रांची। झारखंड कांग्रेस ने कहा है कि नई शिक्षा नीति को घोषित करने के पहले न परामर्श, न चर्चा, न विचार-विमर्श और न पारदर्शिता का पालन किया गया। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के बीच ही अचानक घोषित नयी नीति सिर्फ शब्दों, चमक-दमक, दिखावे और आडंबर के आवरण तक सीमित है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आलोक दुबे और राजेश गुप्ता ने गुरुवार को कहा कि जब दुनिया में सबसे अधिक बच्चे भारत में है। जिसकी तादाद करीब 50 करोड़ है। पांच वर्ष से लेकर 24 वर्ष तक युवाओं को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने बिना कोई ठोस रणनीति बनाये सिर्फ भाजपा-आरएसएस के एजेंडे पर आगे बढ़ने से आने वाले समय में देश की चरमराई अर्थव्यवस्था की तरह ही शैक्षणिक व्यवस्था का हाल हो जाएगा। प्रवक्ताओं ने कहा कि एक ओर जहां पिछले छह वर्षां के दौरान करोड़ों लोग बेरोजगार हुए है। देश की अर्थव्यवस्था बेपटरी हो गयी है। बिना सोचे-समझे लागू देशव्यापी लॉकडाउन के कारण उद्योग धंधे भी चौपट हो गये और अब बिना कोई परामर्श, चर्चा और विचार-विमर्श के संघ के एजेंडा के तहत नई शिक्षा नीति की घोषणा कर दी गयी है। आने वाले समय में परिणाम देश को भुगतना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि अपने आप में यह बड़ा सवाल है कि शिक्षा नीति 2020 की घोषणा कोरोना महामारी के संकट के बीचों-बीच क्यों की गयी और वो भी तब जब सभी शैक्षणिक संस्थान बंद पड़े है। प्रवक्ताओं ने बताया कि एक रिपोर्ट के अनुसार स्कूल जाने वाले बच्चों पर प्रति दिन 2.05 रुपये और उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों के लिए सिर्फ 28.79 रुपये यानी महीने में स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए करीब 71 रुपये और उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों के लिए लगभग 861रुपये खर्च हो रहे है। ऐसे में सिर्फ संघ के एजेंडे के तहत शिक्षा नीति में बदलाव से देश की शैक्षणिक स्थिति में सुधार नहीं हो सकता है। इसलिए केंद्र सरकार को जीडीपी का कम से कम छह प्रतिशत खर्च शिक्षा पर करना जरूरी है, तभी स्थिति में सुधार संभव है। प्रवक्ताओं ने कहा कि शिक्षा नीति 2020 का मुख्य केंद्र ऑनलाइन शिक्षा है, जबकि हकीकत यह है कि देश के केवल 10 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर है। वहीं इंटरनेट कनेक्शन केवल चार प्रतिशत स्कूलों में है। इससे खुद ऑनलाइन शिक्षा के तर्क पर सवालिया निशान खड़ा हो जाता है। गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों में कंप्यूटर-इंटरनेट नहीं उपलब्ध होने से गरीब और वंचित विद्यार्थी अलग-थलग पड़ जाएंगे, जिससे देश में एक नया डिटिल डिवाईड पैदा होगा। हाशिये पर रहने वाले वर्ग के 70 प्रतिशत से अधिक बच्चे पूरी तरह ऑनलाइन शिक्षा के दायरे से बाहर हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित वर्गां को शामिल करने या लाभ देने के बारे किसी प्रवधान का उल्लेख नहीं है। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति 2020 मानवीय विकास, ज्ञान प्राप्ति, क्रिटिकल थिंकिंग एवं जिज्ञासा की भावना के हर पहलू पर फेल साबित हुई है। शिक्षा नीति 2020 शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देने वाली है। इससे सरकारी अनुदान राशि में भारी कमी आएगी, फंड में कटौती होगी, फीस कई गुना बढ़ेगी तथा शिक्षा और महंगी हो जाएगी। कई एक्जिट पॉइंट्स के साथ शिक्षा का निजीकरण सरकार के दावे के विपरीत ड्रॉप आउट रेट बढ़ाएगा। सरकारी संस्थानों के बंद होने एवं अनियंत्रित निजीकरण पर अधिक निर्भरता के कारण उच्च शिक्षा मध्यम वर्ग और गरीबों की पहुंच से बाहर हो जाएगी। नई शिक्षा नीति में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों के संचालन की व्यवस्था अपने आप में चिंताजनक है। ऐसे मनोनीत बोर्ड ऑफ गवर्नर सभी विश्वविद्यालयों तथा शिक्षण संस्थानों में निर्वाचित प्रतिनिधियों और प्रजातांत्रिक तरीके से चयनित लोगों की जगह ले लेंगे तथा संस्थानों पर कुछ लोगों का कब्जा हो जाएगा। सत्ताधारी दल की विचारधारा के प्रति वफादार लोगों की विवादास्पद नियुक्तियों के साथ संस्थानों में सत्ता का केंद्रीकरण होगा जो विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षा के संस्थानों के कामकाज में बाधा डालेगा तथा शिक्षा का अनावश्यक राजनीतिकरण होगा।
प्रवक्ताओं ने कहा कि हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया व अनुदान, आर्थिक संशोधनों, मानकों व मान्यता के लिए बनाए जा रहे चार वर्टिकल्स की स्थापना के बाद देश में एक सर्वाधिक केंद्रीकरण वाले संस्थान का गठन होगा। सच्चाई यह है कि इससे उच्च शिक्षा के स्वतंत्र विचारधारा वाले बौद्धिक विकास में बाधा उत्पन्न हो जाएगी।