कोरोना महामारी ने पूरे जीवन चक्र को एकदम से बदल कर रख दिया है। जीवन का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जिस पर इस महामारी का असर नहीं पड़ा है। जन्म से लेकर मौत तक और सूर्योदय से लेकर अगली सुबह तक जीवन का हर क्षण इस बीमारी के कारण पैदा हुए तनाव से जूझ रहा है। ऐसे में अब विद्यार्थियों के लिए एक नया तनाव पैदा हो गया है। इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए अगले महीने जेइइ और नीट की परीक्षा आयोजित करने की घोषणा की गयी है। इसको लेकर विद्यार्थी बेहद तनाव में हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे इन परीक्षाओं में शामिल कैसे होंगे। कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच वे परीक्षा केंद्र तक कैसे पहुंचेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने परीक्षा स्थगित करने की विद्यार्थियों की याचिका खारिज कर दी है और नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने परीक्षा का कार्यक्रम घोषित कर दिया है। ऐसे में महामारी, लॉकडाउन, बाढ़ और परीक्षा के तनाव ने विद्यार्थियों को कई तरह के तनाव से घेर लिया है। इसका सीधा असर उनकी प्रतिभा और भविष्य की तैयारियों पर पड़ रहा है। ऐसे में यदि परीक्षाओं के स्थगित किये जाने की मांग की जा रही है, तो उसे अनुचित भी नहीं ठहराया जा सकता है। विद्यार्थियों का कहना है कि यदि परीक्षा को दो महीने के लिए टाल दिया जाता है, तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा। विद्यार्थियों की इसी पीड़ा को रेखांकित करती आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।
चतरा के प्रतापपुर में रहनेवाले विश्वंभर सिंह इन दिनों खासे परेशान हैं। तीन दिन पहले वह अपनी बाइक से रांची आये। उनका बेटा कोटा में कोचिंग करता है। लॉकडाउन शुरू होने के बाद वह किसी तरह अपने घर वापस आ गया, लेकिन अब उसे इस बात की चिंता सता रही है कि एक सितंबर से शुरू हो रही जेइइ की परीक्षा में वह शामिल कैसे होगा। उसका परीक्षा केंद्र रांची में है। विश्वंभर सिंह यही पता करने आये थे कि यहां उनके बेटे के रहने का इंतजाम कैसे होगा। उनकी चिंता उनके एक परिचित के रांची में रहनेवाले मित्र ने दूर कर दी। लड़का उनके घर में रहेगा। लेकिन विश्वंभर सिंह को इस बात की चिंता है कि उनका लड़का रांची तक पहुंचेगा कैसे। बसें नहीं चल रही हैं। टैक्सी करने की हैसियत नहीं है।
यह चिंता अकेले विश्वंभर सिंह की नहीं है। ऐसे हजारों विद्यार्थी और उनके अभिभावकों की है। आइआइटी समेत देश के उत्कृष्ट इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए हर साल आयोजित होनेवाली संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेइइ) में शामिल होना इस साल विद्यार्थियों के लिए बड़ी चुनौती बन गयी है। यह परीक्षा एक से छह सितंबर के बीच होनेवाली है। इसी तरह मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए होनेवाली राष्ट्रीय प्रवेश पात्रता परीक्षा (नीट) 13 सितंबर को होनेवाली है और उसमें शामिल होनेवाले विद्यार्थी भी भारी तनाव में हैं। यह तनाव स्वाभाविक है, क्योंकि कोरोना संकट और लॉकडाउन के अलावा कई अन्य अवरोध हैं, जिनसे पार पाना विद्यार्थियों और अभिभावकों के लिए असंभव दिख रहा है।
विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों की पहली चिंता कोरोना संक्रमण को लेकर है। कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को खतरनाक ढंग से फैल रहे कोरोना संक्रमण के बीच घर से बाहर भेजने के लिए तैयार नहीं होगा। विद्यार्थी भी अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं। उनका सवाल है कि यदि वे संक्रमित हो गये, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। इसके अलावा लॉकडाउन के कारण आवागमन का कोई साधन नहीं है। ऐसे में दूसरे शहर में जाकर परीक्षा देना कितना दुष्कर होगा, इसकी केवल कल्पना की जा सकती है। इन तमाम परिस्थितियों में विद्यार्थियों का यह सवाल स्वाभाविक है कि यदि इन दोनों परीक्षाओं को दो महीने के लिए टाल दिया जाता है, तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा।
जेइइ और नीट की परीक्षाओं का आयोजन राजनीतिक मुद्दा भी बन चुका है। कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दल विद्यार्थियों के हित में इन परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग कर रहे हैं, जबकि राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) इनके आयोजन को लेकर दृढ़ है। सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद उसने साफ कर दिया है कि ये दोनों परीक्षाएं निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही होंगी। एजेंसी ने जेइइ के लिए एडमिट कार्ड भी जारी कर दिया है। विपक्षी दलों के कई नेताओं ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि कोरोना और देश के कई राज्यों में बाढ़ की हालत देखते हुए विद्यार्थियों का इन परीक्षाओं में शामिल होना मुश्किल दिख रहा है। इसलिए इन परीक्षाओं को स्थगित किया जाये। इधर सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर लगातार अभियान चल रहा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इन परीक्षाओं का अभी आयोजन किया जाना इतना जरूरी है। जेइइ की परीक्षा की जिम्मेवारी संभाल रहे आइआइटी दिल्ली के अधिकारियों का कहना है कि यदि दो महीने के लिए परीक्षा स्थगित भी की जाती है, तो कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा। आगे चल कर कुछ छुट्टियों को रद्द कर बेकार हुए समय को पूरा किया जा सकता है। ऐसे में अब गेंद एनटीए के पाले में है। यह सच है कि कोरोना और बाढ़ के कारण बहुत से विद्यार्थियों को परीक्षा केंद्र तक पहुंच पाना लगभग असंभव है। ट्रेन और बसें चल नहीं रही हैं। अभिभावकों की आर्थिक स्थिति पहले से ही दयनीय हो चुकी है। ऐसे में उनके लिए टैक्सी या निजी वाहन का इंतजाम करना बेहद मुश्किल हो रहा है। फिर दूसरे शहर में रहना भी अलग चुनौती है, क्योंकि होटल-लॉज बंद हैं। ऐसे में परीक्षाओं का आयोजन विद्यार्थियों को दोहरे तनाव में झोंकने के समान है। सरकार को इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देना चाहिए। विद्यार्थियों को तनाव से बचाने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। यह सही है कि पढ़ाई का एक पूर्व निर्धारित टाइम टेबल होता है, जिसमें कोई भी बदलाव भविष्य के लिए अच्छा नहीं होता, लेकिन यहां यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि अभी का समय ही अप्रत्याशित है। कोरोना संकट के कारण सब कुछ उलट-पलट गया है। जीवन का लयक्रम ही गड़बड़ा गया है। ऐसे में थोड़ा-थोड़ा एडजस्ट करने से यदि जीवन पटरी पर लौटता है, तो किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। जेइइ-नीट के आयोजन के साथ भी यही बात है। विद्यार्थी रहेंगे, तो परीक्षाएं भी होंगी और कॉलेजों में उनका दाखिला भी होगा। इसलिए सबसे पहला प्रयास विद्यार्थियों को तनावमुक्त करने का होना चाहिए।