आत्मनिर्भर भारत : 23 हजार करोड़ की लागत आयी है स्वदेशी विक्रांत को बनाने में
एक समय था, जब हम सैन्य मामलों पर पूरी तरह समुद्र पार के देशों पर निर्भर थे। हमारी मजबूरी थी कि हम कभी अमेरिका की, तो कभी ब्रिटेन की, कभी सोवियत रूस की तो कभी अन्य देशों की खुशामद करें। सैन्य उपकरणों के लिए उनके नखरे भी सहने पड़ते थे। गाहे-बगाहे वे हम पर आंखें भी तरेरते थे। इन उपकरणों की खरीद में कमीशन के भी खूब आरोप लगते थे। कई बार घटिया क्वालिटी की भी बात सामने आयी थी। आज के पहले हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हम भी सैन्य मामलों में कभी आत्मनिर्भर बन पायेंगे। लेकिन आज यह सिर्फ सपना ही नहीं, अब धीरे-धीरे हकीकत बन रहा है। आज का भारत बदल चुका है। हमारे वैज्ञानिकों-इंजीनियरों ने स्वदेशी विक्रांत बना कर इतिहास रच दिया है। यह विक्रांत समुद्र में कुलांचे मारने लगा है। देश का सीना गर्व आधुनिकता के मामले में उसकी कोई शानी नहीं। स्वदेशी विक्रांत की खासियत के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह ।
दुश्मनों के दांत खट्टे करने और होश उड़ाने में सक्षम
पाकिस्तान तो क्या चीन भी समुद्र के रास्ते अब आंख दिखाने के काबिल नहीं
भारत का समुद्री इतिहास काफी समृद्ध और गौरवशाली रहा है। देश के इस समुद्री और सैन्य इतिहास का गौरव बढ़ाने में नौसेना के पोतों का अहम योगदान रहा है। जब भारतीय नौसेना के जहाजों के योगदान को याद किया जाता है, तो उनमें एक नाम आइएनएस (इंडियन नेवल शिप) विक्रांत का नाम शीर्ष पर आता है। साल 1961 में विमान वाहक पोत को आइएनएस विजयलक्ष्मी पंडित के नाम से सेवा में शामिल किया गया था। बाद में इसका नाम विक्रांत रखा गया, जिसका अर्थ अपराजित और साहसी होता है।
इस जहाज का निर्माण ब्रिटेन के विकर्स-आर्मस्ट्रॉंग शिपयार्ड पर हुआ था। शुरू में इसका नाम एचएमएस (हर मजेस्ट शिप) हर्कुलस था। यह ब्रिटेन के मजेस्टिक क्लास का पोत था, जिसे साल 1945 में ब्रिटिश नौसेना की सेवा में शामिल किया गया था। जहाज को सक्रिय सैन्य अभियान में तैनात ही किया जाता कि उससे पहले ही दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हो गया। उसके बाद नौसेना की सक्रिय ड्यूटी से इस जहाज को हटा दिया गया और फिर साल 1957 में भारतीय नौसेना को बेच दिया गया। आयरिश हारलैंड और वोल्फ शिपयार्ड में उसका जीर्णोद्धार किया गया, ताकि भारतीय नौसेना की जरूरत के अनुरूप जहाज को ढाला जा सके। 4 मार्च, 1961 को इसको भारतीय नौसेना में शामिल किया गया।
यह वही आइएनएस विक्रांत था, जिसने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये थे। उसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ था। विक्रांत के कारण भारत का समुद्र में दबदबा बढ़ गया था। यह वही आइएनएस विक्रांत था, जिसने 1971 की जंग में पाकिस्तान की हार में बड़ी भूमिका निभायी थी। यह वही विक्रांत था, जिस पर से दर्जनों विमान उड़ान भर सकते थे, हेलीकॉप्टर लैंड कर सकते थे। भारतीय नौसेना ने आइएनएस विक्रांत के जरीये पाकिस्तान पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया था। हालांकि इस पोत के एक बॉयलर्स में कुछ समस्या थी और सीमित रफ्तार में इसको काम करना पड़ता था, फिर भी 1971 में भारत-पाक युद्ध में इस विमान वाहक पोत के कारण पाकिस्तान के पसीने छूट गये थे। आइएनएस विक्रांत के नाम से ही पाकिस्तान के मन में इतना खौफ बस चुका था कि वह किसी भी हाल में इस विमान वाहक पोत को नष्ट करना चाहता था। 