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    Home»विशेष»आखिर किधर की राजनीति कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार?
    विशेष

    आखिर किधर की राजनीति कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार?

    azad sipahiBy azad sipahiAugust 4, 2021No Comments6 Mins Read
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    सियासत : नीतीश के बदले-बदले तेवर पर खड़े हो रहे सवाल

    बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तेवर इन दिनों बदले-बदले से दिख रहे हैं। बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार तो चला रहे, लेकिन केंद्र की भाजपानीत सरकार के खिलाफत करते भी दिख रहे हैं। नीतीश कुमार एक के बाद एक कई मुद्दों पर केंद्र सरकार की राय से उलट बयान दे रहे। इतना ही नहीं, विपक्षी नेता के साथ भी सुर में सुर मिला रहे हैं। जातिगत जनगणना और किसान आंदोलन में नीतीश का स्टैंड भाजपा से उलटा है। वहीं पेगासस मामले में विपक्षी के साथ सुर मिला रहे। राजनीतिक गलियारे में सवाल घूम रहा है कि आखिर नीतीश की राजनीति किधर जा रही है? क्या यह सब 2024 की तैयारी तो नहीं है? कहीं भविष्य के लिए वैकल्पिक जगह की तलाश तो नहीं है? क्योंकि राजनीति में कुछ भी संभव है। कोई न ही हमेशा के लिए दुश्मन होता है और न ही कोई हमेशा के लिए दोस्त। वैसे भी नीतीश राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं। वह वक्त की नजाकत को अच्छी तरह समझते हैं। इतिहास गवाह है कि वह इसी के अनुसार कदम भी उठाते रहे हैं। इसलिए जहां नीतीश के बयान से एनडीए के भीतर लगातार असमंजस की स्थिति बनी हुई है। वहीं राजनीतिक गलियारे की तपिश बढ़ गयी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान और उनके बदले तेवर के मायने को खंगालती आजाद सिपाही के राजनीतिक संपादक प्रशांत झा की रिपोर्ट।

    राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि दो मुख्यमंत्रियों का दिल दिल्ली के लिए मचल रहा है। पहले नंबर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दूसरे नंबर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। इसलिए दोनों दिल्ली की दौर में लग गये हैं। पिछले हफ्ते ममता बनर्जी दिल्ली आयीं। कांग्रेस पार्टी और कई अन्य विपक्षी दलों के नेताओं से मिलीं। उनका लक्ष्य साफ है। इसे उन्होंने जता भी दिया है। लोकसभा के 2024 चुनाव में सभी विपक्षी दलों को एकजुट कर भाजपा को पराजित करना। बंगाल चुनाव जीतने के बाद वह खुल कर इस मुहिम में लग गयी हैं। हालांकि ममता ने विपक्ष के नेतृत्व के सवाल पर कहा कि यह बाद में देखा जायेगा।

    नेतृत्व का चयन सर्वसम्मति से होगा। मेरा कोई नेतृत्व का इरादा नहीं है। मैं तो कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही। उधर, नीतीश का लक्ष्य अभी साफ नहीं है। जिस तरह की बयानबाजी हो रही और जो घटनाक्रम दिख रहे, उससे कयास ही लगाये जा रहे हैं। पेगासस मामले पर विपक्ष लगातार सरकार पर आक्रामक है। विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा है। विपक्ष के हो-हंगामे और शोर-शराबे में नीतीश कुमार का भी स्वर मिल गया है। नीतीश ने इस मामले की जांच कराये जाने और संसद में इस पर चर्चा होने की बात कही है। इससे पहले नीतीश कुमार किसान आंदोलन का भी समर्थन कर चुके हैं। एनडीए का मुख्य घटक दल जदयू केंद्र सरकार की राय के विपरीत जाति जनगणना कराने पर भी जोर दे रहा है। इसके अलावा जदयू महासचिव केसी त्यागी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री सह लोकदल के अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला से मिलना। इसके बाद नीतीश का चौटाला से मिलना। इस मुलाकात के बाद चौटाला का तीसरे मोर्चे की बात करना। जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा द्वारा नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल बताना। ये तमाम घटनाक्रम किसी और बात की तरफ इशारा कर रहे। नीतीश का पूर्व का इतिहास भी कुछ अलग है। इन कारणों से राजनीतिक क्षेत्र के लोगों को मौजूदा परिस्थिति आसानी से हजम नहीं हो पा रही।

    नीतीश बदलते रहे हैं घर
    नीतीश कुमार का घर बदलने का इतिहास पुराना रहा है। उन्होंने 2010 का बिहार विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन करके लड़ा। जब यह लगने लगा कि भाजपा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का दावेदार बनानेवाली है, तो वह भाजपा का साथ छोड़ कर अपने पुराने मित्र लालू प्रसाद यादव के शरण में चले गये। राजद-कांग्रेस गठबंधन के समर्थन से अल्पमत की सरकार चलाते रहे। 2015 का चुनाव लालू प्रसाद के महागठबंधन का हिस्सा बन कर लड़े। 2017 में महागठबंधन को टाटा बाय-बाय करके फिर से भाजपा के साथ जुड़ गये। इस समय उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कोई परहेज भी नहीं रहा। उन्हें जनादेश से कोई लेना देना भी नहीं है। नीतीश 2020 का चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ा। जदयू की सीटों के भारी गिरावट आयी।

    जदयू 115 सीटों पर लड़ने के बाद केवल 43 सीटों पर सिमट गयी। भाजपा ने उन्हें फिर भी मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश की तो नीतीश कुमार ने पद ग्रहण करने से मना भी नहीं किया।

    पद की लालसा से इनकार नहीं

    कुशवाहा के बयान पर नीतीश ने कहा कि हममें कहां हैं पीएम मैटेरियल, हमारी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। पर एक हकीकत है, जिसे कोई इनकार नहीं कर सकता है। राजनीति में सत्ता और कुर्सी के मोह से कोई राजनेता नहीं बचा है। नीतीश इससे अछूते हैं, यह सौ फीसदी सही तो नहीं ही हो सकता है। भले ही वह दिखाने की लाख कोशिश करें कि उन्हें पद का लालच नहीं है। अगर ऐसा रहता तो नौ महीने बाद ही जीतन राम मांझी को कुर्सी से हटा कर फिर से मुख्यमंत्री नहीं बन जाते। अगर ऐसा रहता तो वह जनादेश को देखते हुए भाजपा के मुख्यमंत्री बनाने के प्रस्ताव को ठुकरा सकते थे। ऐसा कभी भी उन्होंने नहीं किया। देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना हर राजनीतिज्ञ में होना लाजमी है।

    अगर नीतीश कुमार में यह लालसा है तो इसे गलत भी नहीं कहा जा सकता है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा भी है कि नीतीश की प्रधानमंत्री बनने की लालसा कोई नयी नहीं है। नीतीश की राजनीतिक महत्वकांक्षा सबके सामने समय-समय पर प्रकट भी होती रहती है। नीतीश कुमार के पुराने इतिहास को देखते हुए यह तालठोक कर नहीं कहा जा सकता है कि 2024 तक नीतीश कुमार जनादेश का पालन करते हुए भाजपा के साथ ही रहेंगे। अब इस बार उनकी यह लालसा कहां जा कर रुकती है? तीसरे मोर्चे की सवारी करते हैं या नहीं? यह तो आने वाला वक्त ही बता पायेगा। मगर जो राजनीतिक हलचल सामने हो रहा है, वह इतना भी सरल और सामान्य भी नहीं ही दिख रहा।

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