लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न राज्यों से घर लौटे प्रवासी श्रमिक अन्य स्वरोजगार के साथ-साथ मधुमक्खी पालन कर आत्मनिर्भरता की राह अपनाएंगे। मधुमक्खी पालन से ना सिर्फ उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता होगी। बल्कि शहद (मधु) के लिए भी बेगूसराय के लोगों को बाहरी कंपनियों के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा। स्थानीय स्तर पर उत्पादित शुद्ध शहद लोगों को सस्ते दाम पर उपलब्ध होगा। प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत अभियान को पूरा करने के लिए गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तहत बेगूसराय के कृषि विज्ञान केंद्र खोदाबंदपुर श्रमिकों को मधुमक्खी पालन के लिए प्रशिक्षित कर रहा है।
पहले चरण 35 लोगों को इसका प्रशिक्षण दिया गया है। इसमें बताया गया कि मधुमक्खी पालन कैसे करें, मधुमक्खी को व्यवसायिक रूप से कैसे अपनाएं एवं मधुमक्खी पालन से रोजगार के क्या-क्या अवसर प्राप्त हो सकते हैं। केंद्र के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉ. सुनीता कुशवाहा ने बताया इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य जिले में बाहर से आए श्रमिकों के लिए स्वरोजगार के अवसर प्रदान करना है। एक व्यक्ति अगर मधुमक्खी पालन शुरू करते हैं तो कम से कम छह लोगों को रोजगार मिलेगा। ग्रामीण उद्योग को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, ग्रामीण समुदायों के सशक्तीकरण के लिए मधुमक्खी पालन में अपार संभावनाएं हैं। मधुमक्खियों की गतिविधियों से आसपास की फसलों और फलों के पेड़ों की उर्वरता बढ़ती है, सरसों, लीची और आम का उत्पादन बढ़ जाता है।
खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार मधुमक्खियां और परागकण वाले अन्य कीट मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो दुनिया की करीब 75 फीसदी खाद्य फसलों को पैदा करते हैं। प्रशिक्षित श्रमिकों से अब कम से कम पांच हजार किलो शहद मिलने की उम्मीद है। शहद लगभग चार सौ रुपये प्रति किलो बिकती है। मधुमक्खियों को एक छत्ते को लगाने के लिए शुरुआती लागत 25 सौ रुपये और मधुमक्खी के लिए खाली बॉक्स की कीमत 15 सौ रुपये है। मधुमक्खी के डब्बों को बनाने के लिए सबसे अच्छी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। आम, नीम और सेमल (सिल्क कॉटन) के पेड़ों की लकड़ी सबसे बेहतर और हर जगह उपलब्ध है। इससे फसल उत्पादन में करीब 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सर्दियों के बाद सरसों के खेतों में रहने वाली मधुमक्खियां सालाना शहद उत्पादन बढ़ाने में मददगार हैं। सर्दियों के मध्य में फूल से मधुमक्खियों को भोजन मिलता है, बाकी समय में अपने घर के पास फल इत्यादि के उत्पादन को भी बढ़ावा दिया है। ग्रामीण इलाकाें में फूलों और फलों की संख्या बहुतायत होती है और यहां प्रदूषण बहुत कम है जो मधुमक्खी पालन के लिए बेहद अनुकूल है।
डॉ कुशवाहा ने बताया कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हुए प्रवासी श्रमिकों ने बड़ी संख्या में मधुमक्खी पालन शुरू करने का निश्चय किया है। कृषि विज्ञान केंद्र फसलों से संबंधित या कृषि संबंधित उद्योग के लिए तकनीकी जानकारी की हर आवश्यकता पूरी करेगा। प्रवासी मो. मुमताज आलम, मंटू कुमार दास, रौशन कुमार, दिनेश कुमार यादव एवं किशन कुमार आदि ने बताया कि लॉकडाउन में जलालत झेलने के बाद वे लोग परदेस से वापस लौटे हैं। अब किसी हालत में परदेस नहीं जाना है, मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण मिल गया है। अब मधुमक्खी पालन से आत्मनिर्भरता की राह अपनाएंगे, सरकार के महत्वाकांक्षी योजना का फायदा लेकर हम सब अब गांव में ही रहकर आर्थिक रूप से समृद्ध बनेंगे।