1971 के युद्ध के दौरान पाक की ओर से पनडुब्बी पीएनएस गाजी को इस्तेमाल करने का फैसला किया गया। आइएनएस विक्रांत को यदि क्षति पहुंचती, तो पाक सेना पर भारतीय सेना ने इस विमान वाहक पोत के जरिये जो मनोवैज्ञानिक खौफ पैदा किया था, वह खत्म हो जाता। भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान को चकमा दिया और आइएनएस राजपूत को आइएनएस विक्रांत बना कर पेश किया। जब पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी ने आइएनएस राजपूत पर विक्रांत समझ कर हमाल किया, तो आइएनएस राजपूत ने गाजी को तबाह कर दिया था।
ऊपर तो उस विक्रांत की बात हुई, जिसे ब्रिटेन ने 1945 में बनाया था और 1957 में भारत के हाथों बेच दिया गया था, जिसे भारत ने 1961 में अपनी सैन्य शक्ति में शामिल किया था। अब हम बात कर रहे हैं भारत के पहले स्वदेशी विमान वाहक पोत की। इसका नाम है आएसी-पी 71 विक्रांत। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की सोच को सामने रखा, तो उसके पीछे नये भारत की नयी तस्वीर छिपी थी। मेक इन इंडिया ये सिर्फ मार्का ही नहीं, यह भारत की मेहनत और काबिलियत की पहचान भी है। आत्मनिर्भरता की क्या ताकत होती है, इसकी मिसाल देश के पहले विमान वाहक युद्धपोत आइएसी पी 71 विक्रांत है।
भारत के लिए सचमुच में वह गौरव का क्षण था, जब देश के पहले स्वदेशी विमान वाहक (आइएसी) विक्रांत ने पांच दिवसीय अपनी पहली समुद्री यात्रा रविवार 8 अगस्त 2021 को सफलतापूर्वक पूरी कर ली और इस 40 हजार टन वजनी युद्धपोत की प्रमुख प्रणालियों का प्रदर्शन संतोषजनक पाया गया। दक्षिणी नौसेना कमान के फ्लैग आॅफिसर कमांडिंग-इन-चीफ वाइस एडमिरल ए के चावला ने देश के पहले विमान वाहक युद्धपोत आइएसी पी 71 विक्रांत के बारे में कहते हैं कि पांच दिवसीय परीक्षण देश के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण का एक ज्वलंत उदाहरण है।
आइएनएस विक्रांत के गौरवशाली इतिहास के कारण ही स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर का नामकरण भी विक्रांत के नाम पर ही किया गया है। आइएनएस ‘विक्रांत’ ने 1971 युद्ध में निर्णायक भूमिका निभायी थी। यह अब रिटायर हो चुका है। अब स्वदेशी युद्धपोत का नाम ‘आइएसी पी 71 ‘विक्रांत’ रखा गया है। आइएसी का फुल फॉर्म होता है इंडिजीनियस एयरक्राफ्ट करियर। जब कोई चीज अपने ही देश में निर्मित हो, उसे इंडिजीनियस कहते हैं। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि जब पिछले दिनों हमने आइएसी विक्रांत को समुद्र के सीने पर सिकंदर की तरह चलते देखा, तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया। विक्रांत आज आत्मनिर्भर भारत का सबसे विशालकाय प्रतीक बन चुका है। इसकी 76% सामाग्री इंडिजीनियस है।
रक्षा मंत्रालय कार्यालय ने भी ट्वीट कर बताया था कि स्वदेशी विमान वाहक आइएसी पी 71 विक्रांत के समुद्री परीक्षणों की शुरूआत हो चुकी है। ट्वीट में कहा गया है कि एयरक्राफ्ट कैरियर का स्वदेशी निर्माण ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया इनिशिएटिव’ के लिए देश की खोज में एक जबरदस्त उदाहरण है।
नौसेना ने इसे देश के लिए ‘गौरवान्वित करनेवाला और ऐतिहासिक’ दिन बताया है। नौसेना ने कहा है, ‘भारत उन चुनिंदा देशों में शुमार हो गया है, जिसके पास स्वदेश में डिजाइन करने, निर्माण करने और अत्याधुनिक विमान वाहक जहाज तैयार करने की विशिष्ट क्षमता है। आपको बता दें कि वर्तमान में केवल पांंच या छह देशों के पास विमान वाहक पोत बनाने की क्षमता है। भारत अब इस विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है।
करीब 23 हजार करोड़ रुपये की लागत से बना है विक्रांत
भारत का नया स्वदेशी युद्धपोत आइएसी पी71 ‘विक्रांत’ लगभग 23 हजार करोड़ की लागत से बना है। यह 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है। इसकी रफ़्तार 30 समुद्री मील लगभग 55 किमी प्रति घंटा है और यह चार गैस टर्बाइनों द्वारा संचालित होगा। इसकी सहन शक्ति 18 समुद्री मील (32 किमी प्रति घंटे) की गति से 7,500 समुद्री मील है। मतलब यह एक बार में 7500 समुद्री मील की दूरी तय कर सकता है। इसमें 14 फ्लोर हैं, जिसमें 1700 से भी अधिक नौसैनिक तैनात किये जा सकते हैं। इसका निर्माण कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है। इसमें 30 विमानों का एक वायु घटक है, जिसमें स्वदेशी उन्नत हल्के हेलीकाप्टरों के अलावा मिग-29 के लड़ाकू जेट, कामोव-31 हवाई पूर्व चेतावनी हेलीकॉप्टर और जल्द ही शामिल होनेवाले एमएच-60 आर बहु-भूमिका वाले हेलीकॉप्टर उड़ान भर सकेंगे। इसमें 2,300 से अधिक डिब्बे हैं, जिन्हें चालक दल के लगभग 1,700 लोगों के लिए डिजाइन किया गया है। इनमें महिला अधिकारियों के लिए विशेष केबन भी शामिल है। यह लंबी दूरी के साथ साथ वायु सेना की शक्ति को प्रक्षेपित करने के साथ एक अतुलनीय सैन्य उपकरण के रूप में भी कार्य करेगा, जिसमें हवाई अवरोध, सतही युद्ध, आक्रामक और रक्षात्मक काउंटर-एयर, हवाई पनडुब्बी रोधी युद्ध तथा हवाई हमले के पूर्व चेतावनी शामिल है। इसमें विमान संचालन को नियंत्रित करने के लिए रनवे की एक जोड़ी और ‘शॉर्ट टेक आॅफ अरेस्ट रिकवरी’ सिस्टम है। पोत में दो आॅपरेशन थिएटर (ओटी) के साथ पूरी तरह से क्रियाशील चिकित्सकीय परिसर है। पोत पर कम से कम 2,000 कर्मियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक रसोई है। इसे बनाने में 550 से ज्यादा भारतीय कंपनियों को काम मिला है और करीब 40 हजार लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार भी।
यह विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में युद्ध और समुद्री नियंत्रण क्षमता को मजबूत करेगा। फिलहाल भारत के पास अभी सिर्फ एक विमान वाहक पोत आइएनएस विक्रमादित्य है। वर्ष 2015 से नौसेना देश के लिए एक तीसरे विमान वाहक पोत बनाने की मंजूरी मांग रही है, जिसे अगर मंजूरी मिल जाती है, तो यह भारत का दूसरा स्वदेशी विमान वाहक आइएसी 2 बन जायेगा। आइएनएस विशाल नाम से प्रस्तावित यह वाहक 65,000 टन का विशाल पोत है, जो आइएसी-1 और आइएनएस विक्रमादित्य से काफी बड़ा है।