रांची। राज्य के बहुचर्चित मेनहर्ट नियुक्ति घोटाले में विधायक सरयू राय ने नया खुलासा किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि जिस मेनहर्ट को रांची के सीवरेज ड्रेनेज की डीपीआर बनाने के लिए कंसल्टेंट नियुक्त किया गया, वह असली मेनहर्ट नहीं थी, बल्कि उसके नाम पर भारत में एक संस्था बना कर निविदा डाली गयी। और काम हासिल किया गया। इसकी जांच होनी चाहिए। यदि यह सही है, तो अत्यंत गंभीर बात है। शुक्रवार को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के महानिदेशक नीरज सिन्हा को इस घोटाले के बारे में परिवाद पत्र सौंपने के बाद मीडिया से बातचीत में सरयू राय ने कहा कि मेनहर्ट घोटाले के मुख्य किरदार पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास हैं।
श्री राय ने कहा कि उन्होंने इस घोटाले में रघुवर दास की भूमिका की जांच के लिए एसीबी को परिवाद पत्र सौंपा है। सात पन्नों के परिवाद में कहा गया है कि यह बात भी सामने आ रही है कि मेनहर्ट के नाम से जो निविदा रांची के सीवरेज-ड्रेनेज का डीपीआर तैयार करने के लिए डाली गयी थी, वह असली मेनहर्ट सिंगापुर नहीं थी। इसके लिए भारत में इस नाम की संस्था बनाकर निविदा डाली गयी थी। इसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘लम्हों की खता’ पुस्तक के प्रकाशन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बयान दिया कि इस मामले में एसीबी की तरफ से क्लीन चिट मिल चुकी है। ऐसे में हमने एसीबी से कहा है कि यदि इस मामले में जांच हुई है, तो उसकी रिपोर्ट दी जाये और नहीं हुई है, तो जांच की जाये। चूंकि एसीबी बिना सरकार की अनुमति के जांच नहीं कर सकती, ऐसे में राज्य सरकार से जांच की अनुमति देने का अनुरोध करूंगा।
षड्यंत्र के तहत मेनहर्ट को बहाल किया गया
श्री राय ने कहा कि सीवरेज-ड्रेनेज के कंसल्टेंट के रूप में एक षडयंत्र के तहत मेनहर्ट को बहाल किया गया। इसकी जांच होने से रघुवर दास की इच्छा भी पूरी हो जायेगी। अगर वह जांच में निर्दोष पाये जाते हैं, तो मामला खत्म हो जायेगा और दोषी पाये जाते हैं, तो सजा होगी। परिवाद में श्री राय ने कहा है कि तत्कालीन मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने निगरानी ब्यूरो को मामले की जांच नहीं करने दिया और तकनीकी परीक्षण कोषांग की जांच के आधार पर कार्रवाई भी नहीं होने दी। मेनहर्ट को अवैध रूप से नियुक्त किये जाने के बाद झारखंड सरकार, रांची नगर निगम और मेनहर्ट के बीच जो समझौता हुआ, वह भी त्रुटिपूर्ण था। इस वजह से मेनहर्ट काम अधूरा छोड़कर और पूरा भुगतान लेकर निकल गया। जांच से यह भी पता चलेगा कि इसके कारण सरकारी खजाने पर कितना बोझ पड़ा है। राजकोष से कितना निष्फल व्यय हुआ है और पंद्रह वर्ष का समय बीत जाने पर परियोजना की लागत कितनी बढ़ी है।