लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचार और उनकी परंपराएं उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 100 वर्ष पहले थीं। शनिवार को केंदीय गृह मंत्री अमित शाह ने तिलक की 100वीं पुण्यतिथि पर आयोजित ‘लोकमान्य तिलक: स्वराज से आत्मनिर्भर भारत’ विषय पर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा, ‘लोकमान्य तिलक का व्यक्तित्व अपने आप में बहुआयामी था। ढेर सारी उपलब्धियां होने के बावजूद कोई व्यक्ति जमीन से जुड़ा कैसे रह सकता है, सादगी को कैसे अपने जीवन का अंग बना सकता है, अगर वो देखना है तो तिलक के जीवन से ही हम देख सकते हैं।’
गृहमंत्री ने कहा, ‘आज लोकमान्य तिलक के पूरे जीवन का लेखा-जोखा देखकर इतना जरूर कह सकते हैं कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को भारतीय बनाने का अगर किसी ने काम किया तो वो लोकमान्य तिलक ने किया। स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा। ये वाक्य जब तक देश की आजादी का इतिहास रहेगा, तब तक स्वर्णिम अक्षरों में लोकमान्य तिलक के साथ जुड़ा रहेगा।’
शाह ने यह भी कहा कि तिलक का ये विचार और दृष्टिकोण था कि स्वराज का आधार ही हमारी संस्कृति और पुरातन उपलब्धियां होनी चाहिए। भविष्य की जो चुनौतियां हैं उन्हें पार करने के लिए दुनिया में जो कुछ भी अच्छा है, उसको भी हमें खुले मन से स्वीकार करना चाहिए।
गृहमंत्री ने कहा कि मरण और स्मरण इन दो शब्दों में आधे शब्द का ही अंतर है। मरण- मृत्यु हो जाने को कहते हैं। स्मरण- कोई जीवन ऐसा जीता है कि आधा ‘स्’ लग जाता है, जो मरण के बाद लोगों के स्मरण में चिरकाल तक जीता है। मुझे लगता है कि ये आधा ‘स्’ जोड़ने के लिए पूरा जीवन सिद्धांतों पर चलना पड़ता है।
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