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    Home»विशेष»सोनिया और राहुल को कठघरे में खड़ा कर गये आजाद
    विशेष

    सोनिया और राहुल को कठघरे में खड़ा कर गये आजाद

    azad sipahiBy azad sipahiAugust 28, 2022No Comments8 Mins Read
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    • आरोपों की झड़ी : पहले मनमोहन सरकार और अब पार्टी भी चल रही है रिमोट कंट्रोल से
    • सोनिया नाम मात्र की अध्यक्ष, बड़े फैसले राहुल गांधी ही लेते हैं या उनके सिक्योरिटी गार्ड अथवा निजी सहायक

    कांग्रेस के एक और कद्दावर नेता ने पार्टी को अलविदा कह दिया है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से पूर्ण रूप से मुक्ति पा ली है। हाल ही में गुलाम नबी आजाद ने पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी का आॅफर भी ठुकरा दिया था। आजाद को केंद्र शासित प्रदेश में पार्टी की प्रचार समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया था, लेकिन आजाद ने प्रस्ताव को नकार दिया। उसके बाद से ही उनकी तरफ से किसी बड़े कदम का अंदेशा होने लगा था। गुलाम नबी आजाद ने पार्टी छोड़ने के साथ ही कांग्रेस पर तगड़ा हमला बोला है। खासकर राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर। पांच पेज के अपने इस्तीफे में आजाद ने कांग्रेस की कार्यशैली को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इसमें उन्होंने मनमोहन सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलाने की बात स्वीकारी है। वही रिमोट अब पार्टी में भी काम कर रहा है। यानी कांग्रेस का रिमोट कंट्रोल मॉडल आज भी पार्टी पर हावी है। सोनिया नाम मात्र की अध्यक्ष हैं, बड़े फैसले राहुल गांधी ही लेते हैं या उनके सिक्योरिटी गार्ड अथवा निजी सहायक। यह हमला राहुल गांधी की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है कि जो देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए हैं, उनके फैसलों में सिक्योरिटी गार्ड की भी भागीदारी होती है। जम्मू-कश्मीर में जल्द ही चुनाव होने जा रहा हैं, और इस बार का चुनाव भी ऐतिहासिक होनेवाला है। कश्मीर के चुनावी इतिहास में अब पहली बार गैर कश्मीरी भी वोट डालेंगे। गुलाम नबी आजाद ने एलान किया है कि वह अपनी नयी पार्टी बनायेंगे। आजाद के कांग्रेस छोड़ने, उन पर कीचड़ उछालने, अपनी नयी पार्टी बनाने और उनके इस्तीफे में बयां दर्द और खुलासे के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    बकौल गुलाम नबी, मैंने 70 के दशक के मध्य में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की थी। यह वह दौर था, जब जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को अछूत माना जाता था। 8 अगस्त 1953 को शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के बाद मुश्किल भरा इतिहास शुरू हुआ था। उस वक्त वहां राजनीतिक धुंधलापन था। कांग्रेस को अलविदा कहते हुए पांच पेज के खत में गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से बिछुड़ने का दर्द बयां किया है।

    उन्होंने कहा है कि जिस दौर में कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर में पसंद नहीं किया जाता था, तब उन्होंने सियासी जोखिम उठायी। आइए आपको बताते हैं कि शेख अब्दुल्ला की गिरफ्तारी और आजादी के बाद से 70 के दशक का वह इतिहास, जिसका जिक्र आजाद ने अपनी चिट्ठी में किया है। पहले जानते हैं गुलाम नबी आजाद के खत के उस हिस्से के बारे में, जिसमें उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने के दौर को याद किया है।
    गुलाब नबी आजाद ने क्या लिखा है?

    गुलाम नबी आजाद ने खत में लिखा है, मैं 1970 के दशक के मध्य में जम्मू और कश्मीर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुआ। जब 8 अगस्त 1953 के बाद से राज्य के खराब हालात को देखते हुए पार्टी के साथ जुड़ना एक तरह से वर्जित था। इन सबके बावजूद छात्र जीवन से महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और हमारे स्वतंत्रता संग्राम की अन्य प्रमुख हस्तियों के आदर्शों से मैं प्रेरित हुआ। स्वर्गीय संजय गांधी के व्यक्तिगत आग्रह पर मैं 1975-76 में जम्मू और कश्मीर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभाने के लिए सहमत हो गया था। कश्मीर विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद 1973-1975 तक ब्लॉक महासचिव के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सेवा कर रहा था।

    राहुल गांधी पर साधा निशाना
    आजाद ने सोनिया गांधी को लिखे पत्र में कहा है कि आपने कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकारों के गठन में अहम भूमिका निभायी थी। हालांकि, इस सफलता की एक बड़ी वजह यह थी कि आपने वरिष्ठ नेताओं की एक परिषद बनायी थी, जो अहम फैसलों पर विचार करती थी। आजाद ने लिखा कि दुर्भाग्य से राहुल गांधी की राजनीति में एंट्री और जनवरी 2013 के बाद, जब आपने उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया, तो उन्होंने पार्टी का पूरा परामर्श तंत्र ध्वस्त कर दिया। सारे वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को हाशिये पर कर दिया गया और गैर अनुभवी और चाटुकारों और पट्ठों को पार्टी के कामकाज का जिम्मा दे दिया गया।

