चीन और पाकिस्तान मिलकर पिछले पांच सालों से घातक जैविक हथियार तैयार करने में जुटे हुए हैं। कोरोना वायरस के चलते सुर्खियों में आए वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी को इस काम की जिम्मेदारी दी गई है। इस पूरे प्रकरण को चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) की आड़ में अंजाम दिया जा रहा है। क्लाक्सोन ने अपनी रिपोर्ट में इसका दावा किया है।
एंथनी क्लान द्वारा लिखी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, वुहान के वैज्ञानिक 2015 से पाकिस्तान में खतरनाक वायरस पर शोध कर रहे हैं। इस बात का खुलासा तब हुआ जब पिछले महीने चीन और पाकिस्तान संभावित जैव-युद्ध क्षमता का विस्तार करने के लिए तीन साल का एक गुप्त समझौता किया।
खतरनाक वायरसों पर किया गया परीक्षण
वुहान और पाकिस्तानी वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे शोध की रिपोर्ट एक स्टडी पेपर में भी छपी है। इसमें ‘जूनोटिक पैथाजंस (जानवरों से इंसानों में आने वाले वायरस)’ की पहचान और लक्षणों के बारे में बताया गया है।
रिसर्च में वेस्ट नील वायरस, मर्स-कोरोनावायरस, क्रीमिया-कॉन्गो हेमोरजिक फीवर वायरस, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम वायरस और चिकनगुनिया पर भी प्रयोग किए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में इन बीमारियों के लिए कोई भी वैक्सीन नहीं है और इन्हें दुनिया के कुछ सबसे संक्रामक और खतरनाक वायरसों में गिना जाता है।
सीपीईसी की आड़ में किया गया परीक्षण
अध्ययनों में से एक ने वुहान के राष्ट्रीय वायरस संसाधन केंद्र को वायरस संक्रमित सेल्स मुहैया कराने के लिए शुक्रिया भी कहा था। इन पांचों अध्ययनों को चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) की आड़ में अंजाम दिया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक रिसर्च के लिए हजारों पाकिस्तानी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का खून का नमूना लिया गया। इनमें वे लोग शामिल थे जो जानवरों के साथ काम करते थे और दूरदराज के इलाकों में रहते थे।
सीपीईसी चीन की विशाल बीआरआई अवसंरचना परियोजना का प्रमुख घटक है, जिसकी घोषणा 2015 में की गई थी। चीनी औपनिवेशिक विस्तार के रूप में बीआरआई की आलोचना की गई थी और कहा गया कि बीजिंग इसकी मदद से कम विकसित देशों के ऊपर कर्ज का दबाव बढ़ा रहा है। कर्ज न देने की स्थिति में होने पर वह इन देशों की संपत्तियों पर कब्जा कर रहा है।