पेशल ट्रेन आयी, बल्कि चप्पल पहननेवाले मजदूरों को हवाई जहाज से लेह-लद्दाख समेत अन्य स्थानों से एयरलिफ्ट कराकर इतिहास रचा। कोरोना से लड़ने के लिए रिम्स में प्लाज्मा थेरेपी की व्यवस्था करायी। ट्विटर के जरिये जरूरतमंदों की मदद की। जो व्यवस्था उन्होंने कायम की, उससे उनकी एक अलग पहचान स्थापित हुई। झारखंड के लोग कहते हैं, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन संभावनाओं के नायक इसलिए हैं, क्योंकि उन्होंने हर बार अपना नायकत्व अपनी भूमिकाओं से साबित किया है। झारखंड आंदोलन को उन्होंने करीब से देखा है। जब पहली दफा वह झारखंड के मुख्यमंत्री बने, तो अपने 14 महीने के कार्यकाल में जो अमिट छाप जनता के दिलो-दिमाग में छोड़ी, उसके बाद भाजपा सरकार के पांच वर्षों के कार्यकाल में हर दिन जनता यह इंतजार करती रही कि कब नेतृत्व हेमंत सोरेन के हाथों में आयेगा और वर्ष 2019 में जनता ने दुबारा जन नायक को सत्ता दी। यह उनके उल्लेखनीय कार्यों की ही ताकत थी कि उन्हें इसी साल जनवरी में पूर्व राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी के हाथों चैंपियन आॅफ चेंज अवार्ड से सम्मानित किया गया।
चुनौतियों को अवसर में बदलने का नाम है हेमंत सोरेन
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