    अध्यादेश को फाड़ना सबसे अपरिपक्व था
    गुलाम नबी आजाद ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए पत्र में लिखा कि उनकी अपरिपक्वता के सबसे ज्वलंत उदाहरणों में से एक मीडिया के सामने सरकारी अध्यादेश को फाड़ना था। उक्त अध्यादेश को कांग्रेस कोर ग्रुप में शामिल किया गया था और बाद में सर्वसम्मति से भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने पारित किया था, जिसे राष्ट्रपति ने भी विधिवत अनुमोदित किया था। इस बचकाना व्यवहार ने प्रधानमंत्री और भारत सरकार के अधिकार को पूरी तरह से विकृत कर दिया।

    पहले कांग्रेस जोड़ो यात्रा निकालें
    कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे पांच पन्नों के त्याग पत्र में आजाद ने कहा कि वह भारी मन से यह कदम उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा से पहले कांग्रेस जोड़ो यात्रा निकाली जानी चाहिए थी। आजाद ने कहा कि पार्टी में किसी भी स्तर पर चुनाव नहीं हुए। कांग्रेस लड़ने की अपनी इच्छाशक्ति और क्षमता खो चुकी है।

    नेताओं को नीचा दिखाया
    आजाद ने लिखा है कि कांग्रेस में हालात अब ऐसी स्थिति पर पहुंच गये हैं, जहां से वापस नहीं आया जा सकता। पार्टी की कमजोरियों पर ध्यान दिलाने के लिए पत्र लिखने वाले 23 नेताओं को अपशब्द कहे गये, उन्हें अपमानित किया गया, नीचा दिखाया गया। कांग्रेस छोड़ने से पहले गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की प्रचार समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। यह पद उन्हें कुछ घंटे पहले ही दिया गया था।

    जम्मू-कश्मीर की राजनीति में भूचाल
    दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे से जम्मू-कश्मीर की राजनीति में भूचाल आ गया है। आजाद के प्रदेश के समर्थकों की शनिवार को दिल्ली में बैठक प्रस्तावित है। अगले महीने सितंबर में उनके जम्मू-कश्मीर आने की संभावना है। आजाद नयी पार्टी के गठन की घोषणा कर सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो सबसे अधिक प्रभाव कश्मीर आधारित पार्टियों पर पड़ने के आसार हैं। मुस्लिम वोट बैंक वाली नेकां, पीडीपी, अपनी पार्टी का वोट बैंक खिसक सकता है। इसका पूरे प्रदेश में भाजपा को फायदा मिलने की उम्मीद है। कांग्रेस को तो स्वाभाविक रूप से नुकसान झेलना पड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आजाद यदि नयी पार्टी बनाते हैं तो मुस्लिम मतों का विभाजन होगा। इसका असर न केवल प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी असर दिखेगा। कश्मीर केंद्रित पार्टियों नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, अपनी पार्टी आदि को आजाद की पार्टी से चुनौती मिल सकती है, क्योंकि इसमें शामिल होने वाले पूर्व विधायक तथा प्रमुख नेता इन्हीं सब पार्टियों के होंगे। ऐसे में मुस्लिम मतों का विभाजन होना तय है। मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी का सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है, क्योंकि जितना मुस्लिम वोट बंटेगा, उतनी ही भाजपा की स्थिति मजबूत होगी। राजनीति के जानकारों का मानना है कि आजाद की नयी पार्टी को सीटें भले ही कम मिलें, लेकिन वोट मिलेगा। जम्मू संभाग की 30 से 31 सीटों पर भाजपा का प्रभाव हो सकता है। इसके बाद उसे मुस्लिम वोटों के बंटने का फायदा मिल सकता है। हिंदू बाहुल्य मतदाता वाली सीटों पर जीत का अंतर बड़ा हो सकता है। डोडा, रामबन, किश्तवाड़, पुंछ, राजोरी और घाटी की कुछ सीटों पर आजाद का असर दिख सकता है। डोडा, किश्तवाड़ और रामबन जिलों में गुलाम नबी आजाद का जबर्दस्त प्रभाव है। पहाड़ी इलाकों में भी उनकी पैठ रही है। यही वजह है कि चिनाब वैली में लंबे समय तक कांग्रेस की मजबूत किलेबंदी रही। घाटी के भी कुछ हिस्सों में उनके समर्थकों की कमी नहीं है। माना जा रहा है कि पूरे प्रदेश की 20 से 25 सीटों पर उनका जबर्दस्त असर है। ऐसे में चिनाब वैली और घाटी की राजनीति करवट ले सकती है।

    आजाद और मोदी के बीच आत्मीय संबंध
    पिछले साल एक कार्यक्रम में गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि लोगों को नरेंद्र मोदी से सीख लेनी चाहिए। वह देश के प्रधानमंत्री बन गये, लेकिन अपनी जड़ों को भूले नहीं हैं। वह खुद को गर्व से चायवाला कहते हैं। मेरे उनके साथ सियासी मतभेद हैं, लेकिन पीएम एक जमीनी व्यक्ति हैं। पिछले साल फरवरी में गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा से कार्यकाल खत्म होने पर पीएम मोदी के विदाई भाषण को लोग भूले नहीं हैं। संसद में करीब तीन दशक बिता चुके गुलाम नबी आजाद की विदाई पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद भावुक हो गये थे। पीएम मोदी ने रुंधे गले से आजाद संग बिताये पलों को याद किया था और एक वक्त तो रो पड़े थे।